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शनिवार, 14 जून 2014

अंजाम-ए -आशिक़ी

         अंजाम-ए -आशिक़ी

नहीं हमतुम मिले शायद ,लिखा था ये ही किस्मत में,
              तू भी अच्छी तरह होगी ,मैं भी अच्छी तरह से हूँ
खैर ये है नहीं भटके हम  अपने रास्तों से है ,
              तू भी अपनी जगह पे है,मैं भी अपनी जगह पे  हूँ
इश्क़ की दास्ताने सभी की, रहती अधूरी है,
              मिली ना मजनू को लैला,नहीं फरहाद, शीरी को ,
हमारी आशिक़ी का भी, वही अंजाम होना था ,
               दुखी तू बे वजह से है ,दुखी मैं  बे वजह से हूँ

घोटू 

बुधवार, 11 जून 2014

दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा....



दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा
हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा

साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग
खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा

शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर
हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा

- विशाल चर्चित 

मंगलवार, 10 जून 2014

मैं और मेरा नसीब

          मैं और मेरा नसीब

                 जो दिखा
                  सो लिखा
                  और मैं ,
                  नहीं बिका
                   उसूलों
                    पर टिका 
                 लोगों को,
                 सबक सिखा
                  सच से ,
                  नहीं डिगा
                  इसलिए  इधर
                   उधर  फिंका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

         

अलग अलग धर्मस्थल

       अलग अलग  धर्मस्थल

चर्च में प्रार्थना करने ,ईसाई जाते सारे है
इबादत यीशु  की करते,बिना जूते उतारे  है
और मस्जिद में भी जब लोग जा नमाज पढ़ते है
उतारा करते है चप्पल पर, अपने पास रखते है
और मंदिर में दर्शन करने जाते  लोग  रोजाना
मगर  जूते उतारे बिन  ,मना है मंदिर में जाना
प्रार्थना प्रभु की करते ,ध्यान चप्पल में रहता है
चुरा ना कोई ले चप्पल ,यही डर मन में रहता है
नहीं होता कोई बुत मस्जिदों में,खुदा ,अल्ला का
मगर चर्चों में होता बुत यीशु और मरियम माँ का
और मंदिर में कितने देवता की मूर्तियां होती
रोज श्रृंगार होता ,दो समय है  आरती    होती
अन्य पूजागृहों में सिर्फ आशीर्वाद मिलता है
मगर मंदिर में आशीर्वाद संग परशाद मिलता है  
चर्च में मौन सब चुपचाप रहते ,शांति रहती है
कहीं प्रवचन ,कहीं उपदेश की बरसात बहती है
मज़ा पर मंदिरों में कीर्तन का,नाच गाने का
यहीं पर मिलता है मौका,नयी चप्पल चुराने का              

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 7 जून 2014

गयी हो जब से तुम मइके

             गयी हो जब से तुम मइके

गयी हो जब से तुम मइके,है मेरा मन नहीं लगता
विरह की वेदना सह के ,है मेरा मन नहीं लगता
नहीं तो भूख लगती है,न आता स्वाद खाने में
बना रख्खी है क्या हालत ,तुम्हारे इस दीवाने ने
कोई भी आके ये देखे कि मेरा मन नहीं लगता
गयी हो जबसे तुम मइके ,है मेरा मन नहीं लगता
करवटें बदला करता हूँ ,न ढंग से नींद आती है
तुम्हारी याद आ आ के,मुझे हरदम सताती है
तड़फता हूँ मैं रह रह के,है मेरा मन नहीं लगता
गयी जब से तुम मइके है मेरा मन नहीं लगता
तुम्हारा रूठना और रूठ के मनना ,लिपट जाना
झुक लेना वो नज़रें का,और वो'हाँ'भरी ना ना
याद आते वो क्षण बहके ,है मेरा मन नहीं लगता
गयी हो जबसे तुम मइके ,है मेरा मन नहीं लगता
जो तुम थी ,जिंदगानी थी ,सभी सूना है बिन तेरे
आजकल मैं अकेला हूँ,मुझे  तन्हाई  है   घेरे
कभी दिन रात थे महके,है मेरा मन नहीं लगता
गयी हो जब से तुम मइके ,है मेरा मन नहीं लगता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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