आओ कुछ खुशियां बिखरायें
गुमसुम मुरझाये चेहरों पर ,जरा मुस्कराहट फैलाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
बहुत दिन हुए गप्पें मारे अपनों के संग वक़्त गुजारे
घर में ही घुस कर बैठे है ,सबके सब , कोरोना मारे
टी वी देखो,समाचार सुन,उल्टा मन भरता है डर से
रामा जाने ,दूर हटेगी कब ये आफत ,सबके सर से
कर देती लाचार सभी को ,आती जाती ये विपदाएं
आओ कुछ खुशियां बरसायें
सहमे सहमे दुबके है सब ,उडी हुई चेहरे की रंगत
हर कोई पीड़ित चिंतित है सबके मन में छायी दहशत
गौरैया की तरह हो गयी ,हंसी आज चेहरे से गायब
मार ठहाके ,यार दोस्त संग ,हंसना भूल गए है अब सब
बुझे हुए अंधियारे मन में ,आशा की हम किरण जगाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
किन्तु करेंगे हम ये कैसे ,ना सुनते अब लोग लतीफे
लड्डू,पेड़ा ,गरम जलेबी ,सब पकवान लग रहे फीके
न तो पार्टी ना ही महफ़िल ,ना उत्सव ,त्योंहार मनाना
दो गज दूरी ,मुंह पर पट्टी ,बंद हुआ सब आना जाना
कोई के प्रति ,तो फिर कैसे ,अपने भावों को दर्शाएं
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
इस विपदा में साथ दे रहा है सबका ,अपना मोबाईल
बस उसको सहला ऊँगली से ,लोग लगाते है अपना दिल
तो क्यों न हम मोबाईल पर ,हालचाल अपनों का जाने
कभी ज़ूम पर मीटिंग करके मिले जुलें ,मन को बहलाने
देख एक दूजे की सूरत ,मन में कुछ सुकून तो आये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
मदन मोहन बहती 'घोटू '
गुमसुम मुरझाये चेहरों पर ,जरा मुस्कराहट फैलाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
बहुत दिन हुए गप्पें मारे अपनों के संग वक़्त गुजारे
घर में ही घुस कर बैठे है ,सबके सब , कोरोना मारे
टी वी देखो,समाचार सुन,उल्टा मन भरता है डर से
रामा जाने ,दूर हटेगी कब ये आफत ,सबके सर से
कर देती लाचार सभी को ,आती जाती ये विपदाएं
आओ कुछ खुशियां बरसायें
सहमे सहमे दुबके है सब ,उडी हुई चेहरे की रंगत
हर कोई पीड़ित चिंतित है सबके मन में छायी दहशत
गौरैया की तरह हो गयी ,हंसी आज चेहरे से गायब
मार ठहाके ,यार दोस्त संग ,हंसना भूल गए है अब सब
बुझे हुए अंधियारे मन में ,आशा की हम किरण जगाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
किन्तु करेंगे हम ये कैसे ,ना सुनते अब लोग लतीफे
लड्डू,पेड़ा ,गरम जलेबी ,सब पकवान लग रहे फीके
न तो पार्टी ना ही महफ़िल ,ना उत्सव ,त्योंहार मनाना
दो गज दूरी ,मुंह पर पट्टी ,बंद हुआ सब आना जाना
कोई के प्रति ,तो फिर कैसे ,अपने भावों को दर्शाएं
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
इस विपदा में साथ दे रहा है सबका ,अपना मोबाईल
बस उसको सहला ऊँगली से ,लोग लगाते है अपना दिल
तो क्यों न हम मोबाईल पर ,हालचाल अपनों का जाने
कभी ज़ूम पर मीटिंग करके मिले जुलें ,मन को बहलाने
देख एक दूजे की सूरत ,मन में कुछ सुकून तो आये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें
मदन मोहन बहती 'घोटू '
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंयथास्थिति, सुंदर रचना
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