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बुधवार, 26 मई 2021

घोटू के पद

घोटू ,मैंने तय कर लीना

सोच सदा 'पॉजिटिव ' रखना खुशहाली से जीना
 
जल्दी उठ कर ,पानी ,नीबू शहद मिला कर पीना

मीठा देख नहीं ललचाना ,खाना चीज तली  ना  

रोज घूमना ,जब तक तन पर ,ना आ जाय पसीना

प्राणायाम ,योग करने में ,रखना कोई कमी ना

मोहमाया तज,कर हरी सुमिरन,भक्ति प्रेम रस पीना

होनी ,होना ,रोक न पाया ,अब तक कोई ,कभी ना

जियें  सौ बरस  ,करें सेंचुरी  ,पर छूटे मस्ती ना

घोटू  मैंने तय कर लीना

'घोटू '

देखलो ये किस्मत का खेल

एक भिखारी ,भिक्षा मांगे ,दिखला  खाली  पेट
और एक बाबा,पेट दिखा कर,बन गया धन्ना सेठ
चल रही है जीवन की रेल
देखलो  किस्मत का खेल
एक मजदूर ,मेहनत करके ,पत्थर पर सो  जाये
मखमल के बिस्तर पर लालाजी को नींद न आये
हो गयी सभी दवायें फ़ैल
देखलो ये किस्मत का खेल
बुद्धिमान है कलम घिस रहा ,क्लर्क बने दिनरात
एक शिफ़ारसी टट्टू ,बुद्धू ,पर है उसका बॉस
बैठता है कुर्सी पर फैल
देखलो ये किस्मत का खेल
सुन्दर  फैशन की पुतली को ,नहीं समझ कुछ आय
पर डॉक्टर से शादी कर ली ,डॉक्टरनी कहलाय
भले ही जोड़ी है अनमेल
देखलो ये किस्मत का खेल
सुन्दर सी बिटिया को ब्याहा,दूल्हा काला ,लाला
माँ बोले ,मैदे की लोई को ,ले गया कौवा काला
इस तरह रिश्ते है बेमेल
देखलो ये किस्मत का खेल
कोई झोपडी में खुश कोई महलों में भी उदास
एक पानी से पेट भर रहा ,एक की बुझे न प्यास
महल भी लगता उसको जेल
देखलो ये किस्मत का खेल

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
बी पोज़िटिव (BE  POSITIVE )

हम जब भी उनको बतलाते,अपने तन का हाल
 ढीली अब पड़  गयी  ढोलकी ,बचा नहीं सुर ताल
चुस्ती फुर्ती सब गायब है ,बदल गयी है चाल
सब समझाते 'बी पोज़िटिव ",जीना है सौ साल

नहीं ठीक से खा पी पाते ,बचा न चाव ,उमंग
कई बिमारी ,ऐसी चिपकी ,नहीं छोड़ती संग
खाएं दवाई,टॉनिक पीकर ,रखके साज संभाल
सब समझाते 'बी  पोज़िटिव ' जीना है सौ साल

दिन भर कोई कामधाम ना ,ना हिम्मत ना जोश
फिर भी चलते फिरते है हम,मन में है संतोष
प्यार सभी का मिलता हमको ,मन में नहीं मलाल
सब समझाते 'बी पॉजिटिव ',जीना है सौ साल

उचटी उचटी नींद हमारी ,बिखरे बिखरे ख्वाब
अपने भले बुरे कर्मो का ,कब तक रखें हिसाब
लाख करी कोशिश  ना छूटे ,मोहमाया का जाल
सब  समझाते  'बी पॉजिटिव 'जीना है सौ साल
 
क्यों घबराएं ,नैसर्गिक है ,ये परिवर्तन सारे
वृद्धावस्था ,ने जीवन में अपने पाँव पसारे
पर रत्ती भर ,विचलित ना हों ,खुद को रखे संभाल
सब समझाते 'बी पॉजिटिव 'जीना है सौ साल

बात सदा मानी बच्चों की ,की हर ख्वाइश  पूरी
तो फिर उनकी,यह इच्छा भी ,क्यों रह जाय अधूरी
सभी 'निगेटिव' सोच और डर ,मन से देवें निकाल
सब समझाते 'बी पॉजिटिव',जीना है सौ साल

तो यह तय है ,मार सेंचुरी ,हम भी करें कमाल
जो होना सो होगा ,होनी कोई न सकता  टाल
हर पल का आनंद उठायें और रहें खुशहाल
जीना है सौ साल हमें अब जीना है सौ साल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 25 मई 2021

 साधो, हम बट्टी साबुन की 
 जितना घिसो,झाग दे उतना, खान ज्ञान और गुण की
 बहुत किया सबका तन उज्जवल ,मेल निकाला मन का 
घिस घिस कर अब चीपट रह गए, अंत आया जीवन का
 अब न अकेले कुछ कर पाते ,यूं ही जाएंगे बस गल
 नव पीढ़ी की बट्टी यदि जो, संग  चिपकाले केवल 
 पहले स्वयं घिसेंगे जब तक, साथ रहेंगे लग के
  जीवन के अंतिम पल तक हम ,काम आएंगे सबके इससे अच्छी और क्या होगी ,सद्गति इस जीवन की 
  साधो,हम बट्टी साबुन की

घोटू

सोमवार, 24 मई 2021

चुंबन

यह चुंबन होता है क्या 
मुख की रखवाली करने वाले अधरों की प्यार प्रदर्शन करने की एक नैसर्गिक प्रक्रिया
 या नन्हे से चंचल मुस्कुराते बच्चे के कोमल कपोलों पर दुलार का प्रदर्शन करती हुई अधरों की मोहर 
 या बुजुर्गों द्वारा अपने बच्चों को उनके माथे पर प्यार से चूम कर दिया हुआ आशीर्वाद 
 या उभरती जवानी के उत्सुक पलों में प्यार की अनुभूति का पहला पहला स्वाद पाने को चुराया हुआ अधरामृत
 या दूरस्थ प्रेमिका को अपने हाथों को चूम कर हवा में उछाल कर प्रेषित किया हुआ हवाई प्रेमोपहार
  या अपने अधरों पर लाली लगाकर प्रेम पत्र पर अंकित कर प्रेमिका द्वारा प्रेमी को प्रेषित प्यार का सुहाना और प्यारा संदेश
 या अभिसार के आनंददायक पलों की मंजिल तक पहुंचने का पहला सोपान 
 या विदेशी नव दंपत्ति द्वारा गिरजाघर में विवाह की स्वीकृति के बाद सार्वजनिक रूप से निभाई जाने वाली रस्म
 या स्वादिष्ट व्यंजन का आनंद लेकर स्वयं की उंगलियों को चाटने के बाद, पकाने वाली पत्नी की उंगलियों को चूमकर उसकी पाक प्रवीणता की सराहना करने का उपक्रम
 या  पत्नी को पति की अन्य गतिविधियों से आगाह करता हुआ उसके कपड़ों पर किसी और द्वारा लगाया लिपस्टिक का ओष्ट चिन्ह 
 या प्रेम अमृत से परिपूर्ण रक्तिम अधरों का दूसरे रसासिक्त और प्यासे अधरों  द्वारा अमृतपान करने की प्रक्रिया जिसमें किसी का भी अधर  अमृत कभी रिक्त नहीं होता और जो स्वाद हीन होकर भी लगता लजीज है 
 यार यह चुम्बन भी अजीब चीज है

