खूब बूढों डोकरो होजे-आशीर्वाद या श्राप
पौराणिक कथाओं में पढ़ा था,
जब कोई बड़ा या महात्मा,
छोटे को आशीर्वाद देता था
तो "चिरंजीव भव"या "आयुष्मान भव "
या "जीवही शरदम शतः " कहता था
और मै जब अपनी दादी को धोक देता था
तो "खूब बूढों डोकरो होजे "की आशीष लेता था
और आज जब मेरे केश
सब हो गए है सफ़ेद
दांत चबा नहीं पा रहे है
घुटने डगमगा रहें है
बदन पर झुर्रियां छागयी है
काया में कमजोरी आ गयी है
क्षुधा हो गयी मंद है
मिठाई पर प्रतिबन्ध है
सांस फूल जाती है चलने में जरा
मतलब कि मै हो गया हूँ बूढा डोकरा
फलित हो गया है बढों का आशीर्वाद
पर कई बार मन में उठता है विवाद
एकल परिवार के इस युग में,
जब बदल गयी है जीवन कि सारी मान्यताएं
और ज्यादा लम्बी उमर पाना,
देता है कितनी यातनाएं
एक तो जर्जर तन
और उस पर टूटा हुआ मन
तो कौन चाहेगा,लम्बा हो जीवन
ज्यादा लम्बी उमर ,लगती है अभिशाप
और ये पुराने आशीर्वाद,
आज के युग में बन गए हैं श्राप
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दीप जलता रहे
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हमारे चारों ओर केइस घने अंधेरे में समय थोड़ा ही हो भले उजेला होने
में विश्वास आत्म का आत्म पर यूं ही बना रहेसाकार हर स्वप्न सदा होता रहेअपने
हर सरल - कठिन र...
2 दिन पहले
अच्छा लिखा है आपने ..
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