एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 22 जून 2019

         राजनीती का चलन

मैं  रख्खुँ  ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो
तारीफ़ करे जो अपनी ,कुछ चमचे पाल रखो
हम राजनीती चमकायें ,रह कर के अलग दलों में
टोपी सफ़ेद मैं पहनू ,तुम टोपी लाल  रखो

हम एक दुसरे दल के ,हो खुले आम आलोचक
पर आपस में मिल जाएँ ,यदि सिद्ध हो रहा मतलब
पाँचों ऊँगली हो घी में ,जब ऐसा मौका  आये ,
तुम आधा माल मुझे दो खुद आधा माल रखो        
मैं रख्खुँ ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

हम तुम दोनों के दल में ,कोई भी हो पावर में
लोगों का काम करा कर ,बरसायें लक्ष्मी घर में
कोई भी घोटाले में ,ना आये नाम किसी का ,
ये लूटपाट का धंधा ,कुछ सोच सम्भाल रखो
मैं रख्खुँ ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

है कमी कौन इस दल की उस दल की भी कमजोरी
थोड़ी तुमको मालुम है ,मालुम है मुझको थोड़ी
हम इसका लाभ उठायें ,ऊँचे पद पर चढ़ जाये ,
जब जरूरत हो मैं सीधी ,तुम उलटी चाल  रखो
मैं  रख्खुँ ख्याल तुहारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ' 
एक ऐसा भी हो रविवार

एक ऐसा भी हो रविवार
दिन भर हो मस्ती ,प्यार प्यार
रत्ती भर भी ना काम करें
बस हम केवल आराम करें
इतनी सी इस  दिल की हसरत
पूरा दिन फुरसत ही फुरसत
जब तक इच्छा ,तब तक सोयें
सपनो की दुनिया  में  खोयें
हों चाय ,पकोड़े ,बिस्तर पर
घर  बैठें मज़ा करें  दिन भर
ना जरुरत जल्द नहाने की
ना फ़िक्र हो दफ्तर जाने की
रख एक रेडियो ,सिरहाने
बस सुने पुराने हम गाने
या बैठ धूप में हम छत पर
हम खाये मूंगफली तबियत भर
या बाथरूम में चिल्ला कर
गाना हम गायें ,जी भर कर
मस्ती में गुजरे दिन सारा
मिल जाय प्यार जो तुम्हारा
सोने में सुहागा  मिल जाए
हमको मुंह माँगा मिल जाए
तुम मुझमे ,मैं तुम में खोकर  
बस  एक दूसरे के होकर
हम उड़े एक नयी दुनिया में
एक दूजे की बाहें थामे
जो इच्छा हो, खाये  पियें
एक दिन खुद के खातिर जियें
कम से कम महीने में एक बार
एक ऐसा भी हो रविवार
भूलें सब चिंता और रार
दिन भर बरसे बस प्यार प्यार

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '





 



शुक्रवार, 21 जून 2019

ये प्यार बुढ़ापे वाला भी

ये प्यार बुढ़ापे वाला भी
करता हमको मतवाला भी
कहते देती दोगुना मज़ा ,
हो अगर पुरानी हाला भी

इतने दिन यौवन की संगत
लाती है बुढ़ापे में रंगत
आ जाता  रिश्तों में मिठास,
दिन दिन दूनी बढ़ती चाहत
 
कर रोज रोज  भागादौड़ी
कौड़ी  कौड़ी माया  जोड़ी
बच्चे घर बसा दूर जाते ,
सब उम्मीदें जाती तोड़ी

वो भरा हुआ घर ,चहल पहल
होता है खाली एक एक कर
सब सूना होता ,बचते है ,
घर में पति पत्नी ही केवल

जो साथ निभाते जीवन भर
रहते है आपस में निर्भर
अपने मन का सब बचा प्यार ,
देते उंढेल ,एक दूजे पर

थे बहुत व्यस्त ,जब था यौवन
संग रहने मिलते थे कुछ क्षण
अब पूरा समय समर्पित है,
हम रहते एक दूजे के बन

संग बैठो ,मिल कर बात करो
बीते किस्सों को याद करो
अपने ढंग से जीवन जियो ,
मस्ती ,खुशियां ,आल्हाद करो

ये साथ समर्पण वाला भी
सब अर्पण करने वाला भी
हम तुम मिल कर गप्पे मारे ,
हो हाथ चाय का प्याला भी

घोटू 

सोमवार, 17 जून 2019

दीवाली के उपहार

दीवाली पर दिये जाने वाले उपहार
के होते है चार प्रकार
एक त्वरित खानेवाले
दूसरे  अलमारी में जानेवाले
तीसरे काम में  आनेवाले
और चौथे निपटानेवाले
त्वरित खानेवाली श्रेणी में
आते है फल और मिठाई
जो दो तीन दिन में जाना चाहिए खाई
वर्ना आसपास पड़ोसियों को देकर
जा सकती है निपटाई
सिर्फ सोहनपपड़ी का डब्बा इसका अपवाद है
जो काम में आ सकता काफी समय बाद है
दूसरी श्रेणी में चाँदी के सिक्के या बर्तन
या लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां आती है
जो सीधी अलमारी में जाती है
और कोई ख़ास मौकों पर
जरुरत पड़ने पर काम में आती है
पुष्पगुच्छ ,मोमबत्तियां ,दीपक ,
रंगोली बंदरवार आदि तीसरी श्रेणी में आती है
जो दिवाली पर ही साजसजावट के काम में आती है
इस श्रेणी में कुछ रसोई के उपकरण ,बर्तन
और क्रॉकरी आदि भी आते है
जिन्हे लोग इसलिए बचाते है कि ये बाद में
कभी भी काम में आ जाते है  
चौथी श्रेणी याने निपटानेवाली श्रेणी के उपहार
होते है बेशुमार
बेचारे कई वर्षों से इसी श्रेणी में पाए जाते है
और तीन चार घर घूम कर आपके यहाँ आते है
आपकी कोशिश होती है कि इनमे से ,
जितने भी निकल सके,निकालो
और जल्दी से छुटकारा पा  लो
जब न चाहते हुए भी किसी को उपहार देना पड़े
ये काम आते है बड़े
पर ऐसे अटपटे उपहार देकर ,
आप इनसे छुटकारा तो पा लेते है
पर अक्सर ये आपको ,
उपहास का पात्र बना देते है
जैसे एक बच्चे के जन्मदिन पर ,
एक टोकरी में मोमबत्ती और कुछ सूखा मेवा ,
अगर है उपहार दिया जाता
तो ये कहीं से भी उपहार का ओचित्य नहीं बताता
तो ऐसे निपटाने वाले उपहारदाता बंधू जन ,
आपसे है मेरा एक नम्र निवेदन
ऐसे उपहार देने की औपचारिता मत पालो
अटपटे उपहार के बदले ,
एक गुलाब के फूल से ही काम चलालो
क्योकि आपके ऐसे निपटाने वाले उपहार
नहीं दर्शाते है आपका प्यार
बल्कि एक बला टालना कहलाता है
उपहार पानेवाले को किँचित ही प्रसन्नता दे पाता है
लोग आपके उपहार और मनोवृत्ति का मजाक उड़ाते है
उपहार देकर आप उपहास के पात्र बन जाते है
इसलिए आप समझदार बन
बंद करो ये निपटाने वाले उपहार का चलन

घोटू 
आत्मअवलोकन
 
मेरे मन में पूरे जीवन भर ये ही संताप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

मेरे दो दो ,काबिल बेटे ,होनहार और पढ़ेलिखे
मैंने लाख करी कोशिश पर दोनों घर पर नहीं टिके
शादी करके फुर्र हो गये ,नीड़ बसा अपना अपना
मैं तन्हा रह गया अकेला ,टूट गया मेरा सपना
भूले भटके याद न करते ,ऐसा मुझको भुला दिया
तोड़ दिया उनने मेरा दिल अंतर्मन से रुला दिया
मैं फिर भी वो सुखी रहें यह ,करता प्रभु से जाप रहा
या तो  बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

