सुख दुःख
मैंने हर मौसम की पीड़ा भुगती तो ,
हर मौसम का सुख भी बहुत उठाया है
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है
इस जीवन के कर्मक्षेत्र में जीत कभी ,
तो फिर कभी हार का मुख भी देखा है
अगर कभी जो दुःख के आंसू टपकाये ,
आल्हादित होने का सुख भी देखा है
ख़ुशी ख़ुशी जब पीड़ प्रसव की झेली है ,
तब ही मातृत्व का आनन्द उठाया है ,
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है
वो सूरज की तेज तपन ही है जिससे ,
मेघ जनम ले ,शीतल जल बरसाते है
पाते हम परिणाम हमारे कर्मो का
जससे जीवन में सुख दुःख आते जाते है
विरह पीर में रात रात भर तड़फा हूँ ,
तभी मिलन के सुख से मन मुस्काया है
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है
दो घूट पियो मदिरा के तो मस्ती मिलती ,
ज्यादाअगर पियो बीमार बना देती
सर्दी ,गर्मी बारिश अच्छे मौसम पर ,
उनकी अति ,जीना दुश्वार बना देती
वैसे ही सुख दुःख का संगम ,जीवन है ,
आज ढला,तब कल सूरज उग पाया है
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।