अनमना मन
स्मृतियों के सघन वन में ,
छा रहा कोहरा घना है
आज मन क्यों अनमना है
नहीं कुछ स्पष्ट दिखता
मन कहीं भी नहीं टिकता
उमड़ती है भावनायें ,
मगर कुछ कहना मना है
आज मन क्यों अनमना है
है अजब सी कुलबुलाहट
कोई अनहोनी की आहट
आँख का हर एक कोना ,
आंसुवों से क्यों सना है
आज मन क्यों अनमना है
बड़ा पगला ये दीवाना
टूट ,जुड़ जाता सयाना
पता ही लगता नहीं ये ,
कौन माटी से बना है
आज मन क्यों अनमना है
रौशनी कुछ आस की है
डोर एक विश्वास की है
भावनाएं जो प्रबल हो ,
पूर्ण होती कामना है
आज मन क्यों अनमना है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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