कुर्सी
कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
रिश्ते नाते ,सभी रखता ताक पर
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
बैठने देता न मख्खी नाक पर
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
आ जाता है अपनी वोऔकात पर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
रिश्ते नाते ,सभी रखता ताक पर
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
बैठने देता न मख्खी नाक पर
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
आ जाता है अपनी वोऔकात पर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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