वो दिन प्यारे नहीं रहे
डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे
संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
वो संयुक्त गृहस्थी का सुख ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
डियर,डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दो तन एक जान वाले वो ,दावे सारे नहीं रहे
संगेमरमर सी सुन्दर तुम ,ताजमहल सी लगती थी
मुलाक़ात घंटों की तुमसे ,पल दो पल सी लगती थी
नींद नहीं आती थी और हम रात रात भर जगते थे
डूबे रहते ,सदा प्यार में ,हम दीवाने लगते थे
नाज़ और नखरे मनभाते ,अब वो तुम्हारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
चाचा ताऊ दादा दादी ,साथ साथ सब रहते थे
घर में कितनी रौनक रहती ,बच्चे सभी चहकते थे
मिल कर के त्योंहार मनाते ,होली और दिवाली सब
छायी रहती थी जीवन में ,मस्ती और खुश हाली तब
वो संयुक्त गृहस्थी का सुख ,भाईचारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
हाथों से पंखा डुलता ,मटकी का पानी पीते थे
मेहनत करते ,चलते फिरते ,लम्बी आयु जीते थे
ईर्ष्या द्वेष नहीं था मन में ,सीधासादा जीवन था
काम आना सुखदुख में सबके ,आपस में अपनापन था
स्वागत करने ,अतिथियों का ,बांह पसारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
दौड़ आधुनिकता की अंधी में, हम मर्यादा भूल गए
बहे हवा में पश्चिम की निज संस्कृति के प्रतिकूल गए
वृक्षों की पूजा करना और पंछी को देना दाना
चींटी को आटा बिखराना ,नव पीढ़ी ने ,कब जाना
संस्कार पहलेवाले सब ,अब वो हमारे नहीं रहे
डियर डार्लिंग ,इलू इलू के ,वो दिन प्यारे नहीं रहे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुन्दर प्रस्तुति
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