एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 14 मई 2020

नाइंसाफी

जिसने तुमको पालापोसा ,
             पूरा जेंटलमेन बनाया
१४ मई को ,उस माई का    
         तुमने बस दिन एक मनाया
बाकी पूरे बरस कर रहे ,
          पूजा बच्चों की माँ की  है
जन्मदायिनी माँ का एक दिन ,
         सिर्फ मनाना क्या काफ़ी है
भैया ये , नाइंसाफी है

घोटू 
            लॉक डाउन -४ --एक सवैया

पूर्ण हुई रामायण ,महाभारत निपट गयी ,
             लॉकडाउन सीरियल अब तक ना निपटयो है
टीवी पर सुनो खबर ,और धुनों अपनों सर ,
                    आदमी अपने घर, भीतर ही सिमटयो  है
सिमटे सब  कारोबार ,दुकाने और बाज़ार ,  
              सब पर ही पड़ी मार ,काम सभी अटक्यो है
छोटो सो वाइरस ,मार रहयो है डस डस ,
            बस में ना आय रह्यो ,सब के मन  खटक्यो है

घोटू 

बुधवार, 13 मई 2020

आपदा से अवसर

कहते है हरेक बुराई में ,छिप रहती कोई भलाई है
हम कठिन दौर से गुजरें है ,तब बात समझ में आयी है
जब जब हमने ,ठोकर खाई ,तब तब आई है ,हमें अकल
हम गिरे ,चोंट घुटने खायी ,तब आई चलाना बाइसिकल
दो चार जीत के दाव  पेंच,हर हार हमें सिखला देती
हर भटकन ,टेढ़े रस्ते की ,है सही राह ,दिखला देती
कितनी ही बार ,फ़ैल होना ,ले आता 'पास ' के पास हमे
करना संघर्ष ,सिखा देता ,जब जब भी मिलता ,त्रास हमें
जब आती कभी आपदा तो ,अवसर मिलता कुछ करने का
हम ढूंढ लिया करते उपाय ,संकट से दूर ,उबरने का
इस कोरोना की आफत में ,पाये अनुभव ,मीठे ,तीखे
पहले हम धोते हाथ सिरफ ,अब हाथ साफ़ करना सीखे
लोगों से रखी ,बना दूरी ,तब 'इंफेक्शन 'से बच पाये
जब हाथ मिलाना छोड़ दिया ,संस्कार नमस्ते के आये
बीबी बच्चों संग ,इतने दिन ,मस्ती में गुजरे ,संग रह कर
सुख परिवार का क्या होता यह याद रहेगा ,जीवन भर
जब हाथ बंटाया पत्नी के ,गृह कार्यों में सहयोग  दिया
इस योगदान ने थोड़े से  ,उनको कितना संतोष दिया
खाये नित नए नए व्यंजन ,पत्नी के हाथों ,स्वाद भरे
हम खेले ताश ,गुजारे दिन ,संडे जैसे ,आल्हाद भरे
बच्चों का जंक फ़ूड चस्का ,आलू के परांठे ,भुला दिए
घर की रौनक ने ,कर्फ्यू के ,सारे सन्नाटे  ,भुला दिए
बढ़ गया आत्मविश्वास बहुत ,सब मेआया फुर्तीलापन
अब पूरा घर चल सकता है ,बिन नौकर या फिर महरी बिन
बंद मटरगश्तियाँ  मॉलों की ,ना कोई सिनेमा या होटल
खर्चे फिजूल के बंद हुए ,घर खर्च रहा ,आधा केवल
अब स्वच्छ हवा ,निर्मल पानी ,दिखते है रातों में तारे
था 'लॉक डाउन 'पर 'मोरल अप 'दुःख में सुख छिपे हुए सारे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
प्रवासी श्रमिक की व्यथा कथा

मैं आज सुनाता हूँ तुमको ,बेबस श्रमिकों की व्यथा कथा
जिनने मीलों ,पैदल चल कर ,घर जाने की ,झेली  विपदा
देखा करते थे फिल्मों में ,रौनक  शहरों की ,बड़े बड़े
वो बाज़ारों की तड़क भड़क ,वो ऊंचे ऊंचे ,महल खड़े
वो कार ,मोटरें और बसें ,रेलें,मेट्रो सरपट चलती
हम कहाँ फसें है गाँवों में ,लगती थी हमको यह गलती
बस जोतो खेत ,बीज बोओ ,फसलें काटो ,रखवाली कर
ना सुख सुविधा ना नल बिजली ,छोटे मिटटी के ,कच्चे घर
जी बार बार करता था यह  ,हम छोड़े गाँव ,शहर जायें
वहां करें नौकरी ,ऐश करें ,पैसे कमायें और सुख पायें
था मना किया घरवालों ने ,पर हमने उनका दिल तोडा
दौलत के सपने ले मन में ,एक रोज गाँव हमने छोड़ा
गाँव के परिचित ,शहर बसे लोगों ने काम पर लगा दिया
पर जब प्रोजेक्ट ,हुआ पूरा ,तो उनने हमको ,भगा दिया
थोड़े दिन भटके इधर उधर ,जो मिलता छुटपुट काम किया
कुछ लोगों जब दी सलाह,हाथों में  रिक्शा थाम  लिया
अच्छा था काम ,मेहनत कर ,दो पैसे घर में ,बच जाते
पर बंद हुआ पेडल रिक्शा ,ई रिक्शे के आते आते
फिर ठेला ले, सब्जी फल भर ,बेचीं थी गली मोहल्ले में
इसमें भी ठीक कमाई थी ,दो पैसे बचते ,पल्ले में
चल रहा काम था ठीक ठाक ,पर कोरोना आफत आयी
कर्फ्यू लग गया ,काम सारा ,बंद करने की नौबत आयी
कुछ दिन काटे ,जैसे तैसे ,फिर भूखे पेट पड़ा सोना
ऐसे बिगड़े ,हालातों में ,बदहाली पर ,आया रोना
भूखे मरने की नौबत में ,अपना घर ,गाँव याद आया
दिल बोला आ अब लौट चलें ,शहरों ने बहुत है तडफाया
सब रेल,बसें थी बंद मगर ,कुछ साथी ने मिल ,हिम्मत कर
ये ठान लिया ,घर पहुंचेंगे ,धीरे धीरे ,पैदल चल कर
हम मरे न मरें करोना से ,भूखे रह कर मर जायेंगे  
खाने के लिए न तरसेंगे ,यदि हम अपने घर जाएंगे
था मीलों दूर गाँव अपना ,ना बचे  गाँठ में थे पैसे
था कठिन सफर ,मुश्किलों भरा ,पर काटेंगे ,जैसे तैसे
रस्ते में पुलिस ,कहीं रोकी तो पड़े कहीं पर थे डंडे
पर चोरो छुपके नज़र बचा ,अपना कितने ही हथकंडे  
हम बढे गाँव ,धीरे धीरे ,चलते ,रुकते ,सुस्ताते थे
कुछ  जगह लोग ,सेवाभावी ,हमको भोजन करवाते थे
चप्पल टूटी ,छाले निकले ,मिलजुल काटा ,रस्ता सबने
जैसे तैसे हम पहुँच गए उस प्यार भरे ,घर पर अपने
माँ के हाथों ,गुड़ रोटी खा ,मटके के जल से बुझी प्यास
लेटे  खटिया पर ,नीम तले ,मन में उल्लास ,मिट गए त्रास
दिल बोला  जिस मिट्टी जन्मे ,उस मिट्टी में दम तोड़ेंगे
सुख और शांति से जियेंगे ,हम गाँव कभी ना छोड़ेंगे
अपने बच्चों  को,पढ़ा लिखा ,काबिल इस कदर बना देंगे
गावों में सब सुविधा लाकर ,गाँवों को शहर बना देंगें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
 
 

