बहुत तुम जुल्म ढाती हो
जो बोसा लूं,चुभे खंजर,
लूं चुम्बन काट खाती हो
जो मै लूं हाथ हाथों में,
मुझे नाख़ून चुभाती हो
जो फेरूँ हाथ जुल्फों पर ,
तो हेयरपिन मुझे चुभते,
बहुत तुम जुल्म ढाती हो,
जब मेरे पास आती हो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तटस्थता अस्तु
-
तटस्थता क्या है ?
कहीं बुद्धिमानी
कहीं है स्वार्थ
कहीं चालाकी
कहीं परमार्थ
कहीं निष्क्रिय
कहीं उदासीन
कहीं कुटिल
कहीं पदासीन
कहीं समझौता
कही...
5 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।