कौन कहता तुम पुरानी
नहा धो श्रृंगार करके
और थोड़ा सजसंवर के
भरी लगती ताजगी से
एक नूतन जिंदगी से
प्यार खुशबू से महकती
पंछियों जैसा चहकती
वही प्यारी सी सुहानी
कौन कहता तुम पुरानी
वो ही सुंदरता ,सुगढ़ता
प्यार आँखों से उमड़ता
प्रेम वो ही ,वो ही चाहत
वो ही पहली मुस्कराहट
राग वो ही साज वो ही
प्यार का अंदाज वो ही
हो गयी थोड़ी सयानी
कौन कहता तुम पुरानी
नाज वो ही वो ही नखरे
और कातिल वो ही नज़रें
वो ही चंचलता ,चपलता
सादगी वो ही सरलता
वो ही मस्तानी अदायें
आज भी मुझको रिझायें
प्रेम करती हो दीवानी
कौन कहता तुम पुरानी
वो ही शरमाना ,सताना
रूठ जाना और मनाना
वो ही पहले सी नज़ाकत
शोखियाँ वो ही शरारत
हंसी वो ही खिलखिलाती
आज भी बिजली गिराती
तुम हो मेरी राज रानी
कौन कहता तुम पुरानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नहा धो श्रृंगार करके
और थोड़ा सजसंवर के
भरी लगती ताजगी से
एक नूतन जिंदगी से
प्यार खुशबू से महकती
पंछियों जैसा चहकती
वही प्यारी सी सुहानी
कौन कहता तुम पुरानी
वो ही सुंदरता ,सुगढ़ता
प्यार आँखों से उमड़ता
प्रेम वो ही ,वो ही चाहत
वो ही पहली मुस्कराहट
राग वो ही साज वो ही
प्यार का अंदाज वो ही
हो गयी थोड़ी सयानी
कौन कहता तुम पुरानी
नाज वो ही वो ही नखरे
और कातिल वो ही नज़रें
वो ही चंचलता ,चपलता
सादगी वो ही सरलता
वो ही मस्तानी अदायें
आज भी मुझको रिझायें
प्रेम करती हो दीवानी
कौन कहता तुम पुरानी
वो ही शरमाना ,सताना
रूठ जाना और मनाना
वो ही पहले सी नज़ाकत
शोखियाँ वो ही शरारत
हंसी वो ही खिलखिलाती
आज भी बिजली गिराती
तुम हो मेरी राज रानी
कौन कहता तुम पुरानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुन्दर कविता
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