मंगलवार, 12 मई 2020

विनती -प्रभु से -कोरोना काल में

         चोपाई
जब जब होत धरम की हानि
पीड़ित होते जग के प्राणी
धरती पर छाये अंधियारा
जन जन दुखी ,त्रास का मारा
आकर कोई अत्याचारी
फैलाये विपदा,बीमारी
तब तब प्रभु ने ले अवतारा
दुष्ट राक्षसों को है मारा
जब उत्पात मचायो रावण
राम रूप धर प्रकटे भगवन
लंका जा रावण संहारा
किया दुखी जन पर उपकारा
द्वापर में जब अत्याचारी
कंस मचाई विपदा भारी
कृष्ण रूप लेकर प्रभु प्रकटे
धरा बचाई उस संकट से
इस युग, दुष्ट करोना राक्षस
आ ना रहा ,कोई के भी बस
दुनिया भर में मची तबाही
लोग कर रहे त्राहि त्राहि
विपदा सबकी आन हरो तुम
प्रभु जी अब अवतार धरो तुम
दवा,वेक्सीन ,बन कर प्रकटो
दूर करो सबके संकट को
              दोहा
हाथ जोड़ विनती करे ,'घोटू 'बारम्बार
कोरोना संहार को ,प्रभु जी लो अवतार

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

सोमवार, 11 मई 2020

दो सवैये -रसखान की तर्ज पर
१ (धूल  भरे अति शोभित  श्यामजू---)

घर बैठे अति शोभित साहबजी ,काम न काज ,करावे सेवा
ब्रेकफास्ट,लंच डिनर चाहिये ,चाय के साथ में गरम कलेवा
पल भर भी न जिन्हे फुरसत थी ,फुरसत में अब रहत सदैवा
आपके भाग जो पी  संग रंग में  ,दीनो है रंग  कोरोना देवा

२ (गावे गुनी,गनिका ,गंधर्व ------)

आई सुनी एक नयी बिमारी ,चीन से आ जो सभी सतावे
दिन दूनी और रात चौगुनी ,फ़ैल रही ,काबू नहीं आवे
रोवत सभी कोरोना को रोना ,कोई इलाज समझ नहीं पावे
तासे  चौदह दिन ,क्वेलेन्टाइन ,करवा कर ,सरकार बचावे
घोटू 
भजन -कोरोना काल में

अब सौंप दिया इस जीवन का ,सब भार  तुम्हारे हाथों में
तुम लाओ स्वच्छता ,धोकर कर ,सौ बार ,तुम्हारे हाथों में

घातक ये  कीट करोना है ,यदि तुमको इससे बचना है ,
आवश्यक ,सेनेटाइजर की ,तलवार तुम्हारे  हाथों में

तुम दो गज सबसे दूर रहो ,कोई को पास न आने दो ,
कर जोड़ नमस्ते ,दिखलाओ ,सब प्यार तुम्हारे हाथों में

तुम केवल दूर से 'हाई'करो और'बाय करो बस हाथ हिला ,
वर्जित है हाथ मिलाने का ,व्यवहार  तुम्हारे हाथों में

ये व्याधि  फ़ैल रही इतना ,है परेशान  सारी दुनिया
घर से मत निकलो ,कुशल रहो ,सरकार तुम्हारे हाथों में

कुछ भी लाओ,पाओ,खाओ ,धोकर के काम उसे लाओ  ,
है संक्रमरण   से बचने का ,उपचार तुम्हारे  हाथों  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के कांटे

चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे
हर ओर मौन पसरा है,सन्नाटे ही सन्नाटे

मानव सामाजिक प्राणी,पर उसकी यह मजबूरी
रखना पड़ती अपनों से ,अब उसे बना कर दूरी
अपने सुख ,दुःख और पीड़ा,किसके संग,कैसे बांटे
चुभते है शूलों जैसे , ये कोरोना के कांटे

सब लोग है बंद घरों में ,सड़कें सुनसान पड़ी है
रुकगयी गति जीवन की,यह मुश्किल बहुत बड़ी है
कितने दिन चार दीवारी ,हो कैद जिंदगी काटें
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे

मजदूर पलायन करते ,उत्पादन ठप्प है जबसे
सब व्यापारिक गतिविधियां ,मृतप्रायः पड़ी है तबसे
कैसे संभलेंगे ये सब ,हर रोज होरहे घाटे
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे

यह कैसी भीषण विपदा ,सारी दुनिया में फैली
कर रही बहुत है पीड़ित ,अब और न जाए झेली
एक छोटे से वाइरस ने  ,सबको रख दिया हिलाके
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना  के कांटे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 10 मई 2020

का वर्षा ,जब कृषि सुखाने

की ना मन की कोई शुद्धि
दूर बहुत हमसे सदबुद्धि
हम थे बस दौलत के प्यासे ,
रहे चाहते ,धन की वृद्धि

क्या है बुरा और क्या अच्छा
देते रहे  सभी को  गच्चा
हवस बसी मन में पैसे की ,
चाहे पक्का हो या कच्चा

भुला आत्मीयता ,अपनापन
तोड़ दिये ,पारिवारिक बंधन
भुला दिए सब रिश्ते नाते ,
जुट कर रहे ,कमाने में धन

माया माया ,केवल माया
बहुत कमाया ,सुख ना पाया
भगते रहे ,स्वर्ण मृग पीछे ,
लेकिन उसने ,बहुत छलाया

मन का चैन ,अमन सब खोया
काया का कंचन सब खोया
अपना स्वार्थ साधने खातिर ,
बहुमूल्य ,जीवन सब खोया

बीत गयी जब यूं ही जवानी
वृद्ध हुए तब बात ये जानी
खाली हाथ जाएंगे बस हम ,
दौलत साथ नहीं ये जानी

नाम प्रभु का अगर सुमरते
झोली रामनाम से भरते
सुख,संतोष,शांति से जीते ,
माया के पीछे ना भगते

अपने सब अब लगे भुलाने
पास अंत आया तब जाने
रहते समय ,न आई सुबुद्धि ,
का वर्षा ,जब कृषि सुखाने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
कागा ,तू माने ना माने

कागा तू माने ना माने
जबसे तूने प्यास बुझाने
ऊंचा करने जल का स्तर
चुग चुग करके कंकर पत्थर
अधजल भरी हुई मटकी में
डाले थे शीतल जल पीने
डाली चोंच ,कर दिया जूंठी
तबसे उसकी किस्मत रूठी
वो माटी की मटकी प्यारी
पड़ी तिरस्कृत ,है बेचारी
पिया करते लोग आजकल
बोतल भर फ्रिज का ठंडाजल
कोई न पूछे ,बहुत दुखी मन
कागा ये सब तेरे कारण
यही नहीं वो दिन भी थे तब
घर के आगे कांव कांव जब
तू करता ,होता अंदेशा
आये कोई ना कोई सन्देशा
खबर पिया की जो मिल जाती
विरहन ,सोने चोंच मढ़ाती  
देखो अब दिन आये कैसे
मोबाईल पर आये संदेशे
पहले श्राद्धपक्ष में भोजन
करने को जब आते ब्राह्मण
पहला अंश तुझे अर्पित कर
लोग बुलाते ,तुझको छत पर
तेरे द्वारा  ,पाकर भोजन
हो जाते थे ,तृप्त पितृजन
तू है काक भुशंडी ,ज्ञानी
शनि देव का वाहन प्राणी
लोग लगे पर ,तुझे भुलाने
कागा तू ,माने न माने

मदन मोहन बहती 'घोटू ;
लगता नहीं है दिल  मेरा---

 लगता नहीं है दिल मेरा ,दिन भर मकान में
किसने है आके डाल दी ,आफत सी जान में
कह दो इस 'करोना' से ,कहीं दूर जा बसे ,
या लौट जाये फिर से वो ,वापस बुहान में
उमरे तमाम हुस्न की सोहबत में कट गयी ,
ना झांकता है कोई ,बंद दिल की दूकान में
'घोटू 'बजन है बढ़ रहा ,हफ्ते में दो किलो ,
इतना इज़ाफ़ा  हो गया, अब  खानपान  में

