गर्मी में शीतलता
तेज ताप से जब सूरज के ,दग्ध ह्रदय हो जाता
होंठ सूखते,प्यास सताती ,मन विव्हल हो जाता
तेरी जुल्फों के साये की ठंडक में जी लेते
तेरी अमराई में आकर ,अमरस कुछ पी लेते
ग्रीष्म ऋतू में पर्वत पर जा ,शीतल होता मौसम
हमको तो तेरा पहलू ही ,लगता हिल स्टेशन
तेरी जुल्फ घटायें बन कर,जब हम पर छा जाती
शीतल करती रूप छटा और मन प्रमुदित कर जाती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तेज ताप से जब सूरज के ,दग्ध ह्रदय हो जाता
होंठ सूखते,प्यास सताती ,मन विव्हल हो जाता
तेरी जुल्फों के साये की ठंडक में जी लेते
तेरी अमराई में आकर ,अमरस कुछ पी लेते
ग्रीष्म ऋतू में पर्वत पर जा ,शीतल होता मौसम
हमको तो तेरा पहलू ही ,लगता हिल स्टेशन
तेरी जुल्फ घटायें बन कर,जब हम पर छा जाती
शीतल करती रूप छटा और मन प्रमुदित कर जाती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।