खिचड़ी और हलवा
दाल लेते ,चावल लेते , पकाते दोनों अलग ,
मिला कर दोनों को खाने का निराला ढंग है
मिलते पर जब दाल चावल ,तो है बनती खिचड़ी ,
स्वाद देती है अनोखा ,जब भी पकती संग है
चावल जैसी तुम अकेली ,दाल सा तनहा था मैं ,
जब मिले संयोग से तो बात फिर आगे बढ़ी
जिंदगी के ताप में जब पके संग संग ,एक हो ,
स्वाद अच्छा ,पचती जल्दी,बने ऐसी खिचड़ी
वो ही गेंहूं ,वो ही आटा ,सान कर रोटी बनी ,
कभी सब्जी साथ खायी ,कभी खायी दाल संग
मगर उस आटे को भूना घी जो देशी डाल कर,
चीनी डाली ,बना हलवा ,छा गए स्वादों के रंग
अब ये हम पे है कि कैसे , जियें अपनी जिंदगी ,
दाल चावल सी अलग या खिचड़ी बन स्वाद ले
आटे की बस सिर्फ रोटी बना खायें उमर भर ,
या कि फिर हलवा बना कर ,नित नया आल्हाद लें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दाल लेते ,चावल लेते , पकाते दोनों अलग ,
मिला कर दोनों को खाने का निराला ढंग है
मिलते पर जब दाल चावल ,तो है बनती खिचड़ी ,
स्वाद देती है अनोखा ,जब भी पकती संग है
चावल जैसी तुम अकेली ,दाल सा तनहा था मैं ,
जब मिले संयोग से तो बात फिर आगे बढ़ी
जिंदगी के ताप में जब पके संग संग ,एक हो ,
स्वाद अच्छा ,पचती जल्दी,बने ऐसी खिचड़ी
वो ही गेंहूं ,वो ही आटा ,सान कर रोटी बनी ,
कभी सब्जी साथ खायी ,कभी खायी दाल संग
मगर उस आटे को भूना घी जो देशी डाल कर,
चीनी डाली ,बना हलवा ,छा गए स्वादों के रंग
अब ये हम पे है कि कैसे , जियें अपनी जिंदगी ,
दाल चावल सी अलग या खिचड़ी बन स्वाद ले
आटे की बस सिर्फ रोटी बना खायें उमर भर ,
या कि फिर हलवा बना कर ,नित नया आल्हाद लें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।