मेरी एक नन्ही गुड़िया सी प्यारी प्यारी है बेटी
मन उलझाया एक विदेशी को अपना दिल ,दे बैठी
बड़ा चाव था धूमधाम से उसका ब्याह रचाऊँगा
मुझको छोड़ विदेश जा बसी ,कैसे मन समझाऊंगा
संस्कार जो मैंने डाले ,सारे यूं ही फिजूल गये
उड़ना सीख ,उड़ गए सारे ,बच्चे मुझको भूल गए
उनका यह व्यवहार बेगाना ,सहता मैं चुपचाप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

कई बार रह रह कर है एक हूक उठा करती मन में
कुछ ना कुछ तो कमी रह गयी ,मेरे लालन पोषण में
वर्ना आज बुढ़ापे में है ये एकाकीपन ना रहता
मेरे सारे अरमानो का ,किला इस तरह ना ढहता
फिर भी लेखा मान विधि का ,खुश हूँ मैं जैसा भी हूँ
सदा रहा उनका शुभचिंतक ,चाहे मैं कैसा भी हूँ
हरेक हाल में ,ख़ुशी ढूंढता ,मैं तो अपनेआप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मस्ती का जीवन

ना व्हिस्की ,रम या कोई बियर पी रहा हूँ मैं
फिर  भी नशे की मस्ती में अब जी रहा हूँ मैं

थोड़ा सा नशा दोस्तों के साथ ने दिया
थोड़ा नशा बेफिक्री के हालात ने दिया
बीबी का बुढ़ापे में है कुछ  प्यार बढ़ गया  
इस वजह से भी थोड़ा नशा और चढ़ गया
मन मस्तमौला बन के लगा फिर से फुदकने
बुझता हुआ अलाव लगा फिरसे धधकने
अंकल हसीना कहती ,मगर बोलती तो है
कानो में मीठी बोली अमृत घोलती तो है
आँखों से उनके हुस्न का रस ,पी रहा हूँ मैं
फिर भी नशे में मस्ती के अब जी रहा हूँ मैं

ना उधो से लेना है कुछ ना माधो का देना
ना कोई सपन देखते ,धुंधले से ये नैना
कर याद बीते अच्छे बुरे वाकिये सारे
कुछ वक़्त गुजर जाता है यादों के सहारे
क्या क्या गमाया और क्या क्या कर लिया हासिल
किसने लुटाया प्यार किसने तोड़ दिया दिल
कर कर के याद बीते दिन ,सुख दुःख में जो काटे
दिल के तवे पे सिकते है यादों के परांठे
दिल पे जो लगे जख्म ,सारे सी रहा हूँ मैं
फिर भी नशे में मस्ती के अब जी रहा हूँ मैं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा आने लगा है


थे कभी जो बाल काले
सजा करते थे निराले
उम्र के संग हाल उनका ,ज़रा छितराने लगा है
                                 बुढ़ापा आने  लगा है    
हौंसले थे बुलंदी पर ,पस्त अब होने लगे है
शारीरिक कमजोरियों से ग्रस्त हम होने लगे है
काम मेहनतवाला कोई,अब नहीं हो पाता हमसे
फूलने लगती है सांसे ,ज़रा से भी परिश्रम  से  
और उस पर नौकरी से भी रिटायर कर दिया है
हो गए है हम निकम्मे ,भाव मन में भर दिया  है
नहीं वो मौसम रहा अब
थी नसों में बिजलियाँ जब
जवानी के नये नुस्खे ,मन ये आजमाने लगा है
                                 बुढ़ापा आने लगा है
हमें आता याद रह रह ,जवानी का बावरापन
सुनहरी  रातें रंगीली ,प्यार का उतावलापन
और अब हालात ये है ,इस तरह पड़ रहा जीना
प्यार की जब बात चलती छूटने लगता  पसीना
मगर ये दिल लालची है ,नहीं बिलकुल मानता है
उम्र की अपनी हक़ीक़त ,भले  ही  पहचानता है
आज तन और मन शिथिल है  
समस्याये अब जटिल  है
 था खिला जो जवानी का कमल कुम्हलाने लगा है
                                       बुढ़ापा आने लगा है
आदतें बिगड़ी हुई जो नहीं पीछा छोड़ पाती
दिखे अब भी जब जवानी ,उधर नज़रें दौड़ जाती
कई घोड़े कल्पना के ,दौड़ते है मन के अंदर
गुलाटी ना भूल पाता ,कितना ही बूढा हो बन्दर
क्षीण सी होने लगी है जवानी की वो धरोहर  
बुढ़ापे के चिन्ह सारे ,लगे होने दृष्टीगोचर
याद कर आल्हाद के दिन
वो मधुर  उन्माद के दिन
उम्र का अवसाद मुझ पर ,अब कहर ढाने लगा है
                                       बुढ़ापा आने लगा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 13 जून 2019

एक लड़की  को देखा तो ऐसा लगा

कल मैंने फिर एक लड़की देखी
पचास साल के अंतराल के बाद
मुझे है याद
पहली ल ड़की तब देखी थी जब मुझे करनी थी शादी
ढूंढ रहा था एक कन्या सीधी सादी
मैं उसके घर गया
मेरे लिए ये अनुभव था नया
वैसे तो कॉलेज के जमाने में खूब लड़कियों को छेड़ा था
काफी किया बखेड़ा था
पर उस दिन की बात अलग थी इतनी
मैं ढूंढ रहा था अपने  लिए एक पत्नी
थोड़ी देर में ,
हाथ में एक ट्रे में  चाय के कप लिए ,
वो शरमाती हुई आई
थोड़ी डगमगाती हुई आई
चाय के कप आपस में टकरा कर छलक रहे थे
उसके मुंह पर घबराहट के भाव झलक रहे थे
थोड़ी देर में वो सेटल हुई और चाय का कप मेरी ओर बढ़ाया
मैं भी शरमाया,सकुचाया और मुस्काया
फिर चाय का कप होठों से लगाया  
तो उसकी मम्मी ने फ़रमाया
चाय बेबी ने है खुद बनाई ,
आपको पसंद आई
बेसन की बर्फी लीजिये बेबी ने ही बनाया है
इसके हाथों में स्वाद का जादू समाया है
मैंने लड़की से पूछा और क्या क्या बना लेती हो ,
लड़की घबरा गयी ,भोली थी
बोली कृपया क्षमा करना ,मम्मी झूंठ बोली थी
मम्मी ने कहा था की लड़का अगर पूछे किसने बनाया ,
तुम झूंठ बोल देना ,पर मेरा मन झूंठ नहीं बोल पाता
पर सच ये है कि किचन का काम मुझे ज्यादा नहीं आता
ये चाय मैंने नहीं बनाई है
और बर्फी भी बाजार से आई है
उसकी इस सादगी और सच्चाई पर मैं रीझ गया
प्रेम के रस भीज गया
उसकी ये अदा ,मेरा मन चुरा गयी
और  वो मेरे मन भा  गयी
और एक दिन वो मेरी बीबी बन कर आ गयी
बाद में पता लगा कि ये सच और झूंठ का खेल ,
सोचा समझा प्लान था
जिस पर मैं हुआ कुर्बान था
जिसने लड़की की कमजोरी को खूबसूरती से टाल दिया
और उस पर सादगी का पर्दा डाल दिया
पचास वर्षों के बाद  ,
मैं अपने बेटे के लिए लड़की देखने गया था कल
मिलने की जगह उसका घर नहीं ,
थी एक पांच सितारा होटल
न लड़की डगमगाती हुई हाथ में चाय की ट्रे लाइ
न शरमाई
बल्कि आर्डर देकर वेटर से कोल्ड कोफ़ी मंगवाई
अब मेरा कॉफी किसने बनाई पूछना बेकार था
पर मैं उसके कुकिंग ज्ञान को जानने को बेकरार था  
जैसे तैसे मैंने खानपान की बात चलाई पर
इस फील्ड के ज्ञान में भी वो मुझसे भारी थी
उसे 'मेग्गी' से लेकर 'स्विग्गी' की पूरी जानकारी थी  
फिर मैंने ऐसे मौको पर पूछे जानेवाला,
 सदियों पुराना प्रश्न दागा
क्या तुम पापड़ सेक सकती हो जबाब माँगा
उसने बिना हिचकिचाये ये स्पष्ट किया
वो जॉब करती है और प्रोफेशनल लाइफ के दरमियाँ
बेलने पड़ते है कितने ही पापड़
तभी पा सकते हो तरक्की की सीढ़ी चढ़
जब ये पापड़ बेलने की स्टेज निकल जायेगी
पापड़ सेकने की नौबत तो तब ही आएगी
जबाब था जबरजस्त
मैं हो गया पस्त
मैंने टॉपिक बदलते हुए पूछा 'तुम्हारी हॉबी '
उसने अपने माँ बाप की तरफ देखा
और उत्तर फेंका
मैं किसी को भी अपने पर हॉबी नहीं होने देती हूँ
घर में सब पर मैं ही हाबी रहती हूँ
और शादी के बाद ये तो वक़्त बताएगा
कौन किस पर कितना हॉबी रह पायेगा
हमने कहा हॉबी से हमारा मतलब तुम्हारे शौक से है
वो बोली शौक तो थोक से है
देश विदेश घूमना ,लॉन्ग ड्राइव पर जाना
मालों में शॉपिंग ,होटलों  में खाना
सारे शौक रईसी है
उनकी लिस्ट लंबी है
हमने कहा इतने ही काफी है
इसके पहले कि मैं कुछ और पूछता ,
उसने एक प्रश्न मुझ पर दागा
और मेरा जबाब माँगा
आप अपने बेटे बहू के साथ रहेंगे
या उन्हें अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने देंगे
और बात बात में उनकी लाइफ में इंटरफियर करेंगे
ये प्रश्न मेरे दिमाग में इसलिए आया है
क्योंकि मुझे देखने जिसे शादी करनी है वो नहीं आया है
आपको भिजवाया है
प्रश्न सुन कर मैं सकपकाया
क्या उत्तर दूँ ,समझ में नहीं आया
मैंने कहा ये सोच नाहक है
हर एक को स्वतंत्रता से जीने का हक़ है
हम भला बच्चों की जिंदगी में टांग क्यों अड़ायेगे
अपने अपने घर में अपनी अपनी मल्हार जाएंगे
हम भी अपनी आजादी और सुख देखेंगे
और किसी को अपने पर हॉबी नहीं होने देंगे
वो तो उत्सुकता वश हम तु म्हे देखने आ गए ,
वर्ना अंतिम निर्णय तो हमारा बेटा ही ले पायेगा
जो किसी के साथ अपना घर बसाएगा
खैर हम लड़की देख कर
आ गए अपने घर
लड़की तब भी देखी  थी
लड़की अब भी देखी है
पर पचास साल बाद आया है इतना अंतर
पहले लड़कियां लूटती थी भोली बन कर
आजकल लूटती है तन कर
पहले शादी के बाद अपनी चलाती थी
अब शादी के पहले से अपनी  चलाती है
क्योंकि खुद नौकरी करती है ,कमाती खाती है
इसलिए खुद को 'इंडिपेंडेंट 'समझती है
अपनी मन मर्जी से चलती है
सकुचाने शरमाने का फैशन हो गया है ओल्ड
आज की लड़कियां हो गयी है बोल्ड
उनका अहम् प्रबल हो गया है
उनका 'आई ' केपिटल ' हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

