जाने कहाँ गए वो दिन
याद आते है हमें वो दिन
जब जवानी के चमन में ,
मुस्कराती थी कलियाँ हसीन
हमेशा रहता था मौसम बहार का
हमारी भवरें सी नज़रें ,
टॉनिक पियां करती थी उनके दीदार का
लहराती जुल्फें ,हिरणी सी नज़र
गुलाबी गाल,रसीले अधर
मोती सी दन्त लड़ी,कातिल मुस्कान
मीठी सी बोली जैसे कोयल का गान
याने पूरा का पूरा चन्द्रमुख दिखता था
प्यार जल्दी हो जाता देर तक टिकता था
पर अब इस कोरोना के खौफ ने ,
ऐसा सितम ढाया है
हर हसीन चेहरे को मास्क में छुपाया है
किसी भी लड़की को देखो ,
बस दिखती है दो चमकती आँखें
और अपना बाकी चेहरा ,
रखती है वो मास्क में छुपाके
अब हम उन्हें कितना भी देखे घूर के
नजदीक से या दूर से
पता ही नहीं लगता उनका मुख कैसा है
उनके रुखसारों का रुख कैसा है
गुलाबी है या पीले है
कसे हुए है या ढीले है
चिकने है या उनपर पिम्पल है
हँसते तो क्या गालों पर पड़ते डिम्पल है
सुंदरता के सब पैमाने
उनने छुपा रखें है अनजाने
पूरी की पूरी नाक ढकी रहती है
पता नहीं साफ़ है या बहती है
पतली है या मोटी है
तिकोनी है या बोठी है
तोते सी है या समोसे सी है
पता ही नहीं लग पाता ,कैसी है
उनके 'अपर लिप्स 'पर बाल तो नहीं है
मर्दों जैसा हाल तो नहीं है
और चेहरे के सबसे मतवाले
सब से ज्यादा काम में आनेवाले
याने की उनके होठों का क्या हाल है
डार्क है या लाल है
मोटे है या पतले है
सूखे है या रस से भरे है
चिकने है या उजाड़ है
छोटी है या लम्बी ,उनकी मुंहफाड़ है
और उनकी दंत लड़ी
मोती सी सफ़ेद है या पीली पड़ी
टेढ़े मेढे है या सीधे दिखलाते है
होठों के बाहर तो नहीं नज़र आते है
सबकुछ ढका रहने से खुल न पाता राज़
कैसा है उनकी मुस्कराहट का अंदाज
उनकी हंसी कातिल है कि नहीं
उनके होठों या गालों पर,तिल है कि नहीं
और उनकी ठोड़ी
तीखी है या बैठी हुई है निगोड़ी
गोया उनका पूरा मुखड़ा
लम्बा पतला है या गोल चाँद का टुकड़ा
और उनकी बोली मधुर है या भर्राई
मास्क के कारण ये बात समझ ना आई
बस फुसफुसाहट ही देती है सुनाई
समझ ही नहीं पाता ये दिमाग है
कोकिला सी मधुर है या काग है
तो जब चेहरे की सुंदरता का सब सामान
जब पूरा ही ढका रहता है श्रीमान
तो ये अंदाज लगाना भी मुश्किल हो जाता ,
कि सामनेवाली बूढी है या जवान
बस दो घूरती हुई आँखें
और हम क्या ताकें
हम देख ही नहीं पाते
उनके चेहरे का नूर
परी है या हूर
बदसूरत है या हसीन
प्रोढ़ा है या कमसिन
ऐसे में तो बस नैन लड़ सकते है
पर इश्क़ में कैसे आगे बढ़ सकते है
क्योकि जब तक ना हो पूरा दीदार
कैसे हो सकता है प्यार
फिर मॉल ,सिनेमा ,गार्डन और रेस्त्रारंट
सब पड़े है बंद
डेटिंग पर जाने का स्कोप नहीं है
दोनों के मुंह पर मास्क है ,
चुंबन की भी होप नहीं है
ऐसे हालातों में कैसे प्यार हो मुमकिन
और याद आते है वो पुराने दिन
जाने कहाँ गये वो दिन
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