घोटू

शनिवार, 22 मई 2021

ऑक्सीजन
 हवा अहम की भरी हुई मगरूर बहुत था
  बहुत हवा में उड़ता मद में चूर बहुत था 
  खुद पर बहुत गर्व था नहीं किसी से डरता
   अहंकार से भरा हुआ था डींगे भरता 
   किंतु करोना ऐसा आया हवा बदल दी 
   मुझे हुआ एहसास बहुत थी मेरी गलती 
   बौना है इंसान नहीं कुछ भी कर सकता 
   पड़े नियति की मांग सिर्फ रह जाए बिलखता
   लेती श्वास हवा ,पर पीती ऑक्सीजन है 
   ऑक्सीजन के कारण ही चलता जीवन है
    मन का मेल निकाल, हटी जब नाइट्रोजन 
    निर्मल मन हो गया ,रह गई बस ऑक्सीजन

घोटू

बुधवार, 19 मई 2021

चलो हम करे हास परिहास

भूल कर कोरोना के त्रास
चलो हम करे हास परिहास

मिल कर बैठें ,हँसे गाये हम ,बदले ये माहौल
हंसी खोखली ,लेकिन देगी ,पोल हमारी खोल
फिर भी खुशियां लाने का हम ,थोड़ा करे प्रयास
चलो हम करें हास परिहास

सुख दुःख तो जीवन में सबके ,आते जाते रहते
सब दिन हॉट न एक समाना ,बड़े बूढ़े ये कहते
फिर क्यों डरे डरे हम रहते ,ख़ुशी नहीं उल्हास
चलो हम करे हास परिहास

ऐसी आयी  बिमारी सबका उड़ा  हुआ है रंग
कहाँ गए वो हंसी कहकहे , मस्ती भरी तरंग
लाये जिंदगी में फिरसे हम खुशियों का आभास
चलो हम करे हास परिहास

एक दिन सबको जाना फिर क्यों छोड़े हंसना गाना
जितने भी दिन शेष बचे है ,जीवन जियें सुहाना
कठिन वक़्त ये गुजर जाएगा मन में है विश्वास
चलो हम करे हास परिहास ,

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बाद में भूल जाएंगे

तुम स्वर्ग जाओ या नर्क
किसी को पड़े न कोई फर्क
तुम्हे स्वर्गवासी कह कर पर ,लोग बुलाएँगे
कुछ दिन तुम्हारी फोटो पर ,फूल चढ़ाएंगे
बाद में भूल जाएंगे
बाद में भूल जाएंगे
जब तुम हो से थे हो जाते
कुछ दिन याद बहुत हो आते
साथ समय के धीरे धीरे ,
तुमको है सब लोग भुलाते
जो आया है ,सो जायेगा ,
इस प्रकृति का यही नियम है
साथ नहीं कुछ भी जाएगा ,
ये मेरा है ,केवल भ्रम है
करो सद्कर्म,निभाओ धर्म
यही है इस जीवन का मर्म
पुण्य तुम्हारे बेतरणी को पार कराएँगे
कुछ दिन तुम्हारी फोटो पर फूल चढ़ायेगे
बाद में भूल जाएंगे
बाद में भूल जाएंगे

तुमने जीवन भर मेहनत कर ,
कोड़ी कोड़ी ,माया जोड़ी
लेकिन खाली हाथ गए तुम ,
दौलत सभी यहीं पर छोड़ी
देह दहन हो ,अस्थि रूप में ,
गंगाजी में जाओगे बह
जब तक तुम्हारे बच्चे हैं ,
बने वल्दियत जाओगे रह
और बाद में ,एक बरस में
वो भी केवल श्राद्धपक्ष में ,
तुम्हारा प्रिय भोजन ,ब्राह्मण को खिलवायेंगे
कुछ दिन  तुम्हारी फोटो पर ,फूल चढ़ाएंगे
बाद में भूल जाएंगे
बाद में भूल जाएंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

रविवार, 16 मई 2021

 जी करता है तुमको डाटूं

पकड़ूँ गलती छोटी मोटी
खूब सुनाऊँ खरी और खोटी
यूं ही बेतुकी बातें करके
तुम्हे सताऊं मैं जी भर के
गुस्से में तुमको पागल कर ,
मैं दिमाग तुम्हारा चाटूँ
जी करता है तुमको डाटूं

ढूँढूँ कोई न कोई बहाना
अच्छा नहीं बनाया खाना
आज दाल में नमक नहीं है
चावल भी ना पके सही है
रोज कमी रहती कुछ ना कुछ
लापरवाह हुई तुम सचमुच
जब दिखलाने लगता तेवर
बात टालती तुम मुस्का कर
मेरा नाटक पकड़ा जाता
मैं पानी पानी हो जाता  
तुम कहती क्यों मुझे चिढ़ाते
झूंठ ठीक से बोल न पाते
ये सच तुम्हारा खाना है ,
स्वाद बहुत ,मैं ऊँगली चाटूँ
जी करता है तुमको डाटूं

घर को रखती सदा सजा कर
सबसे मिलती हो मुस्काकर
ख्याल सदा है परिवार का
तुम हो सागर भरा प्यार का
ना रूठो ना किचकिच करती
गलत काम करने से डरती
ना फरमाइश ना झगड़ा है
हृदय तुम्हारा बहुत बड़ा है
नहीं ढूंढती कमियां मेरी
तुम में खूबी है बहुतेरी
बहुत चहेती  सबके मन की
मूरत  हो तुम अपनेपन की
भरी हुई तुम सद्भावों से ,
तुममे गलती कैसे छांटूं
जी करता है तुमको डाटूं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 14 मई 2021

पत्नीजी को खुश रखो

जिसकी किचकिच ,किस''जैसी है ,
जिसके ताने ,लगे सुहाने
जिसकी  तूतू मैमै में भी ,
प्यार बसा ,माने ना माने
जो नयना ,बरसाते शोले ,
नैनमटक्का करते थे कल
आज होंठ जो बकबक करते ,
उनसे चुंबन झरते थे कल
जिनकी रूप अदा का चुंबक ,
खींचा करता आकर्षित कर
उनके संग क्यों खींचातानी ,
अब चलती रहती है दिनभर
क्या कारण घर बना हुआ रण ,
जो  होता ,रमणीक कभी था
जहाँ रोज अब ठकठक होती ,
बहुत शांत और ठीक कभी था
उनको आज शिकायत रहती ,
उनका रखता ना ख्याल मैं
उनकी बातें ,एक कान सुन ,
दूजे से देता निकाल मैं
दिन भर व्यस्त काम में रह कर ,
होती पस्त और जाती थक
और शिकायतों का गुबार भी
सारा जाता निकल रात तक
तब वह बिस्तर पर पड़ जाती।
आता कुछ सुकून है मन में
मिट जाती सारी थकान है ,
मेरी बाहों के बंधन में
और फिर आने वाले कल हित ,
संचित ऊर्जा हो जाती है
जो मधुमख्खी ,शहद पिलाती ,
कभी काट भी तो जाती है
उनकी लल्लोचप्पो करना ,
डरना उनकी नाराजी से
उनकी हाँ जी हाँ जी करना ,
खुश रखना,मख्खनबाजी से
यह छोटा सा ही नुस्खा पर ,
भर देता जीवन में खुशियां  
इसको अपना कर तो देखो ,
देगा बदल ,आपकी दुनिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सांत्वना

यादें कल की थोड़ा तो तड़फायेगी
आदतें  तन्हाई की पड़ जायेगी
जीना है तो सम्भलना ही पड़ेगा ,
मुश्किलें वर्ना बहुत बढ़ जायेगी
आशाओं का सूर्य जब होगा उदय ,
गम की बदली छायी जो,छट जायेगी
जिंदगी में आई है जो खाइयां ,
समय के संग संग ,सभी पट जायेगी
जीने की जागेगी मन में फिर ललक,
और चिंताये भी कुछ घट जायेगी
हौंसला रखना पडेगा आपको ,
लम्हा लम्हा जिंदगी कट जायेगी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
मैं तुमको क्यों कर गाली दूँ

तुमको भला बुरा कह अपनी ,क्यों जुबान मैं कर काली दूँ
मैं तुमको क्यों कर गाली दूँ

तुम हो चिकने घड़े तुम्हे छू ,सभी गालियां फिसल जाएंगी
तुम्हारा कुछ ना बिगड़ेगा ,जिव्हा मेरी बिगड़ जायेगी
बहुत कमीने हो तुम ,ना हो ,मेरी गाली के भी लायक
तुम लालच से भरे हुए हो ,सदा साधते अपना मतलब
अपना काम निकल जाने पर ,बिलकुल नज़र नहीं आते हो
निज अहसान फरामोशी का ,पूरा जलवा दिखलाते हो
व्यंग बाण बरसा तुम पर मैं ,निज तूणीर क्यों कर खाली दूँ
मै  तुमको क्यों कर गाली दूँ

अपनों के ही नहीं हुए तुम ,और किसी के फिर क्या होंगे
वक़्त तुम्हे जब ठोकर देगा ,अपनी करनी खुद भुगतोगे
बचा रहा जो तुम्हे डूबने से  ,उसको ही डंक मारते
देगा कौन सहारा तुमको ,मुश्किल में ,ये ना विचारते
अरे अभी भी समय शेष है,सुधर सको तो सुधर जाओ तुम
अपने मन के अंदर झांकों ,प्रेम भावना को जगाओ तुम
समझा रहा ,यही कोशिश है ,तुमको सुख और खुशहाली दूँ
मैं तुमको क्यों कर गाली दूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ये शून्य काल है

पक्ष विपक्ष चीखते दोनों ,
पस्त व्यवस्था ,बुरा हाल है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है
हमको ये दो ,हमको वो दो ,
बढ़ चढ़ मांग हर कोई करता
फिर जिसको जितना भी दे दो ,
उसका पेट कभी ना भरता
मांग अधिक ,आपूर्ति कम है ,
क्योंकि संसाधन है सीमित
कोप महामारी का इतना ,
कि इलाज से जनता वंचित
पीट रहे सब अपनी ढपली ,
ना सुर कोई ,नहीं ताल है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है
हर कोई लेकर बैठा है ,
कई शिकायत भरा पुलंदा
रायचंद सब राय दे रहे ,
बस ये ही है उनका धंधा
ये बाहर कुछ,अंदर कुछ है ,
बहुत दोगली इनकी बातें
बेच दिया इनने जमीर है ,
बस गाली देते ,चिल्लाते
चोर चोर मौसेरे भाई ,
पनपाते काला बाजार है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है
इस विपदा के कठिन काल में ,
भी ये अवसर देख रहे है
अपनी अपनी राजनीती की ,
ये सब रोटी सेक रहे है
'ब्लेम गेम 'में लगे ,उठाया ,
इनने सर पर आसमान है
पर इस आफत के निदान में ,
रत्तीभर ना  योगदान है
कौवा पोत सफेदी ,चलने
लगा हंस की आज चाल है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 11 मई 2021

सुनो ,मेरी बात पर गौर करो

 बिके  हुए चैनल के समाचार मत देखो ,
आधी बिमारी ,दहशत कम हो जायेगी ,
पता नहीं कुछ लोग,न जाने किस मतलब से ,
छवि  बिगाड़ने में भारत की तुले हुए है  

अपनी अपनी राजनीति को चमकाने के ,
ढूंढ रहे है अवसर जो इस आफत में भी ,
इनकी कोई बातों पर तुम ध्यान न देना ,
क्योंकि इरादे इनके विष में घुले हुए है

जुते हुए है स्वार्थ साधने में कितने ही
कालाबाज़ारी कर कमाई के चक्कर में है ,
हाथ जोड़ते ये चेहरे शैतान बहुत है ,
नहीं दूध से कोई इनमे धुले हुए है

अपने मन में दबे हुए संवेदन को तुम ,
आज झिझोडो,और जगाओ,सोने मत दो
,देशद्रोहियों के बहकावे में मत आओ ,
ये तो देश को गिरवी रखने तुले हुवे है

शुक्र मनाओ ईश्वर का ,तुम भाग्यवान हो ,
गर्व करो तुमको ऐसा  नेतृत्व मिला है ,
जो निस्स्वार्थ कर रहा भारत महिमामंडन ,
और हौसलें भी बुलंद और खुले हुए है

जरूरत है ये आज ,सावधानी हम बरतें ,
बना दूरियां रखें ,और मुख पट्टी बांधें ,
और बढ़ाएं तन मन की अवरोधकशक्ति ,
प्राणायम के भी विकल्प सब खुले हुए है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 10 मई 2021

आओ कुछ खुशियां बिखरायें
गुमसुम मुरझाये चेहरों पर ,जरा मुस्कराहट फैलाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

बहुत दिन हुए गप्पें मारे अपनों के संग वक़्त गुजारे
घर में ही घुस कर बैठे है ,सबके सब , कोरोना मारे
टी वी देखो,समाचार सुन,उल्टा मन भरता है डर से
रामा जाने ,दूर हटेगी कब ये आफत ,सबके सर से  
कर देती लाचार सभी को ,आती जाती ये विपदाएं
आओ कुछ खुशियां बरसायें

सहमे सहमे दुबके है सब ,उडी हुई चेहरे की रंगत
हर कोई पीड़ित चिंतित है सबके मन में छायी दहशत
गौरैया की तरह हो गयी ,हंसी आज चेहरे से गायब
मार ठहाके ,यार दोस्त संग ,हंसना भूल गए है अब सब
बुझे हुए अंधियारे मन में ,आशा की हम किरण जगाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

किन्तु करेंगे हम ये कैसे ,ना सुनते अब लोग लतीफे
लड्डू,पेड़ा ,गरम जलेबी ,सब पकवान लग रहे फीके
न तो पार्टी ना ही महफ़िल ,ना उत्सव ,त्योंहार मनाना
दो गज दूरी ,मुंह पर पट्टी ,बंद हुआ सब आना जाना
कोई के प्रति ,तो फिर कैसे ,अपने भावों को दर्शाएं
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

इस विपदा में साथ दे रहा है सबका ,अपना मोबाईल
बस उसको सहला ऊँगली से ,लोग लगाते है अपना दिल
तो क्यों न हम मोबाईल पर ,हालचाल अपनों का  जाने
कभी ज़ूम पर मीटिंग करके मिले जुलें ,मन को बहलाने  
देख एक दूजे  की सूरत ,मन में कुछ सुकून  तो आये  
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

मदन मोहन बहती 'घोटू '

   

सोमवार, 3 मई 2021

संडे की सुबह

संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात सेटरडे वाली होती है
अलसाये से और उनींदे ,थके हुए,
तन की मस्ती की बात निराली होती है

पत्नी बाहों में बांह डाल  कर ये बोले ,
देखो कितना दिन चढ़ आया ,उठ जाओ
सच्चा प्यार तुम्हारा तब ही जानूँगी ,
अपने हाथों से चाय बना कर पिलवाओ
अमृत से  ज्यादा स्वाद और मन को भाती ,
तुम्हारी बनी ,चाय की प्याली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है
जब बीती रात  सेटरडे वाली होती है

उत्सव जैसा ये दिन आता है हफ्ते में ,
पूरे दिन आराम ,मस्त खाना ,पीना
ना दफ्तर की फ़िक्र ,काम की ना चिंता ,
मौज और मस्ती से मन माफिक जीना
सन्डे सुबह बिखरते है रंग होली के ,
और सन्डे की रात दिवाली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात ,सेटरडे वाली होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