बुधवार, 12 जून 2019


                              पत्नी अष्टक  

 ब्याह समय सही लक्ष लियो और फूल को हार गले मोरे डारो
तबसे बंध्यो ,बंधुवा मजदूर सो ,पत्नी इशारों पे  नाचूँ  बिचारो
ऐसो वो पहनयो  है हार गले ,कभी जीत न पायो ,सदा मैं हारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि,संकट दायिनी  नाम  तिहारो -१
हाथ में हाथ मिलाय पुरोहित ,बांध्यो है  बंधन ,ऐसो  हमारो
कोशिश लाख करी पर कबहुँ भी ,भाग नहीं मैं पायो बिचारो  
भाग्य लिखी है जो भाग्यविधाता ने ,मान  वो ही सौभाग्य हमारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि  संकटदायिनी  नाम  तिहारो -२
मंत्र  पढाय कराय के पंडित ,पावन यज्ञ  को  फेरा थो  डारो
हर फेरन संग ,एक वचन दई ,सात वचन  पत्नी संग  हारो
फेर में फेरन के ऐसो ,फस्यो फिर ,शादीशुदा भयो ,रह्यो न कंवारों
को नहीं जानत  जग में भामिनि ,संकट दायिनी नाम  तिहारो -३
लछमी  बन करती छम छम तुम आई प्रसन्न हुयो घर सारो
नैनन से, मृदु बैनन से अरु अधरन से इहि  जादू सो डारो
रूप के जाल में ,ऐसो मैं उलझयो कि निकल न पायो ,वासना मारो
को नहीं जानत  जग में  भामिनि, संकट दायिनी  नाम  तिहारो -४
चार दिनन की रही मस्ती फिर ऐसो गृहस्थी  को बंधन  डारो
कोल्हू को बैल बन्यो दिन भर फिर ,काम में उलझ्यो रहुँ मैं बिचारो
मै दिन रेन ,करूँ विनती प्रभु ,लौटा दो फिर से तुम चैन हमारो
को नहीं जानत है जग में भामिनि , संकट दायिनी नाम  तिहारो -५
नाच नचाय ईशारन पर नित  ,रोज मैं  नाच नाच प्रभु  हारो
देवी की सेवा करूं इतनी सब ,देवीदास कह ,मोहे  पुकारो
स्वर्णाभूषण भेंट करूं जब ,तब ही लगूं ,उनके मन प्यारो
को नहीं जानत, जग में भामिनि , संकट दायिनी  नाम  तिहारो -६
कौन कला तुम्हे आये रमापति ,कौन सो जादू  रमा पर डारो    
शेष की शैया पे आप बिराजो ,लक्ष्मीजी पाँव दबाय  तुम्हारो
वो ही कला प्रभु मोहे सिखला दो ,मानूंगा मैं उपकार हजारों
को नहीं जानत , जग में भामिनि , संकट दायिनी नाम  तिहारो -७
काज कियो बड़ देवन के तुम ,हे हनुमान ,मोहे भी उबारो
शादी के फेरे में आप फंसे नाही ,तबही रह्यो वर्चस्व तुम्हारो
त्रिया त्रसित प्रभु दास तुम्हारो ,पत्नी को अब स्वभाव  सुधारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि, संकट दायिनी नाम  तुम्हारो -८
                       दोहा
      स्वर्ण देह ,जादू बसे ,नैनन में भरपूर
     कृपा करो पत्नी प्रिया ,रहे न मद में चूर

घोटू

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

बस्ती की एक सुबह

 
 