याद आते है हमें वो दिन
जब जवानी के चमन में ,
मुस्कराती थी कलियाँ हसीन
हमेशा रहता था मौसम बहार का
हमारी भवरें सी नज़रें ,
टॉनिक पियां करती थी उनके दीदार का
लहराती जुल्फें ,हिरणी सी नज़र
गुलाबी गाल,रसीले अधर
मोती सी दन्त लड़ी,कातिल मुस्कान
मीठी सी बोली जैसे कोयल का गान
याने पूरा का पूरा चन्द्रमुख दिखता था
प्यार जल्दी हो जाता देर तक टिकता था
पर अब इस कोरोना के खौफ ने ,
ऐसा सितम ढाया है
हर हसीन चेहरे को मास्क में छुपाया है
किसी भी लड़की को देखो ,
बस दिखती है दो चमकती आँखें
और अपना बाकी चेहरा ,
रखती है वो मास्क में छुपाके
अब हम उन्हें कितना भी देखे घूर के
नजदीक से या दूर से
पता ही नहीं लगता उनका मुख कैसा है
उनके रुखसारों का रुख कैसा है
गुलाबी है या पीले है
कसे हुए है या ढीले है
चिकने है या उनपर पिम्पल है
हँसते तो क्या गालों पर पड़ते डिम्पल है
सुंदरता के सब पैमाने
उनने छुपा रखें है अनजाने
पूरी की पूरी नाक ढकी रहती है
पता नहीं साफ़ है या बहती है
पतली है या मोटी है
तिकोनी है या बोठी है
तोते सी है या समोसे सी है
पता ही नहीं लग पाता ,कैसी है
उनके 'अपर लिप्स 'पर बाल तो नहीं है
मर्दों जैसा हाल तो नहीं है
और चेहरे के सबसे मतवाले
सब से ज्यादा काम में आनेवाले
याने की उनके होठों का क्या हाल है
डार्क है या लाल है
मोटे है या पतले है
सूखे है या रस से भरे है
चिकने है या उजाड़ है
छोटी है या लम्बी ,उनकी मुंहफाड़ है
और उनकी दंत लड़ी
मोती सी सफ़ेद है या पीली पड़ी
टेढ़े मेढे है या सीधे दिखलाते है
होठों के बाहर तो नहीं नज़र आते है
सबकुछ ढका रहने से खुल न पाता राज़
कैसा है उनकी मुस्कराहट का अंदाज
उनकी हंसी कातिल है कि नहीं
उनके होठों या गालों पर,तिल है कि नहीं
और उनकी ठोड़ी
तीखी है या बैठी हुई है निगोड़ी
गोया उनका पूरा मुखड़ा
लम्बा पतला है या गोल चाँद का टुकड़ा
और उनकी बोली मधुर है या भर्राई
मास्क के कारण ये बात समझ ना आई
बस फुसफुसाहट ही देती है सुनाई
समझ ही नहीं पाता ये दिमाग है
कोकिला सी मधुर है या काग है
तो जब चेहरे की सुंदरता का सब सामान
जब पूरा ही ढका रहता है श्रीमान
तो ये अंदाज लगाना भी मुश्किल हो जाता ,
कि सामनेवाली बूढी है या जवान
बस दो घूरती हुई आँखें
और हम क्या ताकें
हम देख ही नहीं पाते
उनके चेहरे का नूर
परी है या हूर
बदसूरत है या हसीन
प्रोढ़ा है या कमसिन
ऐसे में तो बस नैन लड़ सकते है
पर इश्क़ में कैसे आगे बढ़ सकते है
क्योकि जब तक ना हो पूरा दीदार
कैसे हो सकता है प्यार
फिर मॉल ,सिनेमा ,गार्डन और रेस्त्रारंट
सब पड़े है बंद
डेटिंग पर जाने का स्कोप नहीं है
दोनों के मुंह पर मास्क है ,
चुंबन की भी होप नहीं है
ऐसे हालातों में कैसे प्यार हो मुमकिन
और याद आते है वो पुराने दिन
जाने कहाँ गये वो दिन
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।