भैयाजी ! स्माईल !!
गाँव गाँव घूमे हम,किये बहुत वादे
क्लीन स्वीप करने के लेकर इरादे
जनता को तरक्की का, सपना दिखलाया
गरीबों के झोंपड़े में,खाना भी खाया
पर लगता समझदार,हो गयी है जनता
जबानी जमा खर्च से काम नहीं बनता
गोवा भी गया और पंजाब हारे,
यू, पी . में 'हाथ' कुचल ,निकल गयी 'साईकिल'
और टी वी वाले कहते है "भैयाजी! स्माईल!
दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स भी करवाये
कितने ही बड़े बड़े ,फ्लायओवर बनवाये
मेट्रो भी लाये और नयी बसें आयी
क्या करें थोड़ी जो बढ़ गयी मंहगाई
हम तो बस रह गए 'हाथ' ही हिलाते
और एम.सी.डी.भी गयी,'कमल'के खाते
लगता है 'अन्ना 'ने,जगा दिया इनको,
दिल्ली की जनता ने ,तोड़ दिया है दिल
और टी.वी.वाले कहते है"भैयाजी! स्माईल!!
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दीप जलता रहे
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हमारे चारों ओर केइस घने अंधेरे में समय थोड़ा ही हो भले उजेला होने
में विश्वास आत्म का आत्म पर यूं ही बना रहेसाकार हर स्वप्न सदा होता रहेअपने
हर सरल - कठिन र...
2 दिन पहले
बहुत अच्छी कविता ..किसके लिए है ..समझना मुश्किल नहीं..:)
जवाब देंहटाएंकलमदान