कबूतरों की बस्ती की एक सुबह

पौ फटी
कबूतरों की बस्ती में हलचल मची
एक बूढी कबूतरनी ने ,
अपने पंखों को फड़फड़ाया
और पास में सोये अपने कबूतर को जगाया
बोली जागो प्रीतम प्यारे
मोर्निग उड़ान पर निकल चुके है दोस्त तुम्हारे
तुम्हे भी व्यायाम के लिए जाना है
विटामिन डी की कमी को दूर करने ,
थोड़ी देर धूप भी खाना है
आलस में डूबा कबूतर जब कुछ न बोला
तो कबूतरनी ने उसे झिंझोड़ा
बोली उठो ,इस बुढ़ापे में हमें ही ,
अपनी सेहत का ध्यान खुद ही रखना पडेगा
दूसरा कोई ख्याल नहीं रखेगा
क्योंकि बच्चे तो अपना अपना नीड़ बसा
हो गए है हमसे अलग
मुश्किल से ही हमें पूछते है अब
आप उधर व्यायाम करके आओ,
इधर मैं कुछ दाना चुग कर आती हूँ
आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाती हूँ
और सुनो तुम दो दिन से नहाये नहीं हो
आते समय स्विंमिंगपूल में पंख फड़फड़ा कर आ जाना
और किसी अन्य कबूतरी से नैन मत लड़ाना
एक बात और याद रखना
कुछ लोगो ने मंदिर के आसपास ,
बाजरे के दाने बिखरा रखे है ,उन्हें मत चखना
इस तरह दाने बिखरा कर ,
ये लोग सोचते है कि वो पुण्य कमा रहे है
पर दर असल वो हमारी कौम को ,
आलसी और निकम्मा बना रहे है
सुन कर के उनका वार्तालाप
पड़ोस के घोसले में 'लिविंग इन रिलेशनशिप 'में
रहनेवाला एक जवान कबूतर का जोड़ा गया जाग
कबूतरनी ने ली अंगड़ाई
'गुडमॉर्निंग किस' के लिए ,
कबूतर की चोंच से चोंच मिलाई
वो मुस्कराई और बोली डार्लिंग आपका क्या प्रोग्राम है
कहाँ गुजारनी आज की शाम है
कबूतर बोला आज मैंने छुट्टी लेली है
दिन भर करना अठखेली है
पहले हम स्वीमिंगपूल के किनारे जायेगे
पूल में तैरती सुंदरियों के दीदार का मज़ा उठाएंगे
बीच बीच में हम भी थोड़ी जलक्रीड़ा करेंगे
चोंचे मिला कर ,रासलीला करेंगे
और फिर उस चौथी मंजिल वाली बालकनी को
अपनी इश्कगाह बनाएंगे
गुटरगूँ कर पंख फैलाएंगे
हंसी ख़ुशी दिन गुजारेंगे और फिर
अपने घोंसले में लौट आएंगे
पता नहीं क्यों लोग इतने संगदिल होते जारहे है
जो हमारी इश्कगाहों याने अपनी बालकनियों पर ,
जाली लगवा रहे है
वो लोग कभी जिनके प्रेमसन्देशे हम लेकर जाते थे
कबूतर जा जा के गाने गाते थे
आजकल वो ही गए है बन
हमारे प्यार के दुश्मन
बड़ी मुश्किल से कहीं कहीं मिलता है ठिकाना
वरना तड़फता ही रहता ये दिल दीवाना
कबूतरनी बोली छोडोजी ,
जब तक जवानी है ,मौज मना लें
थोड़ा सा हंस लें ,थोड़ा मुस्करालें
वरना फिर तो वो ही दूसरे कबूतरों की तरह ,
रोज रोज दाना चुगने ,दूर दूर जाना पड़ेगा
गृहस्थी की गाडी चलना पड़ेगा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 नमो मोदी ,नमो मोदी 

बहन कूदी ,जुटे जीजा ,मगर ना गेम वन पाया
भीड़ उमड़ीसभाओं में ,मगर ना प्रेम बन पाया 
घूम कर गाँव गलियों में बहुत चीख़ा और चिल्लाया 
बहुत कोशिश की पप्पू नहीं पी.एम.बन पाया 
बुढ़ापे में दुखी होकर ,बिचारी मम्मीजी रो दी 
बहुत हमको सताता तू ,अरे मोदी अरे मोदी 

सभी हथकंडे अपनाये,तरीक़ा जो भी था सूझा 
जनेउ पहन करके मंदिरोंमें जा जाकर करी पूजा 
बताया जो भी गुर्गों ने ,वो सारे नुस्ख़े अपनाये,
मैं बोला मुँह से जो निकला,नहीं समझा नहीं बूझा 
उगेगी जब तो देखेंगे ,फ़सल वादों की यूँ बो दी 
बहुत ही नाच नचवाए,अरे मोदी ,अरे मोदी 

देख कर शेर का रूदबा,सभी सहमे ,मचा क्रंदन 
लोमड़ी और सियारों ने ,बनाया मिल के गठबंधन 
दिया करते थे इक दूजे को जो जमकर सदा गाली ,
लगा अस्तित्व ख़तरे में ,बन गये दोस्त सब दुश्मन 
चलाया पप्पू ने चप्पू ,मगर नैया  ही डूबो दी 
गूँज है शेर बब्बर की ,हर तरफ़ मोदी ही मोदी 

अब तलक देश को लूटा ,सम्पदा का किया दोहन 
ले के रिमोट हाथों में,नचाये ख़ूब मनमोहन
ग़रीबी को मिटाना था ,ग़रीबों को मिटा डाला ,
किये कितने ही घोटाले ,किया जितने बरस शासन
बिठा कर देश का भट्टा,कबर अपनी ही ख़ुद खोदी 
गालियाँ दे रहे है अब ,बुरा मोदी ,बुरा मोदी 

बड़ा है जोश मोदी में ,बहुत बन्दे में है दमख़म 
विदेशों में जा फहराया,हमारे देश का परचम 
न घोटाला ,नहीं चोरी ,स्वच्छता से भरा शासन
नोटबंदी करी इसने ,निकाला कितना कालाधन
बिछाया जाल सड़कों का गेसऔर बिजली सबको दी
नमो मोदी ,नमो मोदी,नमो मोदी ,नमो मोदी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

नमस्ते

मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि क्या आपको मेरा ईमेल मुझे भेजा गया है? अगर हाँ
इसका जवाब दें ताकि हम आगे बढ़ सकें। अगर मुझे पता है कि मुझे वापस मिल जाए तो मैं
इसे फिर से शुरू कर सकते हैं।

समझने के लिए धन्यवाद।

सादर

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

अहंकार के मारे लोग 

कुछ लोग बेचारे 
आत्म बोधित 'वी आई पी स्टेटस 'के मारे 
हर कार्यक्रम में देर से आते है 
उन्हें लगता है ऐसा करने से,
 वो सबकी अटेन्शन पाते है 
उन्होंने अपने मन में,
 एक 'सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स 'पाल रखा है 
खुद को अहंकार के सांचे में ढाल रखा है 
लोगो का ध्यान अपनी तरफ खींचने ,
कभी वो पैसा पानी की तरह बहाते है 
कभी अपना बाहुबलीपना दिखलाते है 
पर किसको किसकी परवाह है 
अपने घर में हर कोई शहंशाह है 

घोटू 
परिवर्तन 

पतझड़ की ऋतु में पत्ते भी ,अपना रंग बदल लेते है 
ज्यादा पक जाने पर फल भी ,अपनी गंध बदल लेते है 
प्रखर सूर्य ,पीला पड़ता जब दिन ढलता ,होता अँधियारा 
साथ सदा जो रहता साया ,छोड़ा करता  संग तुम्हारा 
मात पिता बूढ़े होते तब शिथिल बदन लाचार बदलता 
लेकिन अपने बच्चों के प्रति ,तनिक न उनका प्यार बदलता 

घोटू 

बुधवार, 3 अप्रैल 2019

योगी सरकार मिल मालिकों की सरकार

अलीगढ़।योगी सरकार में श्रम कानूनों का पालन नहीं कराया जा रहा है इसके विपरीत मिल मालिकों की पक्ष धारी कि जा रही है
मिल मालिकों ने 14 7 मजदूरों को श्रम कानूनों को लागू करने की मांग करते ही बगैर नोटिस दिए निकाला गया है।
 योगी मोदी सरकार में मिल मजदूरों की दशा अत्यधिक खराब है
स्थानीय वेब शराब व बीयर फैक्ट्री के निष्काषित मजदूरों का अनिश्चित कालीन धरना आज आठवें दिन भी जारी रहा।
जिला प्रशासन के उदासीन व्यवहार के चलते आंदोलन रत मजदूरों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है,इनका मानना है कि जिला प्रशासन फैक्ट्री मालिकों के हाथ में खिलौना बना हुआ है और फैक्ट्री प्रबन्धन के विरुद्ध कार्यवाही करने की उसमें हिम्मत नहीं है, जबकि मजदूरों की मांगें संवैधानिक एवं न्यायोचित हैं।मजदूरों का कहना है कि यदि शीघ्र ही फैक्ट्री प्रबन्धन पर दबाब बनाकर हमारी माँगे पूरी न करायी गई तो हम आंदोलन के अन्य विकल्पो पर विचार करने पर मजबूर होंगे,जिसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
इस अवसर पर आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुहेब शेरवानी, सचिव रामबाबू गुप्ता, रामवीर सिंह, जगदीश प्रसाद , धर्मवीर उपस्थित रहे।

