जुर्म करने वाले न भूल जाना जुर्म करके
के आसमाँ तेरे हर जुर्म पे नजर रखता है |
खुद पे गुमां करने से पहले ये सोच लेना
के तुझे भी आगोश-ए-मौत में सिमटना है |
ए इन्सान ना कर इतना फरेब इंसानों से
के इंसानियत ने तुझसे भी हिसाब लेना है |
दिल्लगी किसी से इतनी भी ना करो दोस्त
के तेरी दिल्लगी से कोई तबाह हो सकता है |
ये दिल भी इक बहते समंदर की माफिक है
के दर्द-औ-खुशियों का इसमें संगम होता है |
बेगुनाह को गुनहगार साबित ना कर "अमोल"
के बेगुनाह की इक आह से तू बर्बाद हो सकता है |
आपकी कविता पढ़कर याद आया की"मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या"| शानदार ,बधाई|
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