घोटू  

शनिवार, 9 मई 2020

तू भेज दे ऐसी भैषज

हे परमपिता परमेश्वर ,तूने है हमें बनाया
तू सकल विश्व का स्वामी ,तुझ में है विश्व समाया
जब जब भी आयी मुसीबत ,तूने है हमें बचाया
अब भेज दे ऐसी भेषज ,हो जाय करोना सफाया

आतंकी विपदाओं ने ,जब जब भी पाँव पसारा
तूने आ दिया सहारा और उन सबको संहारा
बन राम,हटाया रावण ,बन कृष्ण, कंस संहारा
 अब पापी कोरोना ने ,अति विकत रूप है धारा

भगवन तेरे भगतों पर ,विपदा ये  आन पड़ी है
छोटा सा वाइरस  पर ,ये आफत बहुत बड़ी है
ना कामकाज,उत्पादन ,मुश्किल की आई घडी है
दुनिया की अर्थव्यवस्था ,दिन दिन जाती बिगड़ी है

मजदूर पलायन करते ,है परेशानियों मारे
ना रोजी है ना रोटी ,भूखे लाचार बिचारे
तीरथ,मंदिर ,पूजास्थल ,सब बंद पड़े है सारे
सब लोग घरों में दुबके, कोरोना डर के मारे

सब रखे बनाकर दूरी ,अपना हो गया पराया
क्या गलती हुई है हमसे ,क्यों ऐसा दिन दिखलाया
ओ  दुनिया के रखवाले ,दिखला दे अपनी माया
तू भेज दे ऐसी भेषज ,हो जाय करोना सफाया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
 

गुरुवार, 7 मई 2020

खिसकती हवा

हवा अब हमारी ,खिसकने लगी है
कल तक थी प्यारी
जो बिल्ली हमारी
हमें म्याऊं कह कर ,बिदकने लगी है
जिगर जान हम पर
जो करती निछावर
पिलाती थी शीतल
मोहब्बत भरा जल ,
वो अब हम पे कीचड़ ,छिड़कने लगी है
थी जो मेरी हमदम
हो चाहे ख़ुशी गम
कभी  जिसके दिल में ,
बसा करते  थे हम
वो ढाती सितम है ,झिड़कने लगी है
क्यों हमसे खफा है
हुई बेवफ़ा  है
वो नज़रें चुराती ,
दिखे हर दफ़ा है
दिखाते वफ़ा तो ,बिगड़ने लगी है
हवा अब हमारी ,खिसकने लगी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा ऐसा आया है

बुढ़ापा ऐसा आया है
बहुत हमको तडफाया है
क्या बतलायें ,कैसे घुट घुट ,
समय बिताया है

ना तो नयन रहे हिरणी से,
 चचल, छिप चश्मों  में
ना ही वो दीवानापन है ,
प्यार भरी  कसमों में
ना वो बाल जाल है जिसमे ,
मन उलझाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

पड़ा कसा तन ,ढीला ढाला ,
बची न वो लुनाई
वो मतवाली चाल ना रही
ना मादक अंगड़ाई
नहीं गुलाबी डोरे आँख में ,
जाल सा छाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

बार बार आ याद सताते ,
बीते दिवस रंगीले
अब तन ,मन का साथ न देता ,
हम तुम दोनों ढीले
यौवन का रस चुरा उम्र ने ,
कहर ये ढाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

अब तो सिमटा प्यार रह गया ,
चुंबन ,सहलाने में
हमसे ज्यादा ,कुछ ना होता ,
मन को बहलाने में
झुर्री वाले हाथ दबा कर ,
काम चलाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ऐसा कोई दिन ना बीता

चालिस दिन  तालाबंदी में ,ऐसा कोई दिन ना बीता
जिस दिन मैंने कोरोना पर ,लिखी नहीं हो कोई कविता

किया शुरू में उसका वंदन ,मख्खन मारा ,तुष्ट रहेगा
यही सोच कि तारीफ़ सुनकर ,ये दुनिया को कष्ट न देगा
लेकिन उस पर असर हुआ ना ,और गर्व से फैल गया वो
चमचागिरी ,चापलूसी के ,अस्त्र चलाये ,झेल गया वो
उस रावण ने साधु रूप धर,करली हरण ,चैन की सीता
ऐसा कोई दिन न बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता

फिर सोचा ये कुटिल धूर्त है ,नहीं प्यार से ये समझेगा
जूते मार इसे तुम पीटो ,शायद ये तब ही  सुधरेगा  
ये लातों का भूत न माने ,सीधी  सादी सच्ची  बातें
इसको गाली दो और मारो ,जमकर घूंसे और तमाचे
तीखे तेवर देख भगेगा ,उलटे पैरो ,हो भयभीता
ऐसा कोई दिन ना बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब जाओ भाग कोरोना

कर दिया त्रसित है तुमने ,दुनिया का कोना कोना
तुम सुई नोकसे छोटे ,अति सूक्ष्म 'वाइरस' हो ना
तुमने औकात दिखा दी ,मानव है कितना बौना
सब जान गये है तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

तुमने कितने महिनो से ,लोगों को बिठा रखा घर
मजदूर दिहाड़ी के बिन ,अब भटक रहे हैं दर दर
बंद प्रतिष्ठान है सारे , रौनक बाज़ार की गायब
बंद पड़ी रेल ,बस,मेट्रो ,जाने चल पाएगी कब
आदत में आया हमारी ,अब परेशानियां ढ़ोना
सब जान गए हैं  तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

हम सब सामजिक प्राणी,आपस में हिलमिल हँसते
अब  भूले  मिलना जुलना , दूरी  से  करें  नमस्ते
हाथों में सेनेटाइजर ,और मुख पर बांधे पट्टी
दुनिया  तुमसे आतंकित ,गुम  सबको सिट्टी पिट्टी  
सब पीड़ित किसके आगे ,जा रोयें अपना रोना
सब जान गए है तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 6 मई 2020

आदत पड़ गयी  पीने की

फैक्टरी बाजारों की बंदी
आने जाने पर पाबंदी
है अर्थव्यवस्था में मंदी
,तालाबंदी दो महीने की

मजदूर काम ना कुछ पाये
निज दर्द किसे वो दिखलाये
वो भूख पेट को तड़फाती
,वो आग धधकती सीने की

कितनी हो गयी तबाही है
सब करते त्राहि त्राहि  है
कोरोना वाइरस फैलाया,
 हरकत ये चीन कमीने की
 
वो मंदिर मस्जिद वो बाबा
वो तीर्थ सभी ,काशी काबा
सब बंद हुए,अब कहाँ गयी,
शक्ति वो दुःख हर लीने की
 
मैं घुस बैठा घर के अंदर
लगता है इंफेक्शन से डर
दूरी अपनों से रखी बना ,
हसरत में लम्बा जीने की
 
कोरोना से लगता है डर
हाथों में मल सेनेटाइजर
मेरे हाथ हो गये 'अल्कोहलिक
उन्हें आदत पड़ गयी पीने की

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ;
फ़जीता *

जो मज़ा कभी पत्नी के संग ,करके तूतू मैंमैं आता
वो आता नहीं मनाने में ,जो मज़ा रूठने में आता
शरबत ना ,स्वाद गोलगप्पे भर ,पानी खट्टे तीते में
वो मज़ा आता अमरस में,आता जो स्वाद फजीते में

घोटू *
*फजीता - खटटे और अधपके आमों के रस में पानी मिला
गुठली सहित सब मसाले ड़ाल और छोंक कर बनाया हुआ
रसम की तरह का शोरबा जो गाढ़ी अरहर दाल और चांवल
के साथ और बार बार गुठली को शोरबे में डूबा डूबा चूंस चूंस
खाया जाता है  उसे फजीता कहते है 
पति की परेशानी