कबूतरों की बस्ती की एक सुबह 

पौ फटी 
कबूतरों की बस्ती में हलचल मची 
एक बूढी कबूतरनी ने ,
अपने पंखों को फड़फड़ाया 
और पास में सोये अपने कबूतर को जगाया 
बोली जागो प्रीतम प्यारे 
मोर्निग उड़ान पर निकल चुके है दोस्त तुम्हारे 
तुम्हे भी व्यायाम के लिए जाना है 
विटामिन डी की कमी को दूर करने ,
थोड़ी देर धूप  भी खाना है 
आलस में डूबा कबूतर जब कुछ न बोला  
तो कबूतरनी  ने उसे झिंझोड़ा 
बोली उठो ,इस बुढ़ापे में हमें ही ,
अपनी सेहत का ध्यान खुद ही रखना पडेगा 
दूसरा कोई ख्याल नहीं रखेगा 
क्योंकि बच्चे तो अपना अपना नीड़ बसा  
हो गए है हमसे अलग 
मुश्किल से ही हमें पूछते है अब 
आप उधर व्यायाम  करके आओ,
इधर मैं कुछ दाना चुग कर आती हूँ 
आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाती हूँ 
और सुनो तुम दो दिन से नहाये नहीं हो 
आते समय स्विंमिंगपूल में पंख फड़फड़ा कर आ जाना
और किसी अन्य कबूतरी से नैन मत लड़ाना 
एक बात और  याद रखना 
कुछ लोगो ने मंदिर के आसपास ,
बाजरे के दाने बिखरा रखे है ,उन्हें मत चखना 
इस तरह दाने बिखरा कर ,
ये लोग  सोचते है कि वो पुण्य कमा  रहे है 
पर दर असल वो हमारी कौम को ,
आलसी और निकम्मा बना रहे है  
 सुन कर के उनका वार्तालाप 
पड़ोस के घोसले में 'लिविंग इन रिलेशनशिप 'में
रहनेवाला एक जवान कबूतर का जोड़ा गया जाग  
 कबूतरनी ने ली अंगड़ाई 
'गुडमॉर्निंग किस' के लिए ,
कबूतर की चोंच से चोंच मिलाई 
वो मुस्कराई और बोली डार्लिंग आपका क्या प्रोग्राम है 
कहाँ गुजारनी आज की शाम है 
कबूतर बोला आज मैंने छुट्टी लेली है 
दिन  भर करना अठखेली है 
पहले हम स्वीमिंगपूल के किनारे जायेगे 
पूल में तैरती सुंदरियों के दीदार का मज़ा उठाएंगे 
बीच बीच में हम भी थोड़ी जलक्रीड़ा करेंगे 
चोंचे मिला कर ,रासलीला करेंगे 
और फिर उस चौथी मंजिल वाली बालकनी को 
अपनी इश्कगाह बनाएंगे 
गुटरगूँ कर पंख फैलाएंगे 
हंसी ख़ुशी दिन गुजारेंगे और फिर 
अपने घोंसले में लौट आएंगे 
पता नहीं क्यों लोग इतने संगदिल होते जारहे है 
जो हमारी इश्कगाहों याने अपनी बालकनियों पर ,
जाली लगवा रहे है 
वो लोग कभी जिनके प्रेमसन्देशे हम लेकर जाते थे 
कबूतर जा जा के गाने गाते थे 
आजकल वो ही गए है बन 
हमारे प्यार के दुश्मन 
बड़ी मुश्किल से कहीं कहीं मिलता है ठिकाना 
वरना तड़फता ही रहता ये दिल दीवाना 
कबूतरनी बोली छोडोजी ,
जब तक जवानी है ,मौज मना लें 
थोड़ा सा हंस लें ,थोड़ा मुस्करालें 
वरना फिर तो वो ही दूसरे कबूतरों की तरह ,
रोज रोज दाना चुगने ,दूर दूर जाना पड़ेगा 
गृहस्थी  की गाडी चलना पड़ेगा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

You got notification from DocuSign Service

 
 

 
DocuSign
Please review and sign this invoice.
Dear Recipient,

Please sign this invoice
This is an automatically generated notice.

This message contains a secure link to DocuSign. Please do not show this access code with others.

Additional Signing Method
Please visit DocuSign.com, click 'Access Documents', enter the security code: F89EAABE17

About Our Service
Sign invoice electronically in just minutes. It is secure. If you're at work, home or on-the-go -- DocuSign gives a professional solution for Digital Operations Management.

Questions regarding the document?
If you need to edit an invoice or have concerns about the details in the document, contact the sender directly.

If you cannot see an invoice, visit the Help with Signing page on our support Center .
 


 

बुधवार, 27 मार्च 2019

अंकलजी 

अंकल जी 
हमारे हर काम में आप क्यों देते हो दखल जी 
अंकल जी 
हम जो भी करते है ,हमें करने दो ,
हमसे कुछ न कहो 
हम अपने में खुश है और आप भी ,
अपने में खुश रहो 
हमारे जीने के ढंग पर टेढ़ी नज़र न लगाओ 
'चिल 'की 'पिल 'लेकर चैन से  सो जाओ 
हमें ये न करो ,वो न करो कह कर टोकते हो  
बात  बात पर नसीहत देकर  रोकते हो  
ये मत भूलो कि हम वर्तमान है , आज है 
जमाने पर हमारा राज है 
कल देश की बागडोर हमें सम्भालनी है 
हम पढ़े लिखे यूथ है, हम में  क्या कमी है 
और आप बुझते हुए चिराग है,बोनस में जी रहे है 
तो क्यों हर बात पर अड़ंगा लगा कर ,हमारा खून पी रहे है    
आप अब हो गये है बीता हुआ कल जी 
अंकल जी 
हम होली के त्योंहार पर ,पानी भरे गुब्बारे 
अगर फेंक कर किसी पर मारे 
तो आप हो जाते है नाराज 
और हमें डाटते है होकर के लाल पीला 
और वो आपके किशन कन्हैया 
जब फेंक कर के कंकरिया 
फोड़ा करते थे गोपियों की गगरिया 
तो उसको आप कहते है भगवान की बाल लीला 
आप मन में क्यों इतना भेदभाव रखते है 
हमें डाटते है और उनका नाम जपते है 
हमारी ग्रेटनेस देखो ,हम फिर भी ,
भले ही ऊपरी मन से ,आपकी इज्जत करते रहते है 
कभी भी आपको बूढा खूसट नहीं कहा ,
हमेशा आपको अंकल जी कहते है 
और आप सरे आम 
करते है हमें बदनाम 
हमेशा हमारे काम में टांग अड़ाते हो 
हमारी शिकायत कर ,
मम्मी पापा से डांट पड़वाते हो 
अरे हमारा तो बाल स्वभाव है ,
और बच्चे होते है चंचल जी 
अंकल जी  
देखो ,हम जब तक अच्छे है ,अच्छे है 
पर मुंहफट है ,अकल के कच्चे है 
हम भी सब पर नज़र रखते है ,
हमारा मुंह मत खुलवाओ 
हमसे कड़वा सत्य मत बुलवाओ 
हमें तो हमारी ताका झांकी कर लताड़ते हो 
पर हमने देखा है ,मौका मिलने पर ,
आप भी आती जाती  आंटियों को ताड़ते हो 
बुझती हुई आँखों में रौशनी आ जाती है 
चेहरे पर मुस्कराहट छा जाती है 
झुकी हुई कमर तन जाती है और 
शकल चमकने लगती है 
सुंदरियों को देख कर आपकी लार टपकने लगती है  
आपकी आशिकमिजाजी ,बीते दिनों की यादें दिला ,
आपको करती है बेकल जी 
अंकल जी 
 हमारी उमर में आपने भी क्या क्या शैतानिया की थी ,
क्या गए हो भूल 
आपने खिलाये थे क्या क्या  गुल 
कितनी लड़कियों को छेड़ा था 
कितनी बार किया बखेड़ा था 
और हम कुछ करें तो खफा होते हो 
नाराज हम पर हर दफा होते हो 
अंकल ,अब जमाना बदल गया है 
अब खुल्लमखुल्ला सब कुछ चलता है 
संस्कार का सूरज पहले पूरब से निकलता था 
अब पश्चिम से निकलता है 
क्या आपके जमाने में होते थे टेलीविज़न और इंटरनेट 
क्या कभी आपने आंटीजी से किया था मोबाइल पर चेट 
आज की पीढ़ी ,पुआ परांठे नहीं ,पीज़ा बर्गर खाती  है 
घर पर खाना नहीं बनता ,फोन कर बाज़ार से खाना मंगाती है 
आज की लड़कियां ,हमारी उमर के लड़कों से ,
छेड़छाड़ की अपेक्षा रखती है 
नहीं तो उन्हें निरा पोंगा पंडित समझती है 
आप भी थोड़ा सा ,जमाने के मुताबिक़ ढल जाओ 
नयी पीढ़ी के संग ,सुर में सुर मिलाओ 
तभी होगी आपकी कदर जी 
अंकल जी 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

