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मंगलवार, 13 मई 2014

धुलाई


            धुलाई

हो मैल अगर हो  कपड़ों में ,पानी में उन्हें भिगोते है
और फिर घिसते साबुन से ,छपछपाते और धोते है
हो पानी  अगर अधिक  भारी,तो झाग आते है काफी कम
और उन्हें निचोड़ो जब धोकर ,कपड़ों में सल पड़ते हरदम  
मन में भी जो यदि मैल भरा ,तो धुलना बहुत जरूरी है
तो भीज प्रेम के रस में मिलना जुलना बहुत जरूरी  है
सत्कर्मो के साबुन से घिस ,मन के मलाल को तुम मसलो
जीवन  में  ठोकर मिलती ज्यों  ,खा मार धोवने की  उजलो
धुल जाता मन का मैल अगर जो मेल किसी से हो जाता
मन भीज प्रेम रस में जात्ता ,तन मन है निर्मल हो जाता
होती है वही प्रक्रियाएं ,इंसान निचुड़ सा जाता है
अनुभव के जब सल पड़ते है,वो समझदार हो जाता है
मिट जाए कलुषता ,मैल हटे ,और मन निर्मल हो जाएगा
उज्जवल  प्रकाश से आलोकित ,जीवन हर पल हो जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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