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रविवार, 12 फ़रवरी 2012

डोर मेरी है तुम्हारे हाथ में
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मै तुम्हारे पास में हूँ,तुम हो मेरे साथ में
उड़ रहा मै,डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
    तुम पवन का मस्त झोंका,जिधर हो रुख तुम्हारा
     तुम्हारे संग संग पतंग सा,रहूँ उड़ता  बिचारा
तुम लचकती टहनी हो और थिरकता पात  मै
उड़ रहा मै, डोर मेरी पर  तुम्हारे  हाथ  में 
       नाव कागज की बना मै,तुम मचलती  धार हो
       जिधर चाहो बहा लो या डुबो दो या तार दो
संग तुम्हारा न छोडूंगा किसी  हालात में
 उड़ रहा मै, डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
      बांस की पोली नली ,छेदों भरी मै बांसुरी
       होंठ से अपने लगालो,बनूँ सुर की सुरसरी  
मूक तबला,गूंजता मै,तुम्हारी हर थाप में
उड़ रहा मै,डोर मेरी ,पर तुम्हारे हाथ में
     घुंघरुओं की तरह मै तो तुम्हारे पैरों बंधा
      तुम्हारी हर एक थिरकन पर खनकता मै सदा
तुम शरद की पूर्णिमा की रात हो और प्रात मै
उड़ रहा मै,डोर मेरी, पर तुम्हारे   हाथ  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

मौत

भयावह रूप ले वो क्यूँ,
इस तरह जिद् पर अड़ी है
बड़ी क्रुर दृष्टि से देख रही मुझे
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

ये देख खुश हूँ मैं अपनो के साथ
जाने क्या सोच रही है
कुछ अजीब सी मुद्रा में
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

चली जाऊंगी मैं साथ उसके
नहीं डर है मुझे उसका
फिर क्यों वो संशय में पड़ी है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

कभी गुस्से में झल्ला रही है
कभी हौले हौले मुस्कुरा रही है
इस तरह मुझे वो फँसा रही है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

देख मेरे अपनों की ताकत
और मेरे हौसलों की उड़ान
से वो सकपका रही है
देखो मौत मुझसे दूर जा पड़ी है ।

ले जाना चाहती थी साथ मुझे
अब वो मुझसे दूर खड़ी है
मेरे अपनों के प्यार से वो
छोड़ मुझे मुझसे दूर चली है ।
© दीप्ति शर्मा

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

बासन्ती मधुमास आ गया

बासन्ती मधुमास आ गया
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आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम  पास आ गया
बासंती  मधुमास आ गया
डाल डाल पर ,फुदक फुदक कर
कोकिल गुंजा रही है मधुस्वर
पुष्पित हुआ पलाश केसरी
सरसों स्वर्णिम हुई मदभरी
सजी धरा पीली चूनर में
लगे वृक्ष स्पर्धा करने
उनने पान किये सब पीले
आये किसलय  नवल रंगीले
शिशिर ग्रीष्म की यह वयसंधी
हुई षोडशी ऋतू  बासंती
गेहूं की बाली थी खाली
हुई अब भरे दानो वाली
नाच रही है थिरक थिरक कर
बाली उमर,रूप यह लख कर
वृक्ष आम का बौराया  है
मादकता से मदमाया है
रसिक भ्रमर डोले पुष्पों पर
महकी अवनी,महका अम्बर
मदन पर्व है,ऋतू  रसवंती
आया ऋतू राज  बासंती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"मेरा काव्य-पिटारा"

संग्रह मेरी रचनाओं का यह, खिलता एक बहारा,
आ करके सब देखो भाई, "मेरा काव्य-पिटारा" |

साझा सबसे कर सकता हूँ, है इसमें ये गुण सारा,
सब से विनय है आके देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

भद्रजनों का मिलता है आशीष इसके द्वारा,
भाई, बंधू, मित्रों देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मिलती यहाँ है सीख भी, है ज्ञान का एक सहारा,
आओ, देखो, राय भी दो सब, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मेरे लिए ये मंदिर-मस्जिद, ये मेरा है गुरुद्वारा,
तुम भी आओ, शौक से देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

जीवन संग अनवरत चलेगा, नदिया संग ज्यों धरा,
एक अभिन्न-सा भाग है यह, "मेरा काव्य-पिटारा" |

[ मेरी कविताओं के ब्लॉग का नया नाम- "मेरा काव्य-पिटारा" (पहले-"मेरी कविता") |
पता-http://pradip13m.blogspot.com/
जरुर आयें और अपनी राय दें | ]

टुकड़े

टुकड़े कितने जरुरी है ,
रोटी का हो या जमीन का ,
और कडकती ठण्ड में ,
एक अदद धूप का टुकड़ा ,
जीवन की निशानी होता है ,
पर टुकडो में बटना किसी को स्वीकार नहीं ,
फिर भी हम रोटी और जमीन के टुकड़े के लिए ,
टुकड़ों में बंट रहे है ,
एक टुकडा रोटी देने को हम तैयार नहीं ,
पर ह्रदय के टुकड़े करने में हमे महारथ हासिल है ,
टुकडा टुकडा होते हम ,
नहीं समझ पा रहे अभी भी हम ,
और कितने टुकड़ों में बटेंगे हम ,
टुकडा होने का यह खेल जारी रहेगा कब तक ,
कब सोचेंगे हम ,
नहीं जानते ,
अभी तो टुकडा टुकडा होने में व्यस्त है |

रचनाकार:- विनोद भगत

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