बुढ़ापा आने लगा है
थे कभी जो बाल काले
सजा करते थे निराले
उम्र के संग हाल उनका ,ज़रा छितराने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
हौंसले थे बुलंदी पर ,पस्त अब होने लगे है
शारीरिक कमजोरियों से ग्रस्त हम होने लगे है
काम मेहनतवाला कोई,अब नहीं हो पाता हमसे
फूलने लगती है सांसे ,ज़रा से भी परिश्रम से
और उस पर नौकरी से भी रिटायर कर दिया है
हो गए है हम निकम्मे ,भाव मन में भर दिया है
नहीं वो मौसम रहा अब
थी नसों में बिजलियाँ जब
जवानी के नये नुस्खे ,मन ये आजमाने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
हमें आता याद रह रह ,जवानी का बावरापन
सुनहरी रातें रंगीली ,प्यार का उतावलापन
और अब हालात ये है ,इस तरह पड़ रहा जीना
प्यार की जब बात चलती छूटने लगता पसीना
मगर ये दिल लालची है ,नहीं बिलकुल मानता है
उम्र की अपनी हक़ीक़त ,भले ही पहचानता है
आज तन और मन शिथिल है
समस्याये अब जटिल है
था खिला जो जवानी का कमल कुम्हलाने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
आदतें बिगड़ी हुई जो नहीं पीछा छोड़ पाती
दिखे अब भी जब जवानी ,उधर नज़रें दौड़ जाती
कई घोड़े कल्पना के ,दौड़ते है मन के अंदर
गुलाटी ना भूल पाता ,कितना ही बूढा हो बन्दर
क्षीण सी होने लगी है जवानी की वो धरोहर
बुढ़ापे के चिन्ह सारे ,लगे होने दृष्टीगोचर
याद कर आल्हाद के दिन
वो मधुर उन्माद के दिन
उम्र का अवसाद मुझ पर ,अब कहर ढाने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
थे कभी जो बाल काले
सजा करते थे निराले
उम्र के संग हाल उनका ,ज़रा छितराने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
हौंसले थे बुलंदी पर ,पस्त अब होने लगे है
शारीरिक कमजोरियों से ग्रस्त हम होने लगे है
काम मेहनतवाला कोई,अब नहीं हो पाता हमसे
फूलने लगती है सांसे ,ज़रा से भी परिश्रम से
और उस पर नौकरी से भी रिटायर कर दिया है
हो गए है हम निकम्मे ,भाव मन में भर दिया है
नहीं वो मौसम रहा अब
थी नसों में बिजलियाँ जब
जवानी के नये नुस्खे ,मन ये आजमाने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
हमें आता याद रह रह ,जवानी का बावरापन
सुनहरी रातें रंगीली ,प्यार का उतावलापन
और अब हालात ये है ,इस तरह पड़ रहा जीना
प्यार की जब बात चलती छूटने लगता पसीना
मगर ये दिल लालची है ,नहीं बिलकुल मानता है
उम्र की अपनी हक़ीक़त ,भले ही पहचानता है
आज तन और मन शिथिल है
समस्याये अब जटिल है
था खिला जो जवानी का कमल कुम्हलाने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
आदतें बिगड़ी हुई जो नहीं पीछा छोड़ पाती
दिखे अब भी जब जवानी ,उधर नज़रें दौड़ जाती
कई घोड़े कल्पना के ,दौड़ते है मन के अंदर
गुलाटी ना भूल पाता ,कितना ही बूढा हो बन्दर
क्षीण सी होने लगी है जवानी की वो धरोहर
बुढ़ापे के चिन्ह सारे ,लगे होने दृष्टीगोचर
याद कर आल्हाद के दिन
वो मधुर उन्माद के दिन
उम्र का अवसाद मुझ पर ,अब कहर ढाने लगा है
बुढ़ापा आने लगा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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