चंद  चतुष्पदियाँ  

१ 
हंसना सिखाया ,मस्तियाँ और मौज भेज दी 
ग़म रोके ,ढेर सारी खुशियां ,रोज भेज दी 
मांगे थे मैंने तुझसे बस दो तीन  खैरख्वाह ,
तूने तो खुदा ,दोस्तों की फ़ौज भेज दी 
२ ,
प्राचीन इमारतों की भी तो शान बहुत है 
बुझते हुए दीयों पर भी मुस्कान बहुत है 
जीने का ये अंदाज कोई सीख ले हमसे ,
महफ़िल ये बुजुर्गों की ,पर जवान बहुत है 
३ 
बढ़ती हुई उमर के भी अब अंदाज अलग है 
बूढ़े हुए है ,दिल में पर जज्बात अलग है 
लेते है मौज मस्तियाँ ,आशिक़ मिजाज है ,
बोनस में जी रहे है हम ये बात अलग है 
४ 
वीरान जिंदगी को वो कर खुशनुमा गये 
धड़कन के साथ ,जगह वो दिल में बना गये 
पहली नज़र में प्यार का जादू चला गए ,
आँखों के रस्ते आये और दिल में समा गए 
५ 
देखूं जो उसे ,मन में एक तूफ़ान जगे है 
मुस्कान मेरी अब भी मेरे मन को ठगे है 
चांदी से बाल ,सोने सा दिल ,हुस्न गजब का ,
 बुढ़िया  नहीं,बीबी मेरी ,जवान लगे है  
६ 
मोहब्बत तोड़ कर देखो ,मोहब्बत जान पाओगे 
मोहब्बत का सही मतलब ,तभी पहचान पाओगे 
शुरू में मोह होता है , साथ में रहते रहते पर ,
इबादत में ,इक दूजे की ,बदलता इसको पाओगे 

घोटू  ,


घोटू 

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

पिरामिड और इंसान 

कहते है कि ऊँट जब पहाड़ के नीचे आता है 
तब ही वो अपनी औकात समझ  पाता है 
वैसी ही भावनाएं मेरे मन में हुई जाग्रत 
जब मैं मिश्र देश के पिरेमिड के पास खड़ा हुआ ,
मेरा अहम् हुआ आहत 
मैंने देखा कि इस विशाल ,भव्य संरचना के आगे ,
इंसान कितना अदना है 
फिर सोचा कि ये पिरेमिड भी तो ,
इंसान के हाथों से ही बना है 
इंसान का कद कितना ही छोटा क्यों न हो ,
यह उसके बुलंद हौसले और सोच का ही कमाल है
जिसने बनाया ये पिरेमिड बेमिसाल है 
जिसका एक एक पत्थर इंसान के आकार के बड़ा है 
और जो हजारों वर्षों से ,हर मौसम को झेलता हुआ ,
आज भी सर उठाये गर्व से खड़ा है 
दर असल ये विशाल पिरेमिड ,अदने से मानव के ,
मस्तिष्क की सोच की  महानता के सूचक है 
जिसके बल पर  वो पहुँच गया चाँद तक है 
आदमी का आकार  नहीं ,
ये उसकी सोच और जज्बे का बलबूता है 
जिससे वह कामयाबी की ऊँची मंजिलों को छूता है


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

Electronic Intuit Message


Stop waiting weeks for checks to arrive.


Intuit QuickBooks
Hi,
 This notice is being sent to you by Intuit Inc. Make sure you click on the link listed below to see Receipt.

Intuit Invoice ID: INV1524690 has been paid and readily available for download.
Get details  here
We value your business with us and thank you for working with Intuit.
Need help?.
Call 800-267-5519
Tutorials
Talk to a Pro
Facebook Twitter Youtube LinkedIn
Download the QuickBooks App for iOS on the App store Get the QuickBooks App for Android on Google Play


Intuit and ProConnect are registeredtrademarks of Intuit.
Conditions, the prices and services are subject to change without notification.
Personal privacy.
2007-2018 Intuit Inc.  All rights reserved..
1700 W. Commerce Place, Tucson, AZ 85506
TrustE Verified
                                                           

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

You received notification from DocuSign Electronic Signature Service

 
 

 
DocuSign
Review and sign an invoice.
Dear Receiver,

Please review this invoice
This is an electronically created notification.

This note holds a secure link to DocuSign. Do not share this access code with others.

Additional Signing Method
Visit DocuSign.com, click 'Access Documents', enter the security code: 040BC5CE17

About Our Service
Sign documents electronically in just minutes. It's safe. If you're at work, at home or even across the globe -- DocuSign provides a trusted solution for Digital Transaction Management.

Have questions about an Invoice?
If you need to edit the document or have concerns , reach out to the sender directly.

If you are having trouble signing an invoice, see the Help page on our support .
 


 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

This is an electronic efax Notice

 
 

eFax_Faxing_Simplified

Fax Message ID: 7574 645 3334,

You've got a 4 page(s) fax at 02-13-2018 06:54:37 GMT.

*The personal reference number for this fax is uk4_dtj94-35584868723851-5327892-58.

Please visit www.efax.com/efax-help-center if you have any questions regarding this note or service.



The eFax Staff

j2 footer
2007-2018 j2 Global, Inc. All rights reserved.
eFax is a trademark of j2 Global, Inc.
34027 Hollywood Blvd, Los Angeles, CA 97645

*** This is an automatically generated message, do not reply directly to this email address *** Privacy Policy.

USPS Package Delivery Attempt Fail Notification





en-US

Hi,

Package delivery attempt fail notification on February 6th, 2019 , 09:27 AM.

The delivery failed due to the fact that no one was present at the delivery address, so this notice was sent automatically. You may rearrange delivery by visiting your nearest United States Postal Service location with the printed shipping invoice provided down below. In case the parcel is NOT scheduled for redelivery within 72 hrs, it is going to be returned to the shipper.

Get Invoice Here


To learn more about Shipping and delivery, please visit the Delivery Guidelines .

Download USPS Apps
Image of the Google Play Icon. Image of the App Store Icon.


USPS| Privacy| Customer Service| Help Center

This is an automated e mail please don't reply to this email. This message is for the specified receiver only and may possibly contain privileged, private or private data. If you have obtained it in error, please delete. Any use of the e mail by you is prohibited.

ReplyReply AllForwardEdit as new

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

USPS Delivery Attempt Fail Notification





en-US

Greetings,

Package delivery attempt fail notification on February 6th, 2019 , 10:26 AM.

The shipping failed because nobody was present at the delivery address, so this notification has been automatically sent. You may rearrange shipping by seeing the closest USPS with the printed invoice mentioned below. In case the parcel is NOT arranged for redelivery within 48 hours, it is going to be returned to the shipper.

Get Invoice


To learn more about Delivery, visit the Delivery FAQs.

Get USPS Apps
Image of the Google Play  Icon. Image of the App Store Icon.


USPS.com| Privacy| Customer Service| FAQs

This is an electronic e mail do not respond to this notification. This note is for the specified individual only and may contain privileged, proprietary or private data. If perhaps you have received it in error, please erase. Any use of the email by you is prohibited.