बीबी के साथ सदा खटपट ,पत्नी की डाट ,दिखाती रंग
किचकिच करती बच्चों की माँ ,तूतू मैंमैं  घरवाली संग
जोरू से सुनता  नित  ताने ,गाली खा ,बेलन की पड़ती
अम्मा की बहू को पति हित ,ना समय ,काम में रह खटती
माशूका बड़ी टेढ़ी मिजाज ,हरदम नखरे ,तीखे तेवर
और डूब प्रेमरस प्रेमिका ,है हमें नचाती ऊँगली पर
वाइफ सर के ऊपर चढ़ कर ,दिखलाती रौब ,नहीं डरती
है पीछे प्राण के प्राणप्रिया ,व्रत करवा चौथ का है करती
सजनी ,सजधज कर,मोहपाश में बाँध लिया करती हमको
मिल जाता है थोड़ा सुकून ,बेगम हर लेती हर गम को
सिन्दूर मांग भर ,हृदयेश्वरी ,करती मांगों की फरमाइश
एक पति बेचारे पर रहती ,फिर कहाँ ख़ुशी की गुंजाईश
वो ढंग से हंस भी ना पाता , हरदम करता है समझौता
इस दुनिया में सबसे निरीह और दुखी जीव है पति होता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 5 मई 2020

कोरोना स्वामी की आरती

 
ॐ जय कोरोना हरे स्वामी जय कोरोना हरे

भक्त  जनों के संकट ,क्षण में दूर करे। ॐ।


जो भी  भीड़ से भागे ,दुःख बिनसे मन का

पास न आये कोरोना ,कष्ट मिटे तन का । ॐ।


दूरी रखूँ बना कर ,पास आना रिस्की

तुम बिन सुख और शांति ,आस करूँ जिसकी। ॐ।


तुम चाइना के आये , फैल रहे स्वामी

 मुश्किल भेद तुम्हारा ,तुम अन्तर्यामी। ॐ।


तुम हो दुःख के सागर, खुशियों के हरता

बार बार कर धोये , हर कोई डरता। ॐ।


तुम हो एक अगोचर  कितने प्राण हरे

किस विधि बचें त्रास से , विनती सब ही करें। ॐ।


नालायक,दुःखदायक , भक्षक बहुतेरे

मैं घर में घुस बैठा ,पास न ,आओ  मेरे। ॐ।


मुख  पर पट्टी बाँध ,करें सब तुम्हारी सेवा

खांसी आने ना दो ,ज्वर भी दूर करो देवा। ॐ।


यह कोरोना आरती   जो भी नर गावे  

वासे वाइरस भागे  पास नहीं आवे। ॐ


कवि घोटू रचित कोरोना आरती पूर्ण 
घोटू के पद

कोरोना ,मैं मोदी तुम मच्छर
ले पिचकारी ,तुम पर छिड़कूं ,मैं सेनेटाइजर
बिजली का रैकेट हाथ ले ,झपट झपट कर मारूं
छुओ मरोगे ,वरन भगोगे ,ऐसी गति बिगाडूं
धोकर हाथ ,पडूंगा पीछे ,ऐसे मैं  तुम्हारे
याद आएंगे ,नानी ,मौसी ,वाले रिश्ते सारे
लोग सभी घर घुस बैठेंगे ,फैल नहीं पाओगे
बहुत मार खाओगे यदि जो हमसे टकराओगे
देखो तुम्हे वार्निंग है, मत लो मोदी से पंगा
वरना उलटे पैर लौटना होगा ,होकर नंगा
यहाँ तुम्हारी नहीं चलेगी भागो सर पर पग धर
कोरोना ,मैं मोदी तुम मच्छर

घोटू  
सचिवालय सेक्रेटरी उचाव

सर जी ,काम चलेगा कैसे
सब उद्द्योग बाजार बंद है ,कोरोना के भय से
होती नहीं कमाई कोई भी ,ऐसे हो या वैसे
राज्य कोष में ख़तम हो रहे ,धीरे धीरे पैसे
नहीं भरोसा कोरोना का ,जाएगा कब,कैसे
घर बैठे सब लोग त्रसित है ,सूखे हुए गले से
उनको नहीं नसीब सोमरस ,वक़्त गुजारें कैसे
दारू के ठेके  खुलवा दो ,भीड़ उमड़ेगी ऐसे
दाम बढा  दो,सभी पियक्कड़ ,देंगे दूने पैसे
कोरोना दुःख भूल जाएंगे ,दारू पिये मजे से
'घोटू 'सभी समस्याओं का ,हल होता है ऐसे

घोटू  
कोरोना स्वामी की आरती
 
ॐ जय कोरोना हरे स्वामी जय कोरोना हरे
भक्त  जनों के संकट ,क्षण में दूर करे। ॐ।

जो दूर भीड़ से भागे ,दुःख बिनसे मन का
पास न आये कोरोना ,कष्ट न हो तन का । ॐ।

दूरी रखूँ बना कर सबके ,पास आना रिस्की
तुम बिन सुख और शांति ,आस करूँ जिसकी। ॐ।

तुम चाइना के जाये जग में, फैल रहे स्वामी
पाना मुश्किल भेद तुम्हारा ,तुम अन्तर्यामी। ॐ।

तुम हो दुःख के सागर, खुशियों के हरता
बार बार कर धोये तुमसे हर कोई डरता। ॐ।

तुम हो एक अगोचर तुमने कितने प्राण हरे
किस विधि बचें त्रास से , विनती सब ही करें। ॐ।

नालायक,दुःखदायक ,तुम हो भक्षक बहुतेरे
मैं घर में घुस बैठा ,पास न ,तुम आओ  मेरे। ॐ।

मुख  पर पट्टी बाँध ,करें सब तुम्हारी सेवा
खांसी आने ना दो ,ज्वर भी दूर करो देवा। ॐ।

यह कोरोना आरती बेबस हो जो नर गावे  
वासे वाइरस दूर रहे यह पास नहीं आवे। ॐ।

'घोटू 'कवि  रचित कोरोना आरती पूर्ण
 
 

सोमवार, 4 मई 2020

गांधारी

गांधारी  
जन्मांध धृतराष्ट से ब्याह दी गयी थी बिचारी
उसकी थी लाचारी  
वह चाहती तो अपने अंधे ,
पति का सहारा बन सकती थी
उसका पथ प्रदर्शन कर सकती थी
पर उसने हस्तिनापुर का माहौल देखा
भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे बड़े महारथी
साधे बैठे रहते है चुप्पी
तो उसने भी चुप्पी साध ली
और अपनी आँखों पर पट्टी बाँध  ली
वरना अपनी हर गलती की जिम्मेदारी ,
धृतराष्ट्र , गांधारी पर डाल सकता था
कहता मैं तो अँधा हूँ ,मुझे क्या पता था
पर तुम्हे तो दिखता है ,
तुम तो मुझे टोक सकती थी
मुझे गलत निर्णय लेने से रोक सकती थी
उसने सोचा होगा कि पति की हर गलती का
दोषारोपण क्यों अपने सर पर लेना
इससे तो अच्छा है आँखों पर पट्टी बाँध लेना
इससे बच गया उसके जी का जंजाल
और वो बन गयी पतिव्रता धर्म
निभाने वाली पत्नी की एक मिसाल
इसी में थी उसकी समझदारी
गांधारी ,एक बुद्धिमान नारी

घोटू 
लॉक डाउन के दो विषम चित्र

पति देवता ,रोज खाने के बाद
खाने की तारीफ़ करते थे और ,
चूमते थे खाना बनानेवाली पत्नी के हाथ
बाद में पता लगा कि पत्नी ,
सेनेटाइजर से करती थी हाथ साफ़
जिसमे ६५%से ज्यादा अल्कोहल होता था ,
और पति जी के मुंह लग गया था ,
सेनेटाइजर का स्वाद

