एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

तरसाते बादल

अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल
पता नहीं क्या कारण ,बरस नहीं पाते पर
चुगलखोर हवाओं से ,क्या लगता इनको डर
मज़ा ले रहे है या  बस तरसा  तरसा कर
तड़ित सी आँख मार ,घुमड़ करे छेड़छाड़ ,
लगता ये आवारा , निकले  है  तफरी पर
या पृथ्वी हलचल पर ,रखने को खास नज़र ,
अम्बर ने भेजा है ,अपना ये गश्ती दल
या कि थक गया सूरज ,ग्रीष्म में तप तप कर
 ओढ़ कर सोया है ,बादल की यह चादर
या फिर ये वृद्ध हुए ,घुमड़ते तो रहते है ,
क्षीण हुये है  जल से ,बरस नहीं  पाते पर
या कि परीक्षा लेते ,धरती के धीरज की ,
विरह पीड़ में तड़फा ,उसे कर रहे पागल
अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-