एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

हवा की गड़बड़

बाकी सबकुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है
लेकिन सारी परेशानियों की  बस  ये जड़ है

सड़कों पर कितने ही वाहन दौड़ रहे है
और सबके सब ,कितना धुँवा छोड़ रहे है
उद्योगों से चिमनी भी है धुवाँ उगलती
गावों के खेतों में उधर पराली  जलती
दिवाली पर ,बम पटाखे ,करे प्रदूषण
साँसों को मिल नहीं पा रही है ऑक्सीजन
इतना ज्यादा वातावरण ,हो गया मैला
और फेफड़ों का दुश्मन कोरोना फैला
जीना मुश्किल हुआ ,मची इतनी भगदड़ है
बाकि सब कुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है  

उधर पश्चिमी हवा ,देश को रुला रही है
नव पीढ़ी भारतीय संस्कृति भुला रही है
संस्कार ,रिश्ते नाते और खाना पीना
रहन सहन सब बदल रहा है जीवन जीना
कुछ नेताओं ने माहौल बिगाड़ दिया है
हमको आपस में लड़वा दो फाड़ किया है
जाति धर्म ,अगड़ा पिछड़ा में कर बंटवारा
अपनी रोटी सेक, हवा को बहुत बिगाड़ा
पहन शेर की खाल ,राज्य करते गीदड़ है
बाकी सब कुछ ठीक,हवा में कुछ गड़बड़ है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

गाली देना ही अच्छा है

अगर गालियां दे लेने से ,जाती निकल भड़ास हृदय की ,
तो घुट घुट गुस्सा करने से ,गाली देना ही अच्छा है
मन के शिकवे और गिले सब,चिल्ला कर के जाहिर कर दो,
अगले को मालूम पड़ जाता ,कि तुम्हारे मन में क्या है
मन हो जाता साफ़ गलतियां ,अपनी सब लेते सुधार है ,
गलतफहमियां  कम  हो जाती ,फिर से प्यार पनपने लगता
होते रिश्ते जो कगार पर ,टूट फूट अलगाव राह पर ,
उनमे पुष्प प्यार के खिलते ,सब कुछ अच्छा लगने लगता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
हाल- ए -बुढ़ापा

आते याद जवानी के दिन ,जब हम मचल मचल जाते थे ,
दीवाने हो पगला जाते ,जवां हुस्न के जलवे लख  कर
हुई बुढ़ापे में ये हालत ,छूटे नहीं पुरानी आदत ,
मन बहलाते ,देख हुस्न को ,यूं ही दूर से ,बस तक तक कर
पति हुए बेंगन का भड़ता ,पत्नी रही मलाई कोफ्ता ,
मगर स्वाद मारे बेचारे ,खुश रहते है ,बस चख चख कर
भीनी भीनी खुशबू वाली ,मिस सी {मिस्सी}रोटी गरम चाहिए
तन्दूरी गोभी भी खाते ,लेकिन तन से दूरी रख कर
कभी जोश में दौड़ा करते ,चुस्ती फुर्ती भरे हुए थे ,
अब थोड़ी भी मेहनत करलो ,बुरा हाल होता है थक कर
दुष्ट बुढ़ापा ऐसा आया , जोश ए जवानी ,हुआ सफाया ,
अपना समय बिताते है हम ,बस आपस में ही झक झक कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के संकट में

हमने कोरोना संकट में ,ऐसा कठिन वक़्त काटा था
दिन में दहशत और रात में ,सपनो में भी सन्नाटा था
एक अजीब खौफ छाया था ,बंद हुई थी सारी हलचल,
मन के सागर में रह रह कर ,उठता ज्वार और भाटा था
महरी ,कामवालियां सब के ,आने पर प्रतिबंध लगा था
घर का काम,मियां बीबी और बच्चों ने मिल कर बांटा था
सब अपनों ने ,अपनों से ही ,बना रखी ऐसी दूरी थी ,
सबने चुप्पी साध रखी  थी ,हर मुख बंधा हुआ पाटा था
पटरी पर से उतर गयी थी ,अच्छी खासी चलती  गाड़ी ,
बंद सभी उद्योग पड़े थे ,अर्थव्यवस्था में घाटा था
पूरी दुनिया ,गयी चरमरा ,ऐसा कुछ माहौल बना था ,
कोरोना के वाइरस  ने ,सबको बुरी तरह काटा था  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दूरी बना कर रखो

सतयुग में भी कभी एक रावण होता था
बुद्धिमान ज्ञानी  पंडित था ,
लेकिन वह अपने मस्तक पर ,
कई बुराई को  ढोता  था
वह जब तक भी जिया ,उन्माद में जिया
अन्ततः राम ने उसका हनन किया
राम चाहते तो अपने तीखे बाणो से ,
काट सकते थे ,उसके बुराइयों वाले सर ,
और रहने देते  उसके मस्तक पर
सिर्फ एक सर
मानवता का ,बुद्धिमता का और ज्ञान का
वह भी अधिकारी हो सकता था सन्मान का
मगर ये हो न सका ,
क्योंकि बुरी सांगत का फल
अच्छाइयों को भी भुगतना पड़ता है ,
आज नहीं तो कल
और उसके अहंकार और बुराइयों के
सरों पर ,बुरी संगत का ये असर पड़ा
कि उसके ज्ञान और विवेक के,
सभी सरों को भी कटना पड़ा
और इस दृष्टान्त से हम ले ये सीख
अच्छाई और बुराई के बीच ,
अंतर बनाकर ही रखना है ठीक
इसलिए  हम भी  बीमारियों से ,
दो गज की दूरी बनाये रखें
और दुष्ट कोरोना से बचें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,
 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-