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सोमवार, 3 मई 2021

संडे की सुबह

संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात सेटरडे वाली होती है
अलसाये से और उनींदे ,थके हुए,
तन की मस्ती की बात निराली होती है

पत्नी बाहों में बांह डाल  कर ये बोले ,
देखो कितना दिन चढ़ आया ,उठ जाओ
सच्चा प्यार तुम्हारा तब ही जानूँगी ,
अपने हाथों से चाय बना कर पिलवाओ
अमृत से  ज्यादा स्वाद और मन को भाती ,
तुम्हारी बनी ,चाय की प्याली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है
जब बीती रात  सेटरडे वाली होती है

उत्सव जैसा ये दिन आता है हफ्ते में ,
पूरे दिन आराम ,मस्त खाना ,पीना
ना दफ्तर की फ़िक्र ,काम की ना चिंता ,
मौज और मस्ती से मन माफिक जीना
सन्डे सुबह बिखरते है रंग होली के ,
और सन्डे की रात दिवाली होती है
संडे की सुबह मज़ा तब ही तो आता है ,
जब बीती रात ,सेटरडे वाली होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


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