विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
sahi bat hasnewale hamesha hi badhai ke patra hain .....kaise bhi hso magar hso...
जवाब देंहटाएंसम्बंधी हो आप हमारे
जवाब देंहटाएंउल्लू और गधा दोनो साथ पधारे
धन्य भाग हमारे ।
बढ़िया रचना ....!
जवाब देंहटाएंहँसाना बड़ी दवाई ...
बिलकुल सही बात बताई ...
आभार .
सटीक!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंआभार आप का
जवाब देंहटाएंही इ इ इ--
बाऊ उ उ जी इ --