मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं अब हूँ कंगाल बिचारी
मेरी कुछ भी खता नहीं थी ,फिर भी मुझको गया सताया
बुरे वक़्त के लिए बचाया ,पैसा कुछ भी काम न आया
बूँद बूँद कर बचत करी थी,कभी इधर से ,कभी उधर से
तनिक बचाई घर खर्चों से ,बिदा मिली कुछ माँ के घर से
कुछ उपहार मिली भैया से ,जब उसको राखी बाँधी थी
पति से छुपा रखी कुछ पूँजी ,लेकिन क्या मैं अपराधी थी
नए पांच सौ और हज़ार के ,कडक नोट में बदल रखी थी
वक़्त जरूरत काम आएगी ,अब तक सबसे रही ढकी थी
आठ नवम्बर ,आठ बजे पर ,ऐसी आयी रात घनेरी
मोदीजी के एक कदम ने ,सारी पोल खोल दी मेरी
मेरे सारे अरमानो पर,,वज्रपात कुछ बरपा ऐसा
सारा धन हो गया उजागर , कागज मात्र रह गया पैसा
चोरी छुपे बचाये पैसे ,गिनने की वो ख़ुशी खो गयी
मालामाल हुआ करती थी ,पल भर में कंगाल हो गयी
अब मैं ,मइके में जाकर के ,खुला खर्च ना कर पाउंगी
अब बेटी को ,चुपके चुपके , गहने नहीं दिला पाउंगी
छोटी मोटी हर जरुरत पर ,हाथ पसारूँगी ,पति आगे
'सेल' लगी तो जा न पाऊँगी ,बिना पति से पैसा मांगे
भले देश हित में मोदीजी, तुमने अच्छा कदम उठाया
लेकिन बचत प्रिया गृहणी को ,पैसे पैसे को तरसाया
कोड़ी कोड़ी जोड़ी मेरी ,बचत तो नहीं थी धन काला
फिर क्यों इतनी बेदर्दी से ,अलमारी से उसे निकाला
बैंको की लम्बी लाइन में ,लग कर पड़ा जमा करवाना
ज्यादा पैसे अगर हुए तो , देना पड़ सकता जुर्बाना
पैसा था जब तलक गाँठ में ,तब तक थी गर्वीली,सबला
मुझसी सीधी सादी गृहणी, आज हो गयी ,फिर से अबला
रूपये रूपये ,मोहताज हो गयी ,देखो कैसी है लाचारी
मोदीजी ,तुम्हारी मारी, अब मैं हूँ कंगाल बिचारी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'