शादीशुदा मर्द का दुखड़ा

सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने  
थोड़ा खुल कर सांस नहीं मैं ले सकता ,
जीते जी ही मार दिया है बीबी ने

सर पर थे जो बाल ,झड़ गए सेवा में ,
दिनभर उसकी लल्लू चप्पू करता हूँ
मैं कुछ गलती करूं ,मूड उसका बगड़े ,
तने नहीं उसकी भृकुटी ,मैं डरता हूँ
कंवारेपन की मौज मस्तियाँ गायब है ,
ऐसा बंटाधार किया है  बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

शादीशुदा आदमी कैदी हो जाता ,
उमर गुजरती उसकी हाँ जी ,हाँ जी में
बीबी जी नाराज़ कहीं ना हो जाए ,
लगा हुआ रहता है मख्खनबाजी में
निज मरजी का कुछ भी तो ना कर सकता
मुझको यूं लाचार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

करता दिन भर काम ,मोहब्बत का मारा ,
बन गुलाम जोरू का  ,यही हक़ीक़त है
पराधीन ,सपने में भी है सुखी नहीं ,
उसके जीवन में बस आफत ही आफत है
इतना सब कुछ कर भी प्यार अगर माँगा ,
नखरे कर ,इंकार किया है बीबी ने
सर पर मेरे सदा चढ़ी ही रहती है ,
यूं जीना दुश्वार किया है बीबी ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
उगते सूरज से

ऐ सूरज इसके पहले कि तू सर पे चढ़े ,
निज कोषों से कुछ मुझे 'विटामिन 'दे देना
शक्ति से मैं लड़ पाऊं सब विपदाओं से,
इतना साहस और गुण  तू अनगिन दे देना

तू अभी विशाल ,लाल ,स्वर्णिम आभा वाला  
तुझमे शीतलता व्याप्त ,प्रीत से भरा हुआ
नयनों को प्यारी ,तेरी ये छवि लगती है ,
तूने ही आ ,इस जग को चेतन करा हुआ  
पर जैसे जैसे आलोकित होगी दुनिया ,
सब छुपे  दबे  जो दोष प्रकट हो जाएंगे
दुष्ट प्रवृती  के और पीड़ा देने वाले ,
जितने भी है रोग ,प्रकट  हो जाएंगे
मैं प्रतिरोध कर सकूं हर बिमारी का ,
स्वस्थ रहूँ , मुझको  ऐसे दिन दे देना
ऐ सूरज इसके पहले कि तू सर पे चढ़े ,
निज कोषों से कुछ मुझे विटामिन दे देना

नन्हा बच्चा प्यार लुटाता है सब पर ,
जब हँसता ,मुस्काता ,भरता किलकारी
पर उसका निश्छल व्यवहार बदल जाता ,
ज्यों  बढ़ता ,जाता सीख सभी दुनियादारी
वैसे ही जब छोड़ के आँचल प्राची का ,
धीरे धीरे तू ऊपर उठता जाएगा
तुझसे नज़र मिलाना भी मुश्किल होगा ,
तू इतना ज्यादा तेज ,प्रखर हो जाएगा
इसके पहले कि तपन बने ये शीतलता ,
मधुर प्यार के ,मुझको पलछिन दे देना
ऐ  सूरज इसके पहले कि तू सर पे चढ़े ,
निज कोषों से तू मुझे विटामिन दे देना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

Re:

वाह वाह


On Fri, Apr 30, 2021, 7:06 PM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
बिटिया से

कल का सूरज ,अच्छी सेहत ,खबर ख़ुशी की लाएगा
मत घबरा बिटिया रानी सब ठीक ठाक हो जाएगा

परेशानियां तो जीवन के साथ लगी ही रहती है
कभी गर्म तो सर्द हवायें ,बासंती भी बहती  है
तिमिर हटेगा ,फिर प्राची से ,उजियारा मुस्काएगा
मत घबरा ,बिटिया रानी सब ठीकठाक हो जाएगा

ज्यादा दिन तक,कभी नहीं टिकते, ये दिन दुखयारे है
धीरज धर ,बैचैन न हो तू ,हम सब साथ तुम्हारे है
कठिन समय बीतेगा ,ईश्वर ,खुशियां भी बरसायेगा
मत घबरा ,बिटिया रानी ,सब ठीक ठाक हो जाएगा

पापा 
बिटिया से

कल का सूरज ,अच्छी सेहत ,खबर ख़ुशी की लाएगा
मत घबरा बिटिया रानी सब ठीक ठाक हो जाएगा

परेशानियां तो जीवन के साथ लगी ही रहती है
कभी गर्म तो सर्द हवायें ,बासंती भी बहती  है
तिमिर हटेगा ,फिर प्राची से ,उजियारा मुस्काएगा
मत घबरा ,बिटिया रानी सब ठीकठाक हो जाएगा

ज्यादा दिन तक,कभी नहीं टिकते, ये दिन दुखयारे है
धीरज धर ,बैचैन न हो तू ,हम सब साथ तुम्हारे है
कठिन समय बीतेगा ,ईश्वर ,खुशियां भी बरसायेगा
मत घबरा ,बिटिया रानी ,सब ठीक ठाक हो जाएगा

पापा 
वो दिन कहाँ गये

जब रोज गाँव के कूवे से ,आया करता ताज़ा पानी
मिटटी के मटके में भर कर ,रखती जिसको दादी,नानी
घर में एक जगह ,जहां रखते ,मटका, ताम्बे का हंडा थे
रहता पानी पीने का था ,हम कहते उसे परिंडा थे
धो हाथ इसे छुवा  करते ,यह जगह बहुत ही थी पावन
घर में जब दुल्हन आती थी ,तो करती थी इसका पूजन
अब आया ऐसा परिवर्तन ,बिगड़ी है सभी व्यवस्थायें
प्लास्टिक की बोतल में  कर ,अब बिकने को पानी आये  
था नहीं प्रदूषण उस युग में ,जब हम निर्मल जल पीते थे
आंगन में नीम और पीपल की ,हम शुद्ध हवा में जीते थे
तुलसी ,अदरक कालीमिर्ची ,का काढ़ा होता एक दवा
जिसको दो दिन पी लेने से ,हो जाता था बुखार  हवा
ना एक्सरे ,ना ही खून टेस्ट ,ना इंजेक्शन का कोई ज्ञान
कर नाड़ी परीक्षण वैद्यराज ,करते थे रोगों  का निदान
पर जैसे जैसे प्रगति पर हम हुए अग्रसर ,पिछड़ गये
करते इलाज सब मर्जों का ,वो देशी नुस्खे बिछड़ गये
आती है जब जब याद मुझे ,अपने गाँव की ,बचपन की
मुझको झिंझोड़ती चुभती है, जगती अंतरपीड़ा मन की
शंशोपज में डूबा ये मन ,ये निर्णय ना ले पाया  है
ये कैसी प्रगति है जिसमे ,कितना ,कुछ हमने गमाया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


हर दिन को त्योंहार किया है पत्नी ने

होली रंग में रंगा ,दिवाली दीप जला ,
हर दिन को त्यौहार किया है पत्नी ने
जीवन बगिया को महका ,मुस्कानो से ,
सपनो को साकार किया है पत्नी  ने

वादा हर सुखदुख में साथ निभाने का  ,
सिर्फ किया ही नहीं ,निभाया है उसने ,
प्रेम नीर से ,भरी हुई सी ,बदली बन ,
सदा प्रेम रस सब पर बरसाया उसने
मैं एकाकी था ,मुझको जीवन पथ पर ,
साथ दिया ,उपकार किया है पत्नी ने
होली रंग में रंगा, दिवाली दीप जला ,
हर दिन को त्यौहार किया है पत्नी ने

