आत्मअवलोकन
मेरे मन में पूरे जीवन भर ये ही संताप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
मेरे दो दो ,काबिल बेटे ,होनहार और पढ़ेलिखे
मैंने लाख करी कोशिश पर दोनों घर पर नहीं टिके
शादी करके फुर्र हो गये ,नीड़ बसा अपना अपना
मैं तन्हा रह गया अकेला ,टूट गया मेरा सपना
भूले भटके याद न करते ,ऐसा मुझको भुला दिया
तोड़ दिया उनने मेरा दिल अंतर्मन से रुला दिया
मैं फिर भी वो सुखी रहें यह ,करता प्रभु से जाप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
मेरी एक नन्ही गुड़िया सी प्यारी प्यारी है बेटी
मन उलझाया एक विदेशी को अपना दिल ,दे बैठी
बड़ा चाव था धूमधाम से उसका ब्याह रचाऊँगा
मुझको छोड़ विदेश जा बसी ,कैसे मन समझाऊंगा
संस्कार जो मैंने डाले ,सारे यूं ही फिजूल गये
उड़ना सीख ,उड़ गए सारे ,बच्चे मुझको भूल गए
उनका यह व्यवहार बेगाना ,सहता मैं चुपचाप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
कई बार रह रह कर है एक हूक उठा करती मन में
कुछ ना कुछ तो कमी रह गयी ,मेरे लालन पोषण में
वर्ना आज बुढ़ापे में है ये एकाकीपन ना रहता
मेरे सारे अरमानो का ,किला इस तरह ना ढहता
फिर भी लेखा मान विधि का ,खुश हूँ मैं जैसा भी हूँ
सदा रहा उनका शुभचिंतक ,चाहे मैं कैसा भी हूँ
हरेक हाल में ,ख़ुशी ढूंढता ,मैं तो अपनेआप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मेरे मन में पूरे जीवन भर ये ही संताप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
मेरे दो दो ,काबिल बेटे ,होनहार और पढ़ेलिखे
मैंने लाख करी कोशिश पर दोनों घर पर नहीं टिके
शादी करके फुर्र हो गये ,नीड़ बसा अपना अपना
मैं तन्हा रह गया अकेला ,टूट गया मेरा सपना
भूले भटके याद न करते ,ऐसा मुझको भुला दिया
तोड़ दिया उनने मेरा दिल अंतर्मन से रुला दिया
मैं फिर भी वो सुखी रहें यह ,करता प्रभु से जाप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
मेरी एक नन्ही गुड़िया सी प्यारी प्यारी है बेटी
मन उलझाया एक विदेशी को अपना दिल ,दे बैठी
बड़ा चाव था धूमधाम से उसका ब्याह रचाऊँगा
मुझको छोड़ विदेश जा बसी ,कैसे मन समझाऊंगा
संस्कार जो मैंने डाले ,सारे यूं ही फिजूल गये
उड़ना सीख ,उड़ गए सारे ,बच्चे मुझको भूल गए
उनका यह व्यवहार बेगाना ,सहता मैं चुपचाप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
कई बार रह रह कर है एक हूक उठा करती मन में
कुछ ना कुछ तो कमी रह गयी ,मेरे लालन पोषण में
वर्ना आज बुढ़ापे में है ये एकाकीपन ना रहता
मेरे सारे अरमानो का ,किला इस तरह ना ढहता
फिर भी लेखा मान विधि का ,खुश हूँ मैं जैसा भी हूँ
सदा रहा उनका शुभचिंतक ,चाहे मैं कैसा भी हूँ
हरेक हाल में ,ख़ुशी ढूंढता ,मैं तो अपनेआप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।