लॉक डाउन के दरमियान
श्रीमती और श्रीमान
दोनों दो गज  'सोशल दूरी बना कर रखने के
सरकारी आदेश की धज्जियाँ उड़ाते है
छह फुट के पलंग पर ,दोनों ही सो जाते है

घोटू 
घोटू के पद

घोटू ,कोई हमें समझाये
दिन भर घर में बैठ अकेले ,कैसे समय बिताये
काम नहीं करने की आदत ,मेहरी भी ना आये
पति पत्नी  बूढ़े अशक्त है   ,झाड़ू  लगा न पायें  
मना निकलना ,तो सब्जी फल ,दूध कहाँ से लाये
खाना भी अब बना न पाते ,रोज रोज क्या  खायें
मुख पर पट्टी बंधी हुई है ,ज्यादा बोल न पायें
सेनेटाइजर में दारू की ,बदबू  नहीं सुहाये
'घोटू'अब तो इन्तजार है ,कब कोरोना  जाये

घोटू 

शनिवार, 2 मई 2020

कोरोना डर  क्या क्या भूले  



बहुत त्रसित और दुखी हो गए ,जीवन पद्धति बदल गयी ,

देखो क्या क्या  हम तुम और सब ,कोरोना डर भूल गए

लॉक डाउन ने ऐसा हमको ,घर के अंदर बंद किया ,

टी वी से चिपके रहते हम ,जाना बाहर  भूल गए

पहले गर्मी की छुट्टी  में , बच्चे नानी घर जाते थे  

कोरोना के कारण बंध कर  ,नानी का घर भूल गए


न तो चाट के ठेले लगते ,ना वो आलू की टिक्की ,

स्वाद गोलगप्पों का प्यारा ,पानी भर भर ,भूल गए

हलवाई की दुकानों से ,आये न खुशबू जलेबी की ,

वो गुलाब जामुन ,रसगुल्ले ,रबड़ी घेवर भूल गए

ना तो बाज़ारों में रौनक ,मॉल सभी सुनसान पड़े ,

पॉपकॉर्न पिक्चर हालों में ,खाना जी भर ,भूल गए

अब ना भीड़ भरे वो उत्सव ,शादी ब्याह बारातों में ,

छत्तीसों व्यंजन का खाना ,प्लेटें भर भर भूल गए

बच्चे मम्मी पापा सब मिल ,घर भर का सब काम करें ,

बात बात पर रौब दिखाना, तीखे तेवर भूल गए

लौट आये संस्कार ,नमस्ते, हाथ जोड़ अब करते है ,

दूरी रखते ,प्यार जताना ,अब झप्पी भर ,भूल गए

 खुद को  बहुत सूरमा समझे बैठे मार  मार मच्छर ,

आया कोरोना ,हम घर छुप कर ,लेना टक्कर भूल गए

ये सच है ,पॉल्यूशन कम है ,जल नदियों का शुद्ध हुआ ,

मुश्किल था जब लेना साँसें ,अब वो मंजर भूल गए



मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
घोटू के पद

सखी री ,कोरोना के कारण
बार बार धो ,हाथ हो गए ,,गोरे और मुलायम
अगर मुंह भी धोना पड़ता ,रूप निखरता कुंदन
दक्ष हो गए ,गृह कार्यों में ,घर घर सभी पतिगण
सीख गयी गृहणियां बनाना ,तरह तरह के व्यंजन
ना शॉपिंग ,ना होटल पिक्चर ,खर्च हुए कितने कम
गले न मिलते ,हाथ जोड़ कर ,लोग करे अभिनन्दन
रोमांटिक हो गए पिया जी ,प्यार लुटाते  हरदम
कह 'घोटू 'गृहयुद्ध कम हुए ,और घट गयी अनबन
सखी री ,कोरोना के कारण

घोटू   
कोरोना दर  क्या क्या भूले  

बहुत त्रसित और दुखी हो गए ,जीवन पद्धति बदल गयी ,
देखो क्या क्या  हम तुम और सबकोरोना डर भूल गए
लॉक डाउन ने ऐसा हमको ,घर के अंदर बंद किया ,
टी वी से चिपके रहते हम ,जाना बाहर  भूल गए
पहले गर्मी की छुट्टी  में , बच्चे नानी घर जाते थे  
कोरोना के कारण बंध कर  ,नानी का घर भूल गए
साईकिल दौड़ाते बच्चे ,खेल कूद मैदानों में ,
ना क्रिकेट की बेटिंग ,बॉलिंग ,रन स्कोर भूल गए
न तो चाट के ठेले लगते ,ना वो आलू की टिक्की ,
स्वाद गोलगप्पों का प्यारा ,पानी भर भर ,भूल गए
हलवाई की दुकानों से ,आये न खुशबू जलेबी की ,
वो गुलाब जामुन ,रसगुल्ले ,रबड़ी घेवर भूल गए
ना तो बाज़ारों में रौनक ,मॉल सभी सुनसान पड़े ,
पॉपकॉर्न पिक्चर हालों में ,खाना जी भर ,भूल गए
अब ना भीड़ भरे वो उत्सव ,शादी ब्याह बारातों में ,
छत्तीसों व्यंजन का खाना ,प्लेटें भर भर भूल गए
बच्चे मम्मी पापा सब मिल ,घर भर का सब काम करें ,
बात बात पर रौब दिखाना तीखे तेवर भूल गए
लौट आये संस्कार ,नमस्ते, हाथ जोड़ अब करते है ,
दूरी रखते ,प्यार जताना ,अब झप्पी भर ,भूल गए
 खुद को  बहुत सूरमा समझे बैठे मार  मार मच्छर ,
आया कोरोना ,हम डर कर ,लेना टक्कर भूल गए
ये सच है ,पॉल्यूशन कम है ,जल नदियों का शुद्ध हुआ ,
मुश्किल था जब लेना साँसें ,अब वो मंजर भूल गए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शुक्रवार, 1 मई 2020

लॉक डाउन -एक चिंतन

चिड़ियों ने उड़ना ना छोड़ा ,पंछी भी चहकते ,गाते है
फूलों की महक अब भी कायम ,भँवरे अब भी मंडराते है
बहती है हवा अब भी शीतल ,नदियां बहती है कल कल कल
लहरें समुद्र में उठती है और झरते भी झरते है  झर झर
उगते है रोज सूर्य  चंदा ,तारे भी चमकते है  चमचम
सब काम कर रहे अपना तो  ,क्यों घर में घुस कर बैठे हम
प्रकति की लायी आफत से ,प्रकृति है खुद भयभीत नहीं
इस तरह चुरा आँखें छुपना ,हिम्मतवालों की रीत नहीं
रस्ता यदि कंटक कीच भरा ,तो चलो बचाकर ,संभल संभळ
लेकिन यह बिलकुल उचित नहीं ,तुम बैठ जाओ ,बंद करो सफर
जीवन में  कठिन कठिन  विपदा, तो रहती  आती जाती है  
करना सघर्ष हमें पड़ता ,तब ही मंजिल मिल पाती है
जो  मिली चुनौती है हमको ,क्यों भाग रहे ,पीछे हट कर
इतिहास करेगा माफ़ नहीं ,कह कर कमजोर हमें कायर
सब बिगड़ जाएगा तारतम्य ,हालात कठिन हो जाएंगे
फिर से पटरी पर लाने में ,हमको बरसों लग जाएंगे
हो गयी बहुत तालाबंदी ,अब उचित यही ,संघर्ष करो
और चला बंद उद्योगों को ,फिर से अपना उत्कर्ष करो
कर गए पलायन श्रमिक कई ,उद्योग चलाना उनके बिन
है काम परेशानी वाला  मेहनत से ही होगा मुमकिन
चालीस दिन में है सीख लिया ,कोरोना से कैसे लड़ना
भय छोड़ सामना करना है और प्रगति के पथ पर बढ़ना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पत्नीजी के जन्मदिवस पर

