मिलन
तेरे अधरों की मदिरा के घूँट चखे है ,
युगल कलश से हमने अमृतपान किया है
रेशम जैसे तेरे तन को सहला कर के,
शिथिल पड़ा ,अपना तन मन उत्थान किया है
ऐसा तुमने बांधा बाहों के बंधन में ,
बंध कर भी मन का पंछी उन्मुक्त हो गया,
तन मन एकाकार हो गए मिलानपर्व में,
ऐसा हमतुमने मिल स्वर संधान किया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तेरे अधरों की मदिरा के घूँट चखे है ,
युगल कलश से हमने अमृतपान किया है
रेशम जैसे तेरे तन को सहला कर के,
शिथिल पड़ा ,अपना तन मन उत्थान किया है
ऐसा तुमने बांधा बाहों के बंधन में ,
बंध कर भी मन का पंछी उन्मुक्त हो गया,
तन मन एकाकार हो गए मिलानपर्व में,
ऐसा हमतुमने मिल स्वर संधान किया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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