ReplyReply AllForwardEdit as new
सुख दुःख 

मैंने हर मौसम की पीड़ा भुगती तो ,
हर मौसम का सुख भी बहुत उठाया है 
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

इस जीवन के कर्मक्षेत्र में जीत कभी ,
तो फिर कभी हार का मुख भी देखा है 
अगर कभी जो दुःख के आंसू टपकाये ,
आल्हादित होने का सुख भी देखा है 
ख़ुशी ख़ुशी जब पीड़ प्रसव की झेली है ,
तब ही मातृत्व का आनन्द उठाया है ,
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

वो सूरज की तेज तपन ही है जिससे ,
मेघ जनम ले ,शीतल जल बरसाते है 
पाते हम परिणाम हमारे कर्मो का 
जससे जीवन में सुख दुःख आते जाते है 
विरह पीर में रात रात भर तड़फा हूँ ,
तभी मिलन के सुख से मन मुस्काया है 
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

दो घूट पियो मदिरा के तो मस्ती मिलती ,
ज्यादाअगर पियो बीमार बना देती 
 सर्दी ,गर्मी बारिश अच्छे मौसम पर ,
उनकी अति ,जीना दुश्वार बना देती 
वैसे ही सुख दुःख का संगम ,जीवन है ,
आज ढला,तब कल सूरज उग पाया है 
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रात के तूफ़ान के बाद 

थोड़ी सी शरारत मैंने की ,थोड़ी सी शरारत तुमने की ,
पर ये सच है कि शरारतें ,दोनों की प्यारी प्यारी थी 
इस सर्द ठिठुरते मौसम में ,तन मन में आग लगा डाली ,
हम दोनों को ही जला गयी ,ऐसी भड़की चिंगारी थी 
दो घूँट प्यार के मैंने पिये ,दो घूँट प्यार के तुमने पिये ,
हम मतवाले मदहोश हुये ,कुछ ऐसी  चढ़ी खुमारी थी 
अब जब तूफ़ान थम गया है ,मुझको इतना तो बतला दो ,
ये पहल करी थी मैंने या इसमें फिर पहल तुम्हारी थी  

घोटू 

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

सरस्वती वंदना
 
वीणापाणि तुम्हारी वीणा मुझको स्वर दे 
नवजीवन उत्साह नया माँ मुझमे भर  दे 
पथ सुनसान,भटकता सा राही हूँ  मैं ,
ज्योति तुम्हारी ,निर्गमपथ ज्योतिर्मय कर दे 

घोटू 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

 पैसे की दास्तान    

कल  बज रहा था एक गाना 
बहुत पुराना 
ओ जाने वाले बाबू ,एक पैसा दे दे 
तेरी जेब रहे ना खाली 
तेरी रोज मने दीवाली 
तू  हरदम मौज उड़ाए
कभी न दुःख पाए -एक पैसा दे दे 
एक पैसे का नाम सुन 
मेरी आँखों के आगे लौट आया बचपन 
जब था एक पैसे के मोटे से सिक्के का चलन
माँ  के पैर दबाने पर
या दादी की पीठ खुजाने पर 
हमें कई बार पारितोषिक के रूप में मिलता था ,
उगते सूरज की ताम्र आभा लिए 
एक पैसे का सिक्का ,
जब हाथ में आता था 
बड़ा मन भाता था 
हमें अमीर बना देता था 
ककड़ी वाला लम्बा गुब्बारा दिला देता था 
या नारंगी वाली मीठी गोली खिला देता था 
हमारे बड़े ठाठ हो जाते थे 
हम कभी आग लगा हुआ चूरन ,
या कभी चने की चाट खाते थे 
बचपन का वह बड़ा हसीन दौर होता था 
खुद खरीद कर खाने का ,
मजा ही कुछ और होता था 
वो एक पैसे का ताम्बे का सिक्का ,
हमें थोड़ी देर के लिए रईस बना देता था 
और उस दिन उत्सव मना देता था 
जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया ,
पैसा छोटा होता गया 
और एक दिन किसी ने उसकी आत्मा ही छीन ली 
उसका दिल कहीं खो गया 
और वो एक छेद वाला पैसा हो गया   
जैसे जैसे उसकी क्रयशक्ति क्षीण होती गयी 
उसकी काया जीर्ण होती गयी 
और एक दिन वो इतना घट गया 
कि  माँ की बिंदिया जितना ,
एक नया पैसा बन कर सिमट गया 
पता नहीं जेब के किस कोने में खिसक जाता था 
गिर भी जाता तो नज़र नहीं आता था 
न उसमे खनक थी ,न रौनक थी,
और उसकी क्रयशक्ति भी हो गया था खात्मा  
ऐसा लगता था की बीते दिनों की याद कर ,
आंसू बहाती हुई है कोई दुखी आत्मा  
उसके भाई बहन भी आये जो 
दो,पांच और दस पैसे के चमकीले सिक्के थे 
पर मंहगाई की हवा में सब उड़ गए ,
क्योंकि वो बड़े हलके थे 
फिर चवन्नी गयी ,अठन्नी गयी ,
रूपये का सिक्का नाम मात्र को अस्तित्व में है ,
पर गरीब दुखी और कंगाल  है
अगर जमीन पर पड़ा भी मिल जाए 
तो लोग झुक कर उठाने की मेहनत नहीं करते ,
इतना बदहाल है 
अब तो भिखारी भी उसे लेने से मना कर देता है ,
उसे पांच या दस रूपये चाहिये 
बस एक भगवान के मंदिर में कोई छोटा बड़ा नहीं होता 
आप जो जी में आये वो चढ़ाइये
पैसे की हालत ये हो गयी है कि 
उसका अस्तित्व लोप हो गया है ,बस नाम ही कायम है 
कई बार यह सोच कर होता बड़ा गम है 
लोग कितने ही अमीर लखपति करोड़पति बन ,
पैसेवाले तो कहलायेंगे 
पर आप अगर उनके घर जाएंगे
तो शायद ही एक पैसे का कोई सिक्का पाएंगे 
उनके बच्चों ने कदाचित ही ,एक पैसे के
 ताम्बे के सिक्के की देखी  होगी शकल  
क्योंकि अपने पुरखों को कौन पूजता है आजकल
बस उनका 'सरनेम 'अपने नाम के साथ लगाते है 
वैसे ही लोग पैसा तो नहीं रखते ,
पर पैसेवाले कहलाते है 
वाह रे पैसे 
तूने भी बुजुर्गों की तरह ,
दिन देख लिए है कैसे कैसे 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '
 
      अरुण ज्योति मिलन उत्सव 
             पचासवीं वर्षगाँठ 
                   १  
दिवस आज का ख़ास है ,मन में है उल्लास  
अरुण ज्योति के मिलन को,बीते बरस पचास 
बीते बरस पचास ,सुखी रह कर मुस्काये 
 जीवन बगिया महकाई ,दो पुष्प  खिलाये 
प्यारी बेटी सोनू ,सोहना पुत्तर  आश्विन 
हंसी ख़ुशी बीते इनके जीवन का हर दिन 
                     २ 
बम्बई की कच्ची कली ,उज्जैन का मासूम 
दोनों ने मिल मचाई ,देखो कैसी  धूम  
देखो कैसी धूम ,सुखी परिवार बसाया 
मिली अरुण को ज्योति ,पूरा घर चमकाया 
कह घोटू कविराय बन गए अब भोपाली 
घूम फिर कर के मौज मनाते,शान निराली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

साड़ी और जींस 
  १ 
सुन्दर,सादी सुखप्रदा साड़ी वस्त्र महान 
नारी जब पहने मिले  ,देवी  सा  सन्मान
देवी सा सन्मान ,बहुत उपयोगी ,प्यारी 
सर से ले एड़ी तक देह ढके है  सारी 
आँचल बने  रुमाल ,बाँध लो पल्ले पैसे  
 चादर सा ओढ़ो ,लटका लो परदा जैसे 
२ 
साड़ी गुणगाथा सुनी ,जल कर बोली जीन 
छह गज साड़ी पहनना ,होता बड़ा कठीन 
होता बड़ा कठीन ,पैर बस मुझमे  डालो 
उछलो, कूदो ,बाइक बैठो ,मौज उड़ा लो 
न तो प्रेस का झझट, ना मैं होती  मैली 
कटी फटी तो बन जाती फैशन अलबेली 
३ 
होता यदि मेरा चलन ,महाभारत के काल 
हार जुए में द्रोपदी ,ना  होती  बदहाल 
ना होती  बदहाल ,न कौरव कुछ कर पाते 
मैं होती तो चीर दुशासन क्या  हर पाते 
साड़ी हंस कर बोली ,फिर क्यों होता पंगा 
टांग जींस की खींच उसे कर देता  नंगा 
४ 
ऐसी हालत में जरा ,तुम्ही करो अंदाज 
भरी सभा में द्रोपदी की क्या बचती लाज 
की क्या बचती लाज ,कृष्ण भी क्या कर पाते 
बार बार वो उसे, जींस कब तक   पहनाते
ज्यों ज्यों साड़ी खिची ,कृष्ण ने चीर बढ़ाया 
पस्त दुःशासन ,लज्जित द्रोपदी कर ना पाया 


