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रविवार, 14 अगस्त 2016

आजादी-दो चतुष्पदी

आजादी-दो चतुष्पदी

पहले हम जो गाली देते ,तो जुबान गन्दी होती थी
खुलेआम,अंटशंट कहने पर ,थोड़ी पाबन्दी होती थी
लेकिन आई 'फेसबुक'जब से ,व्हाट्सएप का मिला तन्त्र है
बिना जुबान किये गन्दी अब,हम गाली देने स्वतंत्र है

जब शादी का बन्धन बंधता ,तो हम हो जाते गुलाम हैं
एक इशारे पर पत्नी के ,नाचा करते सुबह शाम  है
खुश होते यदि बीच बीच में ,थोड़ी आजादी मिल जाती
किन्तु क्षणिक ,कुछ दिन में पत्नी, मइके से वापस आजाती

घोटू 


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