तरसाते बादल
अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल
पता नहीं क्या कारण ,बरस नहीं पाते पर
चुगलखोर हवाओं से ,क्या लगता इनको डर
मज़ा ले रहे है या बस तरसा तरसा कर
तड़ित सी आँख मार ,घुमड़ करे छेड़छाड़ ,
लगता ये आवारा , निकले है तफरी पर
या पृथ्वी हलचल पर ,रखने को खास नज़र ,
अम्बर ने भेजा है ,अपना ये गश्ती दल
या कि थक गया सूरज ,ग्रीष्म में तप तप कर
ओढ़ कर सोया है ,बादल की यह चादर
या फिर ये वृद्ध हुए ,घुमड़ते तो रहते है ,
क्षीण हुये है जल से ,बरस नहीं पाते पर
या कि परीक्षा लेते ,धरती के धीरज की ,
विरह पीड़ में तड़फा ,उसे कर रहे पागल
अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल
पता नहीं क्या कारण ,बरस नहीं पाते पर
चुगलखोर हवाओं से ,क्या लगता इनको डर
मज़ा ले रहे है या बस तरसा तरसा कर
तड़ित सी आँख मार ,घुमड़ करे छेड़छाड़ ,
लगता ये आवारा , निकले है तफरी पर
या पृथ्वी हलचल पर ,रखने को खास नज़र ,
अम्बर ने भेजा है ,अपना ये गश्ती दल
या कि थक गया सूरज ,ग्रीष्म में तप तप कर
ओढ़ कर सोया है ,बादल की यह चादर
या फिर ये वृद्ध हुए ,घुमड़ते तो रहते है ,
क्षीण हुये है जल से ,बरस नहीं पाते पर
या कि परीक्षा लेते ,धरती के धीरज की ,
विरह पीड़ में तड़फा ,उसे कर रहे पागल
अम्बर में छाये है ,बादल के दल के दल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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