 हर दिन  यूं रंगीन  ना होता
अगर आज का दिन ना होता

ना तुम इस धरती पर आती
बनती मेरी  जीवन  साथी
इस जीवन में इतनी खुशियां ,
आ पाना मुमकिन ना होता
अगर आज का दिन ना होता
 
यह सुन्दर मृदु प्यार तुम्हारा
यह निश्छल  व्यवहार तुम्हारा
इतनी सेवा और समर्पण ,
शायद ये तुम बिन ना होता
अगर आज का दिन ना होता

निशदिन खिला रसीले व्यंजन
तुमने  तृप्त किया  मेरा मन
जीवन में मिठास भर दिया ,
तुम बिन ये लेकिन ना होता
अगर आज का दिन ना होता

मन था प्यासा ,बहुत उदासा
तुम गंगा सी ,मैं यमुना सा
यदि अपना संगम ना होता ,
हर दिन बड़ा हसीन ना होता
अगर आज का दिन ना होता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

विवाह की वर्षगाँठ पर

मैं अठत्तर ,तुम तिहत्तर ,ख़ुशी का उत्सव मनायें
पर्व पावन ,ये मिलन का ,प्यार की ज्योति जलायें
मिलन का संयोग अपना ,लिखा ऐसा विधाता ने
एक दूजे की ,उमर भर ,रहेंगे हम बांह थामे
परिस्तिथियाँ ,कठिन से भी कठिन हो ,देंगे सहारा
हृदय में तुमको बिठा कर , उदेलेंगे प्यार सारा
दो बदन एक जान है हम ,दो हृदय पर एक धड़कन
प्रेम अपना ,एक दूजे को रहें करते समर्पण
हँसते हँसते ,यूं ही जीवन ,काट दे ,रूठें ,मनाये
पर्व आया है मिलन का ,प्यार की ज्योति जलाये

घोटू 
घोटू के पद

कोरोना ,जाओ तुम्हे हम जाने
 चमगादड़ के जाये हो तुम ,लोग तुम्हे पहचाने
चीन देश ने भेजा तुमको ,अपना जाल बिछाने
फ़ैल रहे तुम ,दिन दिन दूने ,सबको लगे सताने
कितनो के ही प्राण गमाये ,तुम्हारी विपदा ने
बच कर रहे सभी अब तुमसे,पास नहीं दे आने
घर में रहे,मुंह ढक घूमे ,कितने लोग सयाने
अपनों का स्पर्श न करते ,अपने अब  बेगाने
कोरोना ,जाव तुम्हे हम जाने

घोटू 
घोटू के पद

कोरोना की मार -विरहन की पुकार

प्रिय तुम ,कोरोना डर भागे
जबसे तुमसे नयन मिले है ,प्रेम भाव मन जागे
मिलन प्रतीक्षा में व्याकुल है ,प्यासे नयन अभागे
मैं तुम्हारी प्रेम पुजारन , सब जग बंधन त्यागे
करूं समर्पित ,निज सरवस मैं ,अगर पियाजी मांगे
तुम आये ,दूरी से देखा ,दो पग बढे न आगे
विरह पीड़ से तप्त बदन लख,गरम गरम सी साँसे
घोटू  तुम कोरोना डर से ,उलटे पैरों   भागे

घोटू    

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

सम्भावनाये

बड़े अरमान से बेटे की ,शादी सब किया करते ,
मगर ये जिंदगी का रुख किधर भी मोड़ सकती है
भाग्य पे होता ये निर्भर कि मिलती है बहू कैसी ,
अगर मिल जाए अच्छी तो वो रिश्ते जोड़ सकती है
सपन जो पोती पोते को ,खिलाओगे तुम गोदी में ,
भरे अरमान जो मन में ,वो सपने तोड़ सकती है
बुढ़ापे में सहारे  को  ,बनेगा बेटा एक लाठी ,
उसी लाठी से तुम्हारा ,वो सर भी फोड़ सकती है

कभी भी मत रखो ज्यादा ,किसी से आस तुम कोई ,
अपेक्षा  जब ,उपेक्षा  बनती है, दिल टूट जाता है
बसा लेता वो घर अपना ,अलग तुमको या कर देता ,
तुम्हारा लाडला बेटा ,तुम्ही से रूठ जाता है
यूं खट कर जो कमाते हो ,बचत खुद पर खपत करदो ,
नहीं तो वक़्त का डाकू ,सभी कुछ लूट जाता है
जब जाओगे इस दुनिया से ,नहीं कुछ साथ जाएगा ,
रहेंगे हाथ खाली ,सब  यहीं पर छूट जाता है

घोटू 
बुढ़ापे में मज़ा ले लें

अगर आये परेशानी ,तो हंस झेले बुढ़ापे में
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें ,बुढ़ापे में

लचकती चाल तुम्हारी ,कमर के दर्द के कारण ,
चलो इठलाती तुमको मैं ,लचकती कामिनी बोलूं
बदन थोड़ा भरा सा है ,है गदराया मोटापे से ,
चलो अल्हड सी मस्ती में ,तुम्हे गजगामिनी  बोलूं
मेरा भी हाल क्या कम है ,बुढ़ापे का हूँ मैं मारा ,
बची ना देह में फुर्ती ,जो बैठूं ,उठ नहीं  पाता
अधिक है खून  शक्कर ,बड़ा रहता है ,ब्लडप्रेशर ,
फूलने लगती है साँसें ,नहीं ज्यादा  चला जाता
ताश का खेल ,अच्छा है ,चलो खेलें  बुढ़ापे मे
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें बुढ़ापे में

तुम्हारी आँख पर चश्मा हमारी आँख पर चश्मा
चलो चश्मे के अंदर से ,मिलाएं बैठ कर आँखें
है पीड़ा मेरे पैरों में ,दबा दो तुम इन्हे थोड़ा ,
खुजा दूँ पीठ तुम्हारी , नरम से गाल सहला के
तुम्हारे काम मैं आऊं ,करो तुम भी मेरी सेवा ,
बढे नाखून पैरों के ,एक दूजे के हम काटें
बनाऊं चाय मैं और तुम ,पकोड़े तल के ले आओ ,
ले सुख भरपूर ,करदें दूर ,हम जीवन के सन्नाटे
यूं ही सुख एक दूजे को ,चलो दे लें बुढ़ापे में
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
विवाह की वषगांठ पर पत्नी से

मीते !तुम संग बरसों बीते
लगे बात कल की जब थामे ,हाथ रचे मेहँदी ते
तुमने हंस हंस,अपनों सरवस,प्रेम लुटा मन जीते
मधुर,सरस,मदभरे बरस कुछ,तो कुछ तीते तीते
जब से तुम आई जीवन में ,समय कट्यो  मस्ती ते
जो बाँध्यो  ,प्रेमपाश में ,बंदी हूँ तब ही ते
तुम ही मेरी ,राधा ,रुक्मण ,और तुम्ही हो सीते
पर 'घोटू ' की प्यास बुझी ना ,रोज अधर रस पीते

