हाल-बुढ़ापे का
याद है वो जवानी के वक़्त थे
हम बड़े ही कड़क थे और सख्त थे
ताजगी थी , भरा हममें जोश था
बुलंदी पर थे , हमें कब होश था
रौब था और बड़ी तीखी धार थी
थी नहीं परवाह कुछ संसार की
जवां था तन,जेब में भी माल था
इस तरह से बन्दा ये खुशहाल था
हुए बूढ़े अब हम ढीले पड़ गए
वृक्ष के सब पात पीले पड़ गए
ना रहा वो जोश ,ना सख्ती रही
अब तो केवल भजन और भक्ति रही
मारा करते फाख्ता थे जब मियां
गए वो दिन, बुढ़ापे के दरमियाँ
हो गया ऐसा हमारा हाल है
मन मचलता ,मगर तन कंगाल है
मदन मोहन बहती'घोटू'
याद है वो जवानी के वक़्त थे
हम बड़े ही कड़क थे और सख्त थे
ताजगी थी , भरा हममें जोश था
बुलंदी पर थे , हमें कब होश था
रौब था और बड़ी तीखी धार थी
थी नहीं परवाह कुछ संसार की
जवां था तन,जेब में भी माल था
इस तरह से बन्दा ये खुशहाल था
हुए बूढ़े अब हम ढीले पड़ गए
वृक्ष के सब पात पीले पड़ गए
ना रहा वो जोश ,ना सख्ती रही
अब तो केवल भजन और भक्ति रही
मारा करते फाख्ता थे जब मियां
गए वो दिन, बुढ़ापे के दरमियाँ
हो गया ऐसा हमारा हाल है
मन मचलता ,मगर तन कंगाल है
मदन मोहन बहती'घोटू'
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