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सोमवार, 17 जून 2019

मस्ती का जीवन

ना व्हिस्की ,रम या कोई बियर पी रहा हूँ मैं
फिर  भी नशे की मस्ती में अब जी रहा हूँ मैं

थोड़ा सा नशा दोस्तों के साथ ने दिया
थोड़ा नशा बेफिक्री के हालात ने दिया
बीबी का बुढ़ापे में है कुछ  प्यार बढ़ गया  
इस वजह से भी थोड़ा नशा और चढ़ गया
मन मस्तमौला बन के लगा फिर से फुदकने
बुझता हुआ अलाव लगा फिरसे धधकने
अंकल हसीना कहती ,मगर बोलती तो है
कानो में मीठी बोली अमृत घोलती तो है
आँखों से उनके हुस्न का रस ,पी रहा हूँ मैं
फिर भी नशे में मस्ती के अब जी रहा हूँ मैं

ना उधो से लेना है कुछ ना माधो का देना
ना कोई सपन देखते ,धुंधले से ये नैना
कर याद बीते अच्छे बुरे वाकिये सारे
कुछ वक़्त गुजर जाता है यादों के सहारे
क्या क्या गमाया और क्या क्या कर लिया हासिल
किसने लुटाया प्यार किसने तोड़ दिया दिल
कर कर के याद बीते दिन ,सुख दुःख में जो काटे
दिल के तवे पे सिकते है यादों के परांठे
दिल पे जो लगे जख्म ,सारे सी रहा हूँ मैं
फिर भी नशे में मस्ती के अब जी रहा हूँ मैं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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