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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

दो पन्नो से ज्यादा ...

अक्सर इन्सान  कहता है,
मेरी हयात(जिंदगी) ....
"एक खुली किताब की तरह है "

क्या कभी किसी ने ,
खुली किताब को,
 दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

जमाने का हर शक्स ,
खुद में पोशीदा नज़र आता है.

क्या तुमने,
किसी शक्स की, किताब में लिखे ,
"हर एक अफसाने का सच देखा है"'???




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