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शनिवार, 28 अगस्त 2021

संतानों से 

जिनने अपना पूरा जीवन, तुम पर जी भर प्यार लुटाया भूले भटके, मात-पिता से प्यार कर लिया करो कभी तो

 मर जाने के बाद याद तुम करो ना करो फर्क नहीं पड़ता जबतक जिंदा है उनको तुम याद करलिया करो कभीतो
 
 कैसे हैं किस हाल में है वह जीवित है या गुजर गए हैं
उनकी मौजूदा हालत का ख्याल कर लियाकरो कभी तो
 मरने बाद श्राद्ध पंडित को खिलवाना या मत खिलवाना,
अभी तो नहीं भूखे यह पड़ताल कर लिया करो कभी तो

 उनमे गैरत है, न तुम्हारे आगे हाथ पसारेंगे वो 
लेकिन उनकी जरूरतों का ख्याल कर लिया करो कभी तो 
नहीं चाहिए उनको कुछ भी ,बस दो मीठे बोल ,बोल दो उनके प्रति श्रद्धा दिखला सन्मान कर लिया करो कभी तो 
अरे आज है कल ना रहेंगे कितने दिन जीना है उनको बूढ़े हैं ,उनकी थोड़ी संभाल कर लिया करो कभी तो 

तुम जैसे भी हो मरते दम तक वो तुम्हें दुआएं देंगे 
तुमभी उनके संग अच्छा व्यवहार कर लिया करो कभी तो

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 27 अगस्त 2021


मुहावरों की महिमा 

ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता 
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता 
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है 
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है 
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा 
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा 
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है 
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है 
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है 
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है 
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया 
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता 
और अकल के मारा  कोई, भैंस के आगे बीन बजाता 
 किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै 
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे 
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े 
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं 
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं 
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता 
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर 
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर 
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता  
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन 
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम 
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह 
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही  होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता 
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता 
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
कल तक जिसकी तूती बजती,चुप है जबसे बदला मौसम
और नक्कारखाने में तूती की आवाज न सुन पाते हम
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन 
बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की 
छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता 
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता

मदन मोहन बाहेती घोटू

मुहावरों की महिमा 

ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता 
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता 
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है 
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है 
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा 
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा 
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है 
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है 
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है 
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है 
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया 
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता 
और अकल के मारा  कोई, भैंस के आगे बीन बजाता 
 किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै 
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे 
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े 
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं 
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं 
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता 
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर 
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर 
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता  
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन 
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम 
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह 
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही  होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता 
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता 
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता 
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

तू मेरी तकदीर बन गई 

मैं सीधा सा भोला भाला 
पर तूने घायल कर डाला 
गई चीर जो मेरे दिल को ,
नजर तेरी शमशीर बन गई 

मैं स्वच्छंद विचरता रहता 
अपने मनमाफिक था बहता
 तूने प्यार जाल में बांधा,
 जुल्फ तेरी जंजीर बन गई 
 
मैं रेतीला राजस्थानी 
मिला प्यार का तेरे पानी 
तन मन में हरियाली छाई 
मेरी छवि कश्मीर बन गई 

मैं एक पत्ता हरा भरा था
 तूने छुआ रंग निखरा था 
 मेहंदी हाथ रचाई तूने,
 लाल मेरी तस्वीर बन गई 
 
मैं चावल का अदना दाना
 पाया तेरा साथ सुहाना 
 तूने अपने साथ उबाला,
 स्वाद भरी फिर खीर बन गई
 
 हाथों में किस्मत की रेखा 
 लेकिन जब से तुझको देखा 
 तू और तेरी वर्क रेखाएं 
 ही मेरी तकदीर बन गई

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 25 अगस्त 2021

मिलन पर्व

 रूप तुम्हारा मन को भाया, 
 तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया
  बंधा हमारा गठबंधन और ,
  मिलन पर्व हैअब जब आ 
  सांसो से सांसे टकराई
 और प्रीत परवान चढ़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई 
 
 तुमने जब एक अंगड़ाई ली, 
 फैला बांह ,बदन को तोड़ा 
 देखा उस सुंदर छवि को तो,
  सोया मन जग गया निगोड़ा
 फिर जो तेरे अलसाये से ,
 तन की मादक खुशबू महकी 
 मेरे तन मन और बदन में, 
 एक चिंगारी जैसी दहकी
 पहले वरमाला, बांहों की,
 माला फिर थी गले पड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई 

 मैंने जब तुमको सहलाया ,
 प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया 
 बात बड़ी आगे, अधरों ने ,
 जब अधरों का अमृत पाया 
 हम तुम दोनों एक हो गए, 
 बंध बाहों के गठबंधन में 
 सारा प्यार उमड़ कर आया 
 और सुख सरसाया जीवन में 
 मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम, 
 ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई

मदन मोहन बाहेती घोटू

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