घोटू
बुहान के मेहमान से

ओ बुहान के मेहमान तुम कब जाओगे
देखो भाग जाओ वरना तुम पछताओगे
 
अतिथि का सत्कार हमारी परम्परा है ,
लेकिन इसने परेशानियां ,दर्द दिया है
इसके चलते ही मुगलों और अंग्रेजों ने ,
हमको लूटा मारा,हम पर राज किया है
ये सच है हम मेहमानो का स्वागत करते ,
उनकी सेवा आदर  में दिन रात लगाते
लेकिन अतिथि की भी कुछ मर्यादा होती ,
परेशान जो करता ,उसको लात लगाते
तुम अतिथि ना ,घर में घुसे ,आतयायी हो ,
सता रहे हो ,हम पर करके जबरजस्तियां
ऐसे हमलावर को है हम सीख सिखाते ,
उलटे पैर भगा दी हमने कई हस्तियां  
तुम घर में घुस ,घुसो गले में ,प्राण छीनलो
पता नहीं कब वेश बदल,किसके संगआओ
हमने इसीलिये सबसे दो गज की दूरी ,
बना रखी है ताक़ि हम तक पहुँच न पाओ
कर रख्खे है द्वार बंद मुख के भी हमने ,
ताला लगा लिया है मुंह पर मास्क पहन कर
काम धाम कर बंद लोग  घर  में है बैठे ,
ताकि तुम चोरी से घुसो न घर के अंदर
है सुनसान बज़ार ,देख सन्नाटा लौटो ,
 तुम्हे भगाने की करली है सब तैयारी
भागो वरना सेनेटाइजर ,मार मार कर ,
हालत बहुत बुरी हम देंगे बना तुम्हारी
देखो मान जाओ अब भी और भारत छोडो ,
 मोदी के मारे ,तुम सांस न ले पाओगे
बहुत हो गया, सीधे सच्चे ये बतलादो ,
कब छोड़ोगे पिंड ,पीठ कब दिखलाओगे

वादा करो कि वापस लौट नहीं आओगे
 ओ बुहान के मेहमान ,तुम कब आओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


 
बुहान के मेहमान से

ओ बुहान के मेहमान तुम कब जाओगे
वादा करो कि वापस लौट नहीं आओगे

अतिथि का सत्कार हमारी परम्परा है ,
लेकिन इसने परेशानियां ,दर्द दिया है
इसके चलते ही मुगलों और अंग्रेजों ने ,
हमको लूटा मारा,हम पर राज किया है
ये सच है हम मेहमानो का स्वागत करते ,
उनकी सेवा आदर  में दिन रात लगाते
लेकिन अतिथि की भी कुछ मर्यादा होती ,
परेशान जो करता ,उसको लात लगाते
तुम अतिथि ना ,घर में घुसे ,आतयायी हो ,
सता रहे हो ,हम पर करके जबरजस्तियां
ऐसे हमलावर को है हम सीख सिखाते ,
उलटे पैर भगा दी हमने कई हस्तियां  
तुम घर में घुस ,घुसो गले में ,प्राण छीनलो
पता नहीं कब वेश बदल,किसके संगआओ
हमने इसीलिये सबसे दो गज की दूरी ,
बना रखी है ताक़ि हम तक पहुँच न पाओ
कर रख्खे है द्वार बंद मुख के भी हमने ,
ताला लगा लिया है मुंह पर मास्क पहन कर
काम धाम कर बंद लोग  घर  में है बैठे ,
ताकि तुम चोरी से घुसो न घर के अंदर
है सुनसान बज़ार ,देख सन्नाटा लौटो ,
 तुम्हे भगाने की करली है सब तैयारी
भागो वरना सेनेटाइजर ,मार मार कर ,
हालत बहुत बुरी हम देंगे बना तुम्हारी
देखो मान जाओ अब भी और भारत छोडो ,
 मोदी के मारे ,तुम सांस न ले पाओगे
बहुत हो गया, सीधे सच्चे ये बतलादो ,
कब छोड़ोगे पिंड ,पीठ कब दिखलाओगे
भाग जाओ तुम जल्दी वरना पछताओगे
 ओ बुहान के मेहमान ,तुम कब आओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कोरोना -एक पद

माई री मोहे ,बहुत सतायो कोरोना
मौ से कहत रहो घर माही ,बाहर घूमो फिरो ना
मुंह पर पट्टी बाँध सभी से ,गज भर दूर रहो ना
बार बार साबुन से अपने ,हाथ पड़े अब   धोना
मुख से छीनी ,गरम जलेबी ,अरु रबड़ी का दोना
काम धाम की हो गयी छुट्टी ,दिनभर केवल सोना
आलस के बस फूल गयो अब तन का कोना कोना
ग्वाल बाल सब कंवारे बिचारे ,ना शादी नहीं गौना
कह 'घोटू 'सब तंग हो गये ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू  
 
छुट्टी ही छुट्टी

तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी
तब तक ,जब तक ना हो जाये , तुम्हारी  दुनिया से कुट्टी

जब करते काम तरसते है हम ,एक सन्डे की छुट्टी खातिर
उस दिन आराम ,मौज मस्ती ,परिवार संग रहना हिलमिल
यदि लम्बी छुट्टी मिल जाती ,मन बाग़ बाग़ हो जाता था
तब ऐसा लगता ,सोने में जैसे सुहाग  मिल जाता था
मिलती थी 'अर्नलीव 'लेकिन 'इनकैश 'कराते ,लालच वश
यह सोच ,रिटारमेंट बाद ,जी भर लेंगे ,छुट्टी का रस
 हो जाते  किन्तु  रिटायर जब  ,दुनिया लगती ,लुट्टी लुट्टी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

जब मिला रिटायरमेंट हमें ,कुछ  दिन  बीबी ने बात सुनी
अब छोटी छोटी बातों पर ,हो जाती अक्सर कहा सुनी
वो बना बहाना कोई भी ,अब हमें 'अवोइड '  करती है
उनके इस बेगानेपन पर ,इस दिल पर छुरियां चलती है
हो गए आलसी हम थोड़े ,आदत बन गया निठल्लापन
ऐसा लगता है स्वादहीन ,रसहीन हो गया ये जीवन
कोई भी रखता ,ख्याल नहीं ,क्यों मन को तसल्ली दे झुन्ठी
तुम साठ  साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

दिन भर घर में बैठे  रहते ,करना धरना कुछ काम नहीं
कुछ समय ठीक ,पर पूरे दिन ,हम कर सकते ,आराम नहीं
माना कि हुआ है तन ढीला लेकिन दिमाग फुर्तीला है
चलते फिरते सब हाथ  पैर ,और मन अब भी रंगीला है
पच्चीस प्रतिशत से ज्यादा ,जीवन जीना अब भी बाकी
तो इतना तो हक़ बनता है ,कर सकते कुछ ताका झांकी
है अब भी कीमत लाखों की ,जब तक हो बंद पड़ी मुठ्ठी
तुम साठ साल के बाद जियो ,जितने दिन ,छुट्टी ही छुट्टी

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
एक सवैया -हिरण हो गया

 नैन बसी सुन्दर छवि रमणी की ,हिरणी से नैन ,रूप मतवारो
 हिरन हुई सब चाह ,लोग जब ,समझायो भेद हिरण को सारो
स्वरण हिरण पीछे गए राम जी ,इहाँ रावण  सीता हर  डारो
काले हिरण की चाह  के कारण ,जेल गयो ,सलमान  बिचारो

घोटू 
कोरोना पर घोटू का एक पद

माई री मोहे बहुत सतायो कोरोना
मोसे कहत ,रहो घर में ही ,बाहर घूमो फिरो ना
 मुख से छीनी ,गरम जलेबी अरु रबड़ी का दोना
कामधाम तज ,पड़े निठल्ले ,दिन भर घर में सोना
आलस के वश ,फूल गया है ,तन का कोना कोना
परेशान  सब  ,कंवारे बेचारे ,ना शादी ना गौना
मुख पर पट्टी ,गज भर दूरी ,बस रोना  ही रोना
कह 'घोटू' कवि ,तंग हुए सब ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू 

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग पर हो ,सच्चे  शिक्षक
मन से हो  सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 सिखलाते हो  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा में आ जाती  शुद्धि
साठ  साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टीवी से  बस   चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
बना  बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमको  इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही ,शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी  चिंता  करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
हरि सुमरन  में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
मोह तजो प्रभु को भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण
वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग हो ,सच्चे  शिक्षक
सच्चे हो सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 हमें पढ़ाते  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा की तब होती शुद्धि
साथ साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टी वी  बस  ही चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
किसी बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमका इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी चिटा करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय ,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
राम भजन में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
तज मोह माया प्रभु भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण

 
कोरोना -घोटू के चार छक्के

कोरोना के कोप से ,बहुत दुखी इंसान
ढूंढ रहा सारा जगत ,इसका कोई निदान
इसका कोई  निदान ,बड़ी घातक बिमारी
त्राहि त्राहि कर रही ,आज दुनिया है सारी
आता है तूफ़ान ,लोग घर घुस कर रहते
घर रह बचो कोरोना से ,'घोटू 'कवि कहते

रामायण  में जिस तरह ,छिप कर बैठे राम
एक बाण में कर दिया ,बाली  काम तमाम
बाली काम तमाम ,शत्रु का बल पहचानो
नहीं सामने आओ ,अगर 'घोटू 'की मानो
मत बाहर घर से निकलो है तुम्हे मनाही
नहीं  चाहते जन जीवन की अगर तबाही

परेशान सब लोग है ,बंद है कारोबार
सूनी सब सड़कें पड़ी ,है वीरान बज़ार
है वीरान बज़ार,दिहाड़ी करने वाले
सब मजदूर बेकार ,पड़े खाने के लाले
'घोटू 'कितने सेवाभावी सामने  आये
जिनने खाना और राशन ,सबमे बंटवाये

बड़े बड़े सब डॉक्टर ,नर्स और स्टाफ
बीमारों की कर रहे ,है सेवा दिन रात
है सेवा दिन रात ,पोलिस के बंदे सारे
रहे व्यवस्था क़ानून की ये सभी संभाले
सब सफाई कर्मी ने भी कर्तव्य निभाया
डटे रहे जी जान ,कोरोना फैल न पाया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 26 अप्रैल 2020

सवैये कोरोना के

जीवन को सब रस ,चूस लियो डस डस ,वाइरस एक बुहान से आयो
सारे जगत को रख्यो गफलत में ,चीन ने काहू को ना बतलायो
फैली महामारी जब दुनिया में सारी तो लाखों के प्राणो पे संकट छायो
ऐसे कोरोना से लड़ने को मोदी ने ,सबको ही घर में बिठाय छुपायो

आवत नहीं बाज,जालसाज,दगाबाज, परेशान आज सब ,चीनियों की चाल से    
फैला दियो वाइरस ,भारी सी बिमारी वालो ,दुनिया के लोग सब ,हुए बदहाल से
थोड़े से जमाती ,खुरापाती ,उत्पाती बने ,फैलादी बिमारी खुद ,रहे न संभाल से
मोदी को कमाल देखो हार गयो  महाकाल ,महामारी फैल नहीं पायी देखभाल से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
कोरोना के कर्मवीरों  के प्रति

ओ कोरोना केकर्मवीर,तुमको मेरा ,शतशत प्रणाम
तुम्हारी मेहनत ,सेवा ने ,कोरोना पर कसदी  लगाम  

थी बड़ी विकट ही परिस्तिथि एकदम अन्जान बिमारी थी
सब साधन थे उपलब्ध नहीं ,और परेशानियां  भारी थी
उस पर डर संकम्रण का था ,पर तुम सेवा में लगे रहे
घर बार छोड़ कितनी रातें ,तुम ड्यूटी पर रह ,जगे रहे
यह सोच कोरोना घातक पर ,पीछे ना कदम हटाया है
कितनो को बचा मृत्यु मुख से ,तुमने कर्तव्य निभाया है
डॉक्टर हो या नर्सिंग स्टाफ ,या फिर सेवा कर्मी सारे
 पोलिस के अफसर ,दारोगा ,क़ानून के बन कर रखवाले
ये  वर्दी वाले  देवदूत ,मन में सेवा संकल्प लिये
सब है हक़दार प्रशंसा के ,दिन रात जिन्होंने एक किये
तुम हो विशिष्ट ,कर्तव्यनिष्ट ,हम तुम्हारे आभारी है
तुम्हारी त्याग तपस्या के ,बल पर कोरोना हारी है
है ऋणी तुम्हारे हम सब ही  ,ना भूलेगें  ये अहसान
ओ कोरोना के कर्मवीर ,मेरा तुमको शत शत प्रणाम
 
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोरोना की  देन

कहते हर एक बुराई के पीछे कुछ छुपी भलाई है
इस कोरोना के संकट ने ,हमको ये बात बताई है
ये सच है कि इसके कारण ,हमने दुःख बहुत उठाया है
पर आई क्षमता लड़ने की ,हमने कितना कुछ पाया है
सब रखते ख्याल सफाई का ,धोते है हाथ सलीके से
सब्जी फल जो भी लाते है ,धो खाते ,सही तरीके से
ना  भीड़  सिनेमा हालों में ,ना यूं ही विचरणा ,मालों में
आपस में आई निकटता है ,और प्यार बढ़ा घरवालों में
बचने को बोरियत से दिन भर ,कुछ महिलाओं ने ठीक किया
गूगल में रेसिपी पढ़ कर ,पकवान बनाना सीख लिया
अब  बहुत न होते  भंडारे ,मातारानी के जगराते
शादी सगाई की भीड़ घटी ,ना लम्बी चौड़ी बारातें  
ना नेताओं की वो रैली ,ना स्नेह मिलन के सम्मेलन
लग गयी लगाम ,नहीं होते ,अब भीड़ भाड़ वाले फंक्शन
कितना ज्यादा सुख मिलता था वो अपनी शान दिखाने में
शोशेबाजी ,गाना ,डीजे ,पकवान पचीसों खिलाने  में
अपनानी पड़ी सादगी है ,इस कीट कोरोना के कारण
सब कोशिश करते ,ना खाएं ,बाजारों से आया भोजन
इतना परिवर्तन आ ही गया है लोगो के व्यवहारों में
रखते सामजिक दूरी बना ,हर उत्सव और त्योहारों में
जरुरतमंदो को दान दिया ,लोगों ने खाना,राशन का
मानवता मन में जगा गया ,यह कठिन पर्व अनुशसन का
जब भी आता बदलाव कभी होती है सबको कठिनाई
चालीस दिन करी प्रेक्टिस फिर नव जीवन पद्धिति अपनाइ
अपव्यय छूटा ,मितव्ययी हुए ,हम स्वालम्बी बन पाये
ये सच है पर हम बदल गए ,जीवन में कितने सुख आये
कुछ परेशानिया आयी मगर ,हो गए आत्मनिर्भर है हम
निज सेहत के प्रति जागरूक ,अब फुर्तीले तत्पर है हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
आओ तुम्हे इंसान बना दे

मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें
वाधाओं  से लड़ना सिखला , जीवनपथ आसान बना दें

पढ़ा लिखा अच्छी शिक्षा दे ,तुम्हारा अज्ञान मिटा दे
भाईचारा ,प्यार सिखा कर , नफरत की दीवार हटा दें
मदद करो जरुरतमंदों की ,सद्भावों की खान बना दें
मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें

प्राणायाम,श्वसन क्रियाऔर तुमको थोड़ा ध्यान सिखा दें
अपना लक्ष्य प्राप्त करलो तुम ,तुमको ऐसी राह दिखा दें
सदाचार व्यवहार सिखा कर ,नम्र और गुणवान बना दें
मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें

प्रगति पथ पर रहो अग्रसर ,ऐसा मन में भाव जगा दें
लक्ष्य प्राप्ति की लगन लगी हो ,मन में वो उत्साह जगा दे
देशप्रेम की ज्योति प्रज्वलित करें,वतन की शान बना दें
मनुज रूप में जन्मे हो तुम ,आओ तुम्हे इंसान बना दें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-