शिक्षक कभी सहायक ,परामर्शदात्री ,
बन कर मुझको सदा रखा अनुशासन में
कभी अन्नपूर्णा बन किया भरण पोषण ,
बनी सहचरी ,सुख सरसाये जीवन में
कभी हारने लगा ,मुझे ढाढ़स बाँधा ,
ममता दे ,उपचार किया है पत्नी ने
होली रंग में रंगा ,दिवाली दीप जला ,
हर दिन को त्योंहार किया है पत्नी ने

अब तो यही प्रार्थना मेरी ईश्वर से
ऐसा सब पर प्यार लुटाती रहे सदा
जैसा अब तक साथ निभाती आई है ,
अंतिम क्षण तक साथ निभाती रहे सदा
जैसी मुझको मिली ,मिले सबको वैसी ,
प्यार भरा संसार दिया है पत्नी ने
होली रंग में रंगा ,दिवाली दीप जला
हर दिन को त्यों हर किया है पत्नी ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 दिन न रहे

मदमाती मनमोहक ,चंचल ,चितवन वाले दिन न रहे
इठलाते और इतराते वो ,यौवन वाले दिन न रहे
अब तो एक दूजे को सहला अपना मन बहला लेते ,
मस्ती और गर्मजोशी के चुंबन वाले दिन न  रहे
संस्कारों के बंधन में बंध ,दो तन एक जान है हम ,
बाहुपाश में बंधने वाले ,वो बंधन के दिन न रहे
नजदीकी का सबसे ज्यादा ,वक़्त बुढ़ापे में मिलता ,
इधर उधर की ताकझाँक और विचरण वाले दिन न रहे
सूर्य जा रहा अस्ताचल को ,आई सांझ की बेला है ,
प्रखर किरण की तपन जलाती तनमन वाले दिन न रहे
मैं अपना 'मैं 'भूल गया और तू अपना 'मैं 'भूल गयी ,
अब समझौता समाधान है ,अनबन वाले दिन न रहे
यह तो है त्योंहार उमर का ,जिसे बुढ़ापा कहते है ,
संग जीने मरने के वादे और प्रण वाले दिन न रहे
जैसा होगा, जो भी होगा ,लिखा भाग्य  का भोगेंगे ,
मौज मस्तियाँ ,अठखेली के जीवन वाले दिन न रहे

 मदन मोहन  बाहेती 'घोटू '
  

रविवार, 25 अप्रैल 2021

बुरा वक़्त ये नहीं रहेगा

देश चल रहा रामभरोसे
एक दूसरे को सब कोसे
कोई दल का भी हो नेता
जिम्मेदारी कोई न लेता
सब पोलिटिकल गेम कर रहे
एक दूजे को ब्लेम कर रहे
उन्हें मिल गया एक स्टेज है
बना रहे अपनी इमेज है
अपनी रोटी सेक रहे है
दुनिया वाले देख रहे है
 रोते रहते है बस  रोना
किया केंद्र ने ,ये ना  वो ना
केवल देते रहना गाली
यही तुम्हारी ,जिम्मेदारी
राज्यों में सरकार तुम्हारी  
फैली जहाँ बहुत महामारी
तुमने क्या क्या जतन किये है
या फिर भाषण सिर्फ दिए है
बिमारी बन गयी सुनामी
तुम्हारी भी है नाकामी
देश जल रहा था तबाही में
लगे हुए थे तुम उगाही में
नहीं तुम्हे है शर्म भी जरा
फोड़ केंद्र पर रहे ठीकरा
अरे देश के तुम नेताओं
मन में राष्ट्रभाव भी लाओ
जनता दुखी ,बुरी हालत में
मिल कर काम करो आफत में
तुम जगाओ अपने जमीर को
दुखी जनो की हरो पीर को
बहुत कठिन ये दिन मुश्किल के
इनसे लड़ना ,सबको मिल के
आज देश में बनी वेक्सीन
ना बनती ,होता क्या इस बिन
  पर मुश्किल ने कब छोड़ा है
आज ऑक्सीजन का तोड़ा है
बुरा समय पर जब आता है
कई मुश्किलें संग लाता है
बचने का उपाय अपनाओ
रखो दूरियां ,मास्क लगाओ
वो अच्छे दिन भी आएंगे
सबको जो राहत लाएंगे
ईश्वर हमें सहारा देगा
बुरा वक़्त ये नहीं रहेगा
अगर प्यार है जो अपनों से
काम करें ,केवल ना कोसें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

संकल्प

ऐसा कोरोना वायरस है कहर ढा रहा ,
घुस कर के फेंफड़ों में वो हर एक बीमार में
घर घर में  फैला  ,सब ही परेशान दुखी है ,
 लोगों की भीड़ लग रही है अस्पताल में
जंगल से ,दरख्तों से खुले आम मिले थी ,
कुदरत मुफत में बांटती थी जिसको प्यार में
ऑक्सीजन प्राणदायिनी का  टोटा पड़ा है ,
वो बिक रही है आजकल कालाबाज़ार में
ये दोष नहीं मेरा ,तुम्हारा ,सभी का है
हमने प्रगति  के नाम पर प्रकृति बिगाड़ दी
जंगल हरे भरे थे ,हमने वृक्ष काट कर ,
कुदरत की नियामत थी जो उसको उजाड़ दी
और उस जगह कॉन्क्रीट के जंगल खड़े किये ,
बनवा के ऊंची ऊंची कितनी ही इमारतें
करनी का अपनी ही तो है हम फल भुगत रहे ,
बचना बड़ा मुश्किल है अब कुदरत की मार से
तो आओ पश्चाताप करें ,माफ़ी मांग कर ,
कुदरत की इस जमीन को कर दे हरा भरा
जितने भी काटे ,उससे दूने वृक्ष ऊगा दें ,
आओ संवार  फिर से दें ,हम अपनी ये धरा
फिर से लगे बहने वो हवा प्राणदायिनी ,
पर्यावरण सुधरे और बहे नदिया और नाले
पंछी की चहक हो जहाँ फूलों की महक हो
ऐसा निराला स्वर्ग हम धरती पर बसा लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

बचे हुए का फिर क्या होगा ?

यह कैसी बिमारी आयी
दुनिया भर में आफत छाई
कितने लोग बिमार पड़े है
बेबस और लाचार पड़े है
अस्पताल में 'बेड 'नहीं है
ऑक्सीजन की गैस नहीं है
है चपेट में इसकी घर घर
हम तुम में यदि आई किसी पर
बिछड़ा कोई ,दे गया धोखा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

जब जब यह ख़याल आता है
तो मन सिहर सिहर जाता है
जिसके संग संग जीवन काटा
पीड़ा, सुख दुःख मिल कर बांटा
बंधन जग के सभी तोड़ कर
चला गया यदि साथ छोड़ कर
बस  तनहाई  बचेगी बाकी
सूना सा जीवन एकाकी
अगर आ गया ऐसा मौका
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

चिंता यही सताती हर क्षण
फिर कैसे गुजरेगा जीवन
मन में सोच हमेशा इतना
कौन निभाएगा तब कितना
ख्याल रखेगा ,बढ़ी उमर में
अगर पड़ गए हम बिस्तर में
जब होंगे मुश्किल के मारे
तभी आएगा समझ हमारे
भेद पराये और अपनों का
बचे हुए का फिर क्या होगा?

