कोरोना की देन
कहते हर एक बुराई के पीछे कुछ छुपी भलाई है
इस कोरोना के संकट ने ,हमको ये बात बताई है
ये सच है कि इसके कारण ,हमने दुःख बहुत उठाया है
पर आई क्षमता लड़ने की ,हमने कितना कुछ पाया है
सब रखते ख्याल सफाई का ,धोते है हाथ सलीके से
सब्जी फल जो भी लाते है ,धो खाते ,सही तरीके से
ना भीड़ सिनेमा हालों में ,ना यूं ही विचरणा ,मालों में
आपस में आई निकटता है ,और प्यार बढ़ा घरवालों में
बचने को बोरियत से दिन भर ,कुछ महिलाओं ने ठीक किया
गूगल में रेसिपी पढ़ कर ,पकवान बनाना सीख लिया
अब बहुत न होते भंडारे ,मातारानी के जगराते
शादी सगाई की भीड़ घटी ,ना लम्बी चौड़ी बारातें
ना नेताओं की वो रैली ,ना स्नेह मिलन के सम्मेलन
लग गयी लगाम ,नहीं होते ,अब भीड़ भाड़ वाले फंक्शन
कितना ज्यादा सुख मिलता था वो अपनी शान दिखाने में
शोशेबाजी ,गाना ,डीजे ,पकवान पचीसों खिलाने में
अपनानी पड़ी सादगी है ,इस कीट कोरोना के कारण
सब कोशिश करते ,ना खाएं ,बाजारों से आया भोजन
इतना परिवर्तन आ ही गया है लोगो के व्यवहारों में
रखते सामजिक दूरी बना ,हर उत्सव और त्योहारों में
जरुरतमंदो को दान दिया ,लोगों ने खाना,राशन का
मानवता मन में जगा गया ,यह कठिन पर्व अनुशसन का
जब भी आता बदलाव कभी होती है सबको कठिनाई
चालीस दिन करी प्रेक्टिस फिर नव जीवन पद्धिति अपनाइ
अपव्यय छूटा ,मितव्ययी हुए ,हम स्वालम्बी बन पाये
ये सच है पर हम बदल गए ,जीवन में कितने सुख आये
कुछ परेशानिया आयी मगर ,हो गए आत्मनिर्भर है हम
निज सेहत के प्रति जागरूक ,अब फुर्तीले तत्पर है हम
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कहते हर एक बुराई के पीछे कुछ छुपी भलाई है
इस कोरोना के संकट ने ,हमको ये बात बताई है
ये सच है कि इसके कारण ,हमने दुःख बहुत उठाया है
पर आई क्षमता लड़ने की ,हमने कितना कुछ पाया है
सब रखते ख्याल सफाई का ,धोते है हाथ सलीके से
सब्जी फल जो भी लाते है ,धो खाते ,सही तरीके से
ना भीड़ सिनेमा हालों में ,ना यूं ही विचरणा ,मालों में
आपस में आई निकटता है ,और प्यार बढ़ा घरवालों में
बचने को बोरियत से दिन भर ,कुछ महिलाओं ने ठीक किया
गूगल में रेसिपी पढ़ कर ,पकवान बनाना सीख लिया
अब बहुत न होते भंडारे ,मातारानी के जगराते
शादी सगाई की भीड़ घटी ,ना लम्बी चौड़ी बारातें
ना नेताओं की वो रैली ,ना स्नेह मिलन के सम्मेलन
लग गयी लगाम ,नहीं होते ,अब भीड़ भाड़ वाले फंक्शन
कितना ज्यादा सुख मिलता था वो अपनी शान दिखाने में
शोशेबाजी ,गाना ,डीजे ,पकवान पचीसों खिलाने में
अपनानी पड़ी सादगी है ,इस कीट कोरोना के कारण
सब कोशिश करते ,ना खाएं ,बाजारों से आया भोजन
इतना परिवर्तन आ ही गया है लोगो के व्यवहारों में
रखते सामजिक दूरी बना ,हर उत्सव और त्योहारों में
जरुरतमंदो को दान दिया ,लोगों ने खाना,राशन का
मानवता मन में जगा गया ,यह कठिन पर्व अनुशसन का
जब भी आता बदलाव कभी होती है सबको कठिनाई
चालीस दिन करी प्रेक्टिस फिर नव जीवन पद्धिति अपनाइ
अपव्यय छूटा ,मितव्ययी हुए ,हम स्वालम्बी बन पाये
ये सच है पर हम बदल गए ,जीवन में कितने सुख आये
कुछ परेशानिया आयी मगर ,हो गए आत्मनिर्भर है हम
निज सेहत के प्रति जागरूक ,अब फुर्तीले तत्पर है हम
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद