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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

सत्योत्तरवी वर्षगांठ पर 

जीर्ण तन अब ना रहा उतना जुझारू

किन्तु कोशिश कर रहा फिर भी सुधारूं 
 
जो भी मुझ में रह गयी थोड़ी कमी है 

सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 


जी रहा हूँ  जिंदगी  संघर्ष करता 

जो भी मिल जाता उसीमें हर्ष करता 

हरेक मौसम के थपेड़े सह चुका हूँ 

बाढ़ और तूफ़ान में भी बह चुका हूँ 

कंपकपाँती शीत  की ठिठुरन सही है 

जेठ की तपती जलन ,भूली नहीं है 

किया कितनी आपदा का सामना है 

तब कही ये जिस्म फौलादी बना  है 

पथ कठिन पर मंजिलों पर चढ़ रहा हूँ 

लक्ष्य पर अपने  निरन्तर ,बढ़ रहा हूँ 

और ना रफ़्तार कुछ मेरी थमी है 

सत्योत्तर  का हो गया ये आदमी है 


कभी दुःख में ,कभी सुख में,वक़्त काटा 

मिला जो भी,उसे जी भर,प्यार बांटा 

राह में बिखरे हुए,कांटे, बुहारे 

मिले पत्थर और रोड़े ,ना डिगा रे 

सीढ़ियां उन पत्थरों को चुन,बनाली 

और मैंने सफलता की राह पा ली 

चला एकाकी ,जुड़े साथी सभी थे 

बनगए अब दोस्तजो दुश्मन कभी थे 

प्रेम सेवाभाव में तल्लीन होकर 

प्रभु की आराधना में ,लीन  होकर 

जुड़ा है,भूली नहीं अपनी जमीं है 

सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 


किया अपने कर्म में विश्वास मैंने 

किया सेवा धर्म में  विश्वास मैंने 

बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा भाव रख कर 

दोस्ती जिससे भी की,पहले परखकर 

प्रेम,ममता ,स्नेह ,छोटों  पर लुटाया 

लगा कर जी जान सबके काम आया

सभी के प्रति हृदय में सदभावना है  

सभी की आशीष है ,शुभकामना है 

चाहता हूँ जब तलक दम में मेरे दम 

मेरी जिंदादिली मुझमे रहे कायम 

काम में और राम में काया  रमी है 

सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 



मदन मोहन बाहेती 'घोटू

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