पते की बात
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
उम्र की दस्तक गुनगुना रही है राग मालकोस...
-
मैंने तकलीफों को रिश्वत नहीं दी
कोई न्यौता भी नहीं दिया
उनकी जी हजूरी भी नहीं की
फिर भी बैठ गयी हैं आसन जमाकर
जैसे अपने घर के आँगन में
धूप में बैठी स्त...
4 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।