सिर्फ कल्पना मात्र डराती
मन में व्याकुलता छा जाती
मैं  इतना ज्यादा डर जाता
नहीं ठीक से भी सो पाता
थोड़ा भावुक ,थोड़ा पागल
मैं तड़फा करता हूँ पल पल
जब कि पता कल किसने देखा
मिटता नहीं,नियति का लेखा
लिखा भाग्य का सबने भोगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

साथी अगर छूट जाता है
दुःख का पहाड़ टूट जाता है
क्योंकि उमर ज्यों ज्यों बढ़ती है
साथी की जरूरत पड़ती है  
रखते ख्याल एक दूजे का
तभी बुढ़ापा कटे मजे का
हम चाहे कितना भी चाहें
दोनों लोग साथ में जायें
ऐसा भाग्य मगर कब होगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

तुम्हे गोरैया, आना होगा

कभी सवेरे रोज चहक कर
हमें जगाती थी चीं चीं  कर
बच्चों सी  भरती  किलकारी
कहाँ गयी गौरैया  प्यारी
तुमसे बिछड़े ,बहुत दुखी हम
लुप्त कर रहा तुम्हे प्रदूषण
पर्यावरण बिगाड़ा हमने
तेरा नीड उजाड़ा हमने
हमने काटे जंगल सारे
हम सब है दोषी  तुम्हारे
किन्तु आज करते है वादा
पेड़ उगायेंगे हम ज्यादा
सभी तरफ होगी हरियाली
गूंजे चीं चीं ,चहक तुम्हारी
तरस रहे है कान हमारे
आओ ,फुदको,आंगन ,द्वारे
मौसम तभी सुहाना होगा
तुम्हे गौरैया ,आना होगा

घोटू 
लॉक डाउन में क्या करें

तुम फुर्सत में ,हम फुर्सत में
तंग हो गए इस हालत में
कब तक चाय पकोड़े खायें
टी वी देखें ,मन बहलायें
एकाकीपन ग्रस्त हो गए
लॉक डाउन से त्रस्त हो गए
सभी तरफ छाये सन्नाटे
अपना समय किस तरह काटें
यूं न करें ,कुछ पौधे पालें
आफत को अवसर में ढालें
किचन गार्डन  एक बनाकर
उसमे सब्जियां खूब उगाकर
कुछ गमलों में फूल खिला ले
कुछ में तुलसी पौध लगा ले
बेंगन ,तौरी ,खीरा ,घीया
हरी मिर्च ,पोदीना ,धनिया
बोयें तरह तरह की सब्जी
मीठा नीम और अदरक भी
सींचें इन्हे ,प्यार से पालें
अपना सच्चा मित्र बनालें
इनका साथ तुम्हे सुख देगा
जब देखोगे ,तुम्हे लगेगा
तुम्हे देख खुश हो जाता है
पत्ता पत्ता मुस्काता है
कलियाँ फूल बनी विकसेगी
तुमको कितनी खुशियां देंगी
फिर  पुष्पों से निकलेंगे फल
और बढ़ेंगे हर दिन ,पलपल
होता तुम विकास देखोगे
खुशियां आसपास देखोगे
खुशबू फूल बिखेरेंगे जब
और पौधे सब्जी देंगे जब
घर की सब्जी ताज़ी ताज़ी
 खायेंगे सब ,खुश हो राजी
उनका स्वाद निराला होगा
 तृप्ति दिलाने वाला होगा
जितना प्यार इन्हे हम देंगे
कई गुना वापस कर देंगे
इसीलिये तुम मेरी मानो
सच्चा मित्र इन्हे तुम जानो
सुख पाओ इनकी संगत में
 काम यही अच्छा फुर्सत  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

पग ,पैर और चरण

मैंने पद को लात मार दी ,अपने पैरों खड़ा हो गया
मंजिल पाने ,कदम बढ़ाये ,ऊंचाई चढ़ ,बड़ा होगया
प्रगति पथ पर ,मुझे गिराने ,कुछ लोगों ने टांग अड़ाई
लेकिन मैंने मार दुलत्ती ,उन सबको थी  धूल  चटाई
चढ़ा चरणरज मातपिता की अपने सर ,आशीषें लेकर
पाँव बढ़ाये ,महाजनो के पदचिन्हों की पगडण्डी पर
न की किसी की चरण वंदना ,न ही किसी के पाँव दबाये
पग पग आगे बढ़ा लक्ष्य को ,बिना गिरे ,बिन ठोकर खाये
पथ में आये ,हर पत्थर का ,मैं आभारी ,सच्चे दिल  से
जिनके कारण ,मैंने सीखा ,पग पग लड़ना ,हर मुश्किल से

घोटू 
कोरोना लाया बरबादी

दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है बरबादी
कितनो के ही प्राण हर लिए ,कई दुकाने बंद करवादी

रात चाँद धुंधला दिखता है और तारों की चमक खो गयी
पर्यावरण बहुत बिगड़ा है ,शुद्ध हवा दुश्वार हो गयी
जिन वृक्षों से ऑक्सीजन था मिलता ,हमने कटवा डाले
आज ऑक्सीजन के खातिर ,फिरते है हम मारे मारे
आज  फेंफड़े तरस रहे है ,शुद्ध हवा भी ना मिल पाती
दुष्ट कोरोना ऐसा आया , लेकर आया है  बरबादी  

बाज़ारों में सन्नाटा है ,हर जन है दहशत का मारा
श्रमिक गाँव को लौट रहे है ,तालाबंदी लगी दुबारा
भीड़ लग रही अस्पताल में ,नहीं मिल रहा बिस्तर खाली
प्राण दायिनी ,कई दवा की ,जम होती काला बाज़ारी
एक दूजे पर लगा रहे है लांछन ,हम सब है अपराधी
दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है  बरबादी

ना त्यौहार मन रहा कोई ,ना उत्सव ना भीड़भाड़ है
स्कूल कॉलेज बंद पड़े है , मॉल, सिनेमा सब उजाड़ है
कैसी गाज गिरी पृथ्वी पर ,कैसा कठिन समय यह आया
दुनिया के सारे देशों पर ,मंडरा रहा मौत का साया
रद्द हुए कितने आयोजन ,कितनो की शादी टलवा दी
दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है बरबादी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '   

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

लालच या बहानेबाजी

कहने को तो डाइटिंग पर चल रहे ,पर मिला न्योता ,
मुफ्त में मिल रही दावत ,चलो ज्यादा ठूस ही ले
सूख नीरस हुआ गन्ना ,जानते हम रस नहीं है ,
मुफ्त में पर मिल रहा है ,चलो थोड़ा चूस ही लें
पेट थोड़ा लूज़ है पर ,सालियान इसरार करती ,
ये भी खा लो ,वो भी खा लो ,टाल दें कैसे अनुग्रह
यार दोस्तों ने पिला दी ,हमें मालूम ,चढ़ गयी है ,
पेग पर हम पेग पीते ,भावना में जा रहे बह
थोड़ा लालच ,थोड़ी नीयत ,और कुछ भावुक हृदय हम ,
बात सबकी मानते ना तोड़ सकते दिल किसीका
डाइबिटीज भी हो गयी है ,और ब्लडप्रेशर बढ़ा है ,
कई बिमारी ग्रसित है ,मिल रहा है फल  इसीका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
रहो बच कर कोरोना से

दिनबदिन हो रहा  मुश्किल,कोरोना का खेल प्रियतम
रहो बच कर कोरोना से ,कष्ट कुछ दिन झेल  प्रियतम

पूर्णिमा के चाँद जैसा ,तुम्हारा आनन चमकता
और उस पर ,अधर सुन्दर से मधुर अमृत टपकता
गुलाबी ,अनमोल है ये ,रतन  चेहरे पर तुम्हारे
इन्हे ढक लो 'मास्क 'से तुम ,कोई ना नीयत बिगाड़े
नाक छिद्रों में सुहाने ,नित्य डालो तेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