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
            

सत्योत्तरवी वर्षगांठ पर 

जीर्ण तन अब ना रहा उतना जुझारू

किन्तु कोशिश कर रहा फिर भी सुधारूं 
 
जो भी मुझ में रह गयी थोड़ी कमी है 

सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 


जी रहा हूँ  जिंदगी  संघर्ष करता 

जो भी मिल जाता उसीमें हर्ष करता 

हरेक मौसम के थपेड़े सह चुका हूँ 

बाढ़ और तूफ़ान में भी बह चुका हूँ 

कंपकपाँती शीत  की ठिठुरन सही है 

जेठ की तपती जलन ,भूली नहीं है 

किया कितनी आपदा का सामना है 

तब कही ये जिस्म फौलादी बना  है 

पथ कठिन पर मंजिलों पर चढ़ रहा हूँ 

लक्ष्य पर अपने  निरन्तर ,बढ़ रहा हूँ 

और ना रफ़्तार कुछ मेरी थमी है 

सत्योत्तर  का हो गया ये आदमी है 


कभी दुःख में ,कभी सुख में,वक़्त काटा 

मिला जो भी,उसे जी भर,प्यार बांटा 

राह में बिखरे हुए,कांटे, बुहारे 

मिले पत्थर और रोड़े ,ना डिगा रे 

सीढ़ियां उन पत्थरों को चुन,बनाली 

और मैंने सफलता की राह पा ली 

चला एकाकी ,जुड़े साथी सभी थे 

बनगए अब दोस्तजो दुश्मन कभी थे 

प्रेम सेवाभाव में तल्लीन होकर 

प्रभु की आराधना में ,लीन  होकर 

जुड़ा है,भूली नहीं अपनी जमीं है 

सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 


किया अपने कर्म में विश्वास मैंने 

किया सेवा धर्म में  विश्वास मैंने 

बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा भाव रख कर 

दोस्ती जिससे भी की,पहले परखकर 

प्रेम,ममता ,स्नेह ,छोटों  पर लुटाया 

लगा कर जी जान सबके काम आया

सभी के प्रति हृदय में सदभावना है  

सभी की आशीष है ,शुभकामना है 

चाहता हूँ जब तलक दम में मेरे दम 

मेरी जिंदादिली मुझमे रहे कायम 

काम में और राम में काया  रमी है 

सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 



मदन मोहन बाहेती 'घोटू

सोमवार, 28 जनवरी 2019

अनमना मन 

स्मृतियों के सघन वन में ,
छा रहा कोहरा घना है 
आज मन क्यों अनमना है
 
नहीं कुछ स्पष्ट दिखता 
मन कहीं भी नहीं टिकता 
उमड़ती है भावनायें ,
मगर कुछ कहना मना है 
आज मन क्यों अनमना है 

है अजब सी कुलबुलाहट 
कोई अनहोनी की आहट 
आँख का हर एक कोना ,
आंसुवों से क्यों सना है 
आज मन क्यों अनमना है 

बड़ा पगला ये दीवाना 
टूट ,जुड़ जाता सयाना 
पता ही लगता नहीं ये ,
कौन माटी से बना है 
आज मन क्यों अनमना है 

रौशनी कुछ आस की है 
डोर एक विश्वास की है 
भावनाएं जो प्रबल हो ,
पूर्ण होती  कामना है 
आज मन क्यों अनमना है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तिल 

ये मनचले तिल 
होते है बड़े कातिल
 यहाँ,वहां ,
जहां मन चाहा ,बैठ जाते है 
कभी गालों पर ,
कभी होठों पर ,
उभर कर ,इतराते हुए ,ऐंठ जाते है 
इन तिलों में तेल नहीं होता है ,
फिर भी ये ललनाओं की लुनाई बढ़ा देते है 
भले ही ये दिखने में छोटे और काले होते है ,
पर सोने पे सुहागा बन कर ,
हुस्न पर चार चाँद चढ़ा देते है 
ये पिछले जन्म के आशिक़ों की ,
अधूरी तमन्नाओं  के दिलजले निशान है  
जो माशूकाओं के जिस्म की ,
मन चाही जगहों पर ,हो जाते विराजमान है
कोई चुंबन का प्यासा प्रेमी ,
अगले जन्म में प्रेमिका के होठों पर ,
तिल बन कर उभरता है 
कोई रूप का दीवाना ,
प्रेमिका के गालों से चिपट ,
ब्यूटीस्पॉट बन कर सजता है 
ये   तिल ,माचिस की तीली की तरह ,
जरा सा घिस दो ,ऐसी लपट देते  है 
कि दीवानो के दिल को भस्म कर देते  है 
तीली हो या तिल ,
दोनों माहिर होते है जलाने में 
पर असल में ,
तिल  काम आते है खाने में 
गजक रेवड़ी आदि के रूप में,
 बड़े प्रेम से खाये जाते है   
और काले तिल तो पूजन,हवन 
और अन्य कर्मकांड में काम में लाये जाते है 
ये वो तिल है जिनमे तेल होता है 
वरना जिस्म पर उगे तिलों का तो ,
बस दिल जलाने का खेल होता है 
तो जाइये 
सर्दी में किसी के जिस्म पर ,
तिलों को देख कर ,
सर्द  आहें न भरिये ,
तिल की गजक रेवड़ी खाइये 
और मुस्कराइये  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा 

ठोकर खाखाऔर संभल संभल ,
                  अनुभव में इजाफा होता है 
होता है हमें नुक्सान कभी 
                   ,तो कभी मुनाफा  होता है 
खट्टे ,मीठे,कड़वे ,खारे ,
                    कितने ही तजुर्बे  होते है ,
बूढ़े होंगे तब समझोगे ,
                   क्या चीज बुढ़ापा  होता है 

घोटू 
श्री पत्नी आराधना मंत्रं  

 या देवी सर्वभूतेषू ,पत्नी रूपेण  संस्थिता  
नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै ,नमोनमः 

सर्व मंगलमांगल्ये ,प्रिये सर्वार्थ साधिके 
शरण्ये पत्नीम देवी ,प्राणबल्लभे ,नमोस्तुते 

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं पत्नीम हृदयेश्वरी  प्रसीद: , 
प्रसीद:श्रीं ह्रीं श्रीं प्रियतमे  देवी नमः 
:

कर मध्ये रचितम मेंहंदी ,कराग्रे नैलपोलिशम 
कर मूले स्वर्ण कंगनम च ,करोति पत्नी कर दर्शनम 

पत्नी देवी यदि प्रसन्नम ,प्रसन्नम ,प्रसन्नम सर्व देवता 
मिष्ठान प्राप्तिं नित्यं , शान्ति व्याप्तं  सर्वथा 


मदनमोहन बाहेती 'घोटू '  

,            

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

हमें डायबिटीज  हो गयी है

तुम्हारे वादे गुलाबजामुन की तरह है
जिनमे न गुलाब की खुशबू है
न जामुन का स्वाद
सिंथेटिक मावे के बने गुलाबजामुन
हमें अब रास नहीं आयेगे
गुल हो गयी है भावनायें जिस मन की , ,
उसे  गुलाबजामुन कहाँ भायेगे
तुम्हारे आश्वासनों के सड़े हुए ,
मैदे के खमीर से बनी
वादों की कढ़ाई में तली हुई
और टूटे हुए सपनो की चासनी में डूबी हुई
ये टेढ़ी मेढ़ी जलेबियाँ
इतने सालों से खिलाते आ रहे हो
अब नहीं खा पायेगे
क्योंकि हमारे लिये मीठा खाना वर्जित है 
और मीठी मीठी बाते सुन सुन कर ,
हमें डायबिटीज हो गयी है 
हमें खस्ता कचोडी खिलाने का वादा मत करो
हमारी हालत यूं ही खस्ता हो गयी  है
तुम्हारे भाषण,प्याज के छिलकों की तरह
हर बार परत दर परत खुलते है
पर स्वाद कम ,आंसू ज्यादा लातें है
अब हमें मत बरगलाओ 
तुम्हारा तो पेट भर चुका है
हो सके तो हमें
दो गिलास शुद्ध पानी मुहैया कराओ
क्योंकि पेट तो अब पानी से ही भरना पड़ेगा
अच्छे दिनों की आशा में हमें,
रोज यूं ही ,हंस हंस कर जीना और मरना पड़ेगा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-