हाथ ये कोमल कमल से ,हाथ कोई ना लगाये
इन्हे धो,रखना छिपाए ,कोई इनको छू न पाये
सभी से कुछ दूरियां तुम ,हमेशा रखना बनाकर
इसलिए बाहर न निकलो ,रखो तुम खुद को छुपाकर
भले ही बंधन तुम्हे ये ,लगे कुछ दिन जेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

टोकता रहता तुम्हे मैं ,मुझे लगता बहुत डर  है
तुम भी उन्नीस ,वो भी उन्नीस ,भटकने वाली उमर है
इसलिए 'वेक्सीन 'लगवा ,बनाकर हथियार इनको
कोप से इस महामारी के बचा रखना स्वयं को
कोरोना से ना कभी भी ,हो तुम्हारा मेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

चोर का चक्कर

कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला
जिस ओर न जाना चाहा था,मुझको जीवन उस ओर  मिला

वो मेरी ओर देख कर के ,बस थोड़ा सा मुस्काई थी
पर ये अंदाज ,अदा प्यारी ,कुछ ऐसी मन को भायी थी
उसकी उस पहली एक झलक ने चुरा लिया मेरे दिल को
संग चुरा ले गयी ,चैन ,नींद ,कुछ कह न सका उस कातिल को
उसके संग मिल ,चोरी चोरी ,मैंने सीखा चोरी का फ़न
उसके रस भीने ,होठों से ,कितने ही चुरा लिए चुंबन
पूरा जीवन ,उस संग काटा ,ऐसा मुझको ,चितचोर मिला
कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला

मैं रहा भटकता ,ठौर ठौर ,लेकिन जब कोई ठौर मिला
तो मुझे वहां भी ,वो नटखट ,कान्हा था माखन चोर मिला
भोली भाली ,गोपी सखियाँ और राधा का दिल लिया चुरा
एक रोज अचानक भाग गया ,कर गया पलायन वो मथुरा
कोई कामचोर ,कोई दामचोर ,चोरों से पाला पड़ा सदा
वो मुझसे नज़र चुराता है ,अहसानो से ,जो मेरे लदा
मुझसे जो भी आ टकराया ,वो चोरी में सिरमौर मिला
कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक इलाज -ऐसा भी

अक्सर पतले लोगों की ,कम होती है ,प्रतिरोधक क्षमता
इस कारण ही ,बिमारी का ,रोगाणु है उन्हें  जकड़ता
पर मोटों के तन में होती ,परत एक चर्बी की मोटी
इसीलिए रोगाणु को तन में घुसने में ,दिक्कत होती
अगर रोग प्रतिरोधक बनना ,तो तन पर चर्बी रहने दो
बिमारी से ,बचके रहोगे ,मोटा लोग कहे ,कहने दो
इसीलिए तुम छोडो 'स्लिम बॉडी 'जीरो फिगर 'का चक्कर
अच्छा खाओ ,मौज उड़ाओ ,छोड़ डाइटिंग ,खाओ जी भर
 इसी तरह जब हम खाते है तेज मसाले ,भरी कचौड़ी
या तीखा पानी भर पुचके ,या फिर चाट चटपटी थोड़ी
आँख नाक से पानी बहता ,सी सी सी सी करते जाते
किन्तु स्वाद के मारे हम तुम ,बड़े चाव से ये सब खाते
हमें विटामिन सी मिलता है ,जब हम खाते ,सी सी करते
कोरोना के कीटाणु भी ,तेज  मसालों  से  है डरते
चाट चटपटी ,खाने से जब ,आँख नाक से ,बहता पानी
भगे वाइरस ,छिपे नाक में ,आती याद, उन्हें है नानी
इसीलिये यदि ,हम सबको है ,रोग कोरोना से जो  बचना
हो सकता है ,असर दिखा दे ,ये भी तरीका देखो अपना
छोड़ डाइटिंग ,जम कर खाओ ,तन पर चढ़े ,परत चर्बी की
खाओ चटपटा ,सी सी करते ,रहे कमी न विटामिन सी की
खाओ सेव ,झन्नाट कचौड़ी ,आँख नाक से पानी टपके
और कोरोना के कीटाणु ,भागे निकल ,रहे ना छिपके

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

मैं अस्सी का
 
अब मैं बूढ़ा बाईल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ  मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

धीरे धीरे  बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री  छायी ,बदन मेरा बेहाल  हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

 अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी  लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का

बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
खिचड़ी और हलवा

दाल लेते ,चावल लेते , पकाते  दोनों  अलग ,
मिला कर दोनों को खाने का निराला ढंग है  
मिलते पर जब दाल चावल ,तो है बनती खिचड़ी ,
स्वाद देती है अनोखा ,जब भी पकती संग है
चावल जैसी तुम अकेली ,दाल सा तनहा था मैं ,
जब मिले संयोग से  तो  बात फिर आगे  बढ़ी  
जिंदगी के ताप में जब  पके संग संग ,एक हो ,
स्वाद अच्छा ,पचती जल्दी,बने ऐसी खिचड़ी
वो ही गेंहूं ,वो ही आटा ,सान कर रोटी बनी ,
कभी सब्जी साथ खायी ,कभी खायी दाल संग
मगर उस आटे को भूना घी जो देशी डाल कर,
चीनी डाली ,बना हलवा ,छा गए स्वादों के रंग
अब ये हम पे है कि कैसे , जियें अपनी जिंदगी ,
दाल चावल सी अलग या खिचड़ी बन स्वाद ले    
आटे की बस  सिर्फ रोटी बना  खायें  उमर भर ,
या कि फिर हलवा बना कर ,नित नया आल्हाद लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नव  वर्ष की शुभकामना

ऐसा  यह  नूतन वर्ष रहे  
खुशियां बरसे और हर्ष रहे

ना रहे कोरोना धरती पर
आ जाए जिंदगी पटरी पर
सबका दुःख और संताप घटे
हर चेहरे पर से मास्क हटे
फिर रौनक हो बाज़ारों में
फिर मस्ती हो त्योंहारों में
फिर से पनपे भाईचारा
खुशहाल रहे ये जग सारा
हर जीवन में ,उत्कर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

मियां बीबी में प्यार बढे
पत्नीजी तुमसे नहीं लड़े
कोई ना बोले बड़े बोल
हो परिवार में मेलजोल
तन स्वस्थ रहे मन मस्त रहे
अच्छे दिन को आश्वस्त रहे
छोटे  बुजुर्ग का ध्यान रखे
उनके अनुभव का मान रखे
जीवन में कम संघर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

घोटू 
नव  वर्ष की शुभकामना

ऐसा  यह  नूतन वर्ष रहे  
खुशियां बरसे और हर्ष रहे

ना रहे कोरोना धरती पर
आ जाए जिंदगी पटरी पर
सबका दुःख और संताप घटे
हर चेहरे पर से मास्क हटे
फिर रौनक हो बाज़ारों में
फिर मस्ती हो त्योंहारों में
फिर से पनपे भाईचारा
खुशहाल रहे ये जग सारा
हर जीवन में ,उत्कर्ष रहे
ऐसा यह नूतन वर्ष रहे

घोटू 

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

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दबदबा पत्नी का

रखती तू मुझको दबाकर ,तुझसे दब कर रहता मैं ,
किन्तु जब सर दर्द करता ,तो दबाती है तू ही
थके पावों को दबा कर ,देती है राहत मुझे ,
मानसिक सब दबाबों में ,मुझको समझाती तू ही
अपनी बाहों में दबा कर , देती सुख की नींद है ,
बाँध कर निज बाजूवों  में  लगा लेती  जब गले  
प्यार का दबदबा  तेरा ,देता परमानन्द है ,
अच्छा लगता ,दब के रहना  तेरे अहसानो  तले
दबा कर के दर्द पीड़ा और आंसूं आँख में ,
मुस्करा कर ,मिलती जुलती ,काम में रहती फंसी
कभी ममतामयी माँ तू ,तो सुशीला बहू भी ,
कभी घर की व्यवस्थापक ,कभी पति की प्रेयसी
छोटी छोटी बात में ,कितना ही झगड़े रात में ,
प्यार से बस तू ही देती ,सुबह प्याला चाय का
तेरा मेरा रिश्ता सच्चा ,लबालब है प्यार से ,
जिसने चख्खा, वो ही जाने ,दबदबे का जायका
लोग कहते ,तुझसे डरता ,दब्बू और डरपोक मैं ,
मानता हूँ ,सच है ये ,पर मुझे इसका गम नहीं
झांकअपने गिरेबां में देखेगा तो पायेगा
बीबी से दबने में कोई भी किसी से कम नहीं  
पत्नी से दब कर के रहने  का मज़ा ही और है ,
जिसने पाया,सुख उठाया ,ना मिला ,वो बदनसीब
आपकी हर एक  हरकत पे नज़र बीबी की है ,
वो ही सुख दुःख बुढ़ापे में ,आपके रहती करीब

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम मुझे मंजूर हो

चाँद का टुकड़ा नहीं ,जन्नत की ना तुम हूर हो
यार तुम ,जैसी भी हो,जो हो,मुझे मंजूर हो

रूप परियों सा नहीं तो मेरे मन में गम नहीं
सच्चे दिल से चाहती हो ,तुम मुझे ये कम नहीं
तुममे अपनापन है ,मन में समर्पण का भाव है
गरिमा व्यक्तित्व में  है , सोच में ठहराव है
ना सुरा ना जाम तुम पर नशे से भरपूर हो
यार तुम जैसी भी हो ,जो हो ,मुझे मंजूर हो

 गुलाबों की नहीं रंगत बदन में ,पर महक तो है
लरजते इन लबों पर पंछियों  जैसी ,चहक तो है
तेरी आँखों में तारों सी ,चमक है ,जगमगाहट है
छुवन में प्यार, उल्फत की ,गर्मजोशी की आहट है
तुम बसी हो दिल में मेरे , मेरे मन का नूर हो
यार तुम ,जैसी भी  हो ,जो हो ,मुझे मंजूर हो
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

वो दिन प्यारे नहीं  रहे

डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे

संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
 वो  संयुक्त गृहस्थी का सुख  ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा  जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए  
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा  बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
वो दिन प्यारे ना रहे

डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे

संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
 वो  संयुक्त गृहस्थी का सुख  ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा  जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए  
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा  बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना और हम

एक बरस में कोरोना ,आ पहुँचा  दूजे दौर में
प्यार के पहले चरण में ,अब भी है ,तू और मैं

कोरोना से बचना तो रखनी बना कर दूरियां
और हमारी दिनोदिन बढ़ रही है नज़दीकियां
लॉक डाउन कोरोना ने कर रखा  शहरों शहर
लॉक डाउन में  बंधे  रहते है हम शामो सहर
जोश तुम्हारा है कायम ,ना पड़ा कमजोर मैं
प्यार के पहले चरण में ,अब भी है. तू और मैं

मुंह पे पट्टी बाँध  बचना  कोरोना से  हिदायत
होठ तेरे और मेरे ,बंध के करते शरारत
हाथ धोवो ,कोरोना से ,बचोगे तुम हर कदम
हाथ धोकर ,एक दूजे के ,पड़े पीछे है हम
बढ़ती जाती कामनाएं ,दिल ये मांगे मोर में
प्यार के पहले चरण में ,अब भी है,तू और मैं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

ओ भूमण्डल  की सुंदरियों

ओ इस धरती की ललनाओं ,ओ भूमण्डल की सुंदरियों
तुम रूप का अमृत बरसाओ ,जुगजुग जियो जुगजुग जियो

सब देवलोक की अप्सरा , देवों के खातिर आरक्षित
करती मनरंजन बस उनका ,यह बात सर्वथा है अनुचित
देवताओं ने कर रख्खा है ,उन पर अपना एकाधिकार
उनको चिर यौवन देकर वो ,सुख उठा रहे ,पा रहे प्यार
पृथ्वी पर उनसे भी सुन्दर ,है रमणी कई रूपवाली
पर कुछ वर्षों में खो देती,निज यौवन ,चेहरे की लाली
इसलिए ख्याल रख्खो अपना ,मेकअप का टॉनिक रोज पियो
तुम रूप का अमृत बरसाओ ,जुगजुग जियो ,जुगजुग जियो  

अपने तन की शोभा ,कसाव ,अक्षुण  रखना आवश्यक है
जब तक हो सके जवां रहना ,यह तुम्हारा भी तो हक़ है
लाली लगाओ तुम होठों पर ,और रखो गुलाबी गालों को
अच्छे शेम्पू ,कंडीशनर से ,तुम रखो मुलायम बालों को
आँखों को करके कजरारी ,नैनों के बाण चलाओ तुम
बन जाओ उर्वशी धरती की ,सबके उर में बस जाओ तुम
नखरे और अदा दिखा कर के ,सबका दिल लूटो सुंदरियों
तुम रूप का अमृत बरसा कर ,जुगजुग जियो ,जुगजुग जियो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुबह सुबह होती है

सुबह सुबह होती है
ओस की बूँदें भी ,
बन जाती मोती है

बचपन जैसी निश्छल
धुली धुली  कोमल सी
मंद समीरण जैसी ,
कुछ चंचल चंचल सी
तरु के नव किसलय सी ,
खिलती हुई कली सी
खुशबू से महक रही ,
लगती है भली सी
अम्बर में तैर रही ,
एक पगली बदली सी
कुछ उजली उजली सी ,
कुछ धुंधली धुंधली सी
फुदक रहे पंछी सी ,
चहक रही चिड़िया सी
टुकुर टुकुर देख रही ,
नन्ही सी गुड़िया सी
थकी हुई रजनी ज्यों ,
लेती अंगड़ाई सी
आलस को भगा रही ,
आती जम्हाई सी
बालों को सुलझा कर ,
चमक रहे आनन की
हाथ में झाड़ू ले
बुहारते आँगन सी
पनिहारिन के सर पर ,
छलक रही गगरी सी
चाय की चुस्की सी
कुरमुरी मठरी सी
बछड़े की रम्भाहट
गाय के दूहन सी
मंदिर की घंटी सी ,
और घिसते चन्दन सी
सूरज की आभा जब ,
ज्योतिर्मय होती है
शुरुवात शुभ दिन की ,
सभी जगह होती है
सुबह, सुबह होती है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

इम्युनिटी

रूपसी (C ),रूपसी (C )
कोई ना तुमसी (C )हसीं  (C )
बहुत मादक छवि तुम्हारी ,
तुम मेरे मन बसी (C )
तुम्हारी हर अदा प्यारी ,
और प्यारी है हंसी (C )
मुझपे तुम अहसान कर दो ,
बन के मेरी प्रेयसी (C )
क्योंकि मेरी जिंदगी में ,
आ गयी है  बेबसी (C )
कोरोना के जाल में है ,
जिंदगी मेरी फंसी (C )
और तुममे प्रचुर मात्रा ,
में भरा विटामिन (C )
तुम मिलोगी तो मेरी ,
बढ़ जायेगी फिर इम्युनिटी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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