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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

आम्ही तुम्हाला शांतीची इच्छा

हॅलो त्वरित संदेश

आम्ही तुम्हाला शांतीची इच्छा

आपली गोपनीयता मध्ये माझ्या शिरण्याचा क्षमा, माझे नाव सौ rokia सध्या अस्तित्वात नसलेला एक न उडणारा पक्षी मलेशियन्स आहे पण अबिजान, आयव्हरी कोस्ट राजधानी राहू,

मी माझ्या संपत्ती एक भाग दान करण्याचा निर्णय घेतला आहे जो संपणारा विधवा आहे
हे पैसे वापरणार कोण विश्वसनीय व्यक्ती, तो आयव्हरी कोस्ट येथे एका बँकेत जमा की $ 2.8 दशलक्ष डॉलर्स. मी जगू शकत नाही तेव्हा अधिक पैसे मिळण्यासाठी मुले नाही कारण आपण आपल्या प्रयत्न या निधी 20% घ्या आणि मुले अनाथ इतर सामायिक होईल, अनाथ आणि मानवी हक्कांच्या काम समाजात कमी भाग्यवान आहेत ज्यांनी मदत आपण माझ्या ऑफर स्वीकारण्यास तयार असाल आणि या निधीचा उपयोग तर, कमी भाग्यवान आणि विधवा आहेत ज्यांनी मला मिळवा सांगतो नक्की म्हणून

आपला डेटा ताबडतोब मला परत करा.

एक ग्रीटिंग,

सौ rokia सध्या अस्तित्वात नसलेला एक न उडणारा पक्षी

शनिवार, 31 जनवरी 2015

रंग-ए-जिंदगानी: कविता- आज़ादी अभी अधूरी है

रंग-ए-जिंदगानी: कविता- आज़ादी अभी अधूरी है: गड़तंत्र दिवस हर साल मनाने मज़बूरी हैं। रात अभी अँधेरी है, आज़ादी अभी अधूरी है। सवाल दो वक़्त की रोटी का जबाव जलेबी है। दिन-रा...

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

शादी-चार चित्र

              शादी-चार चित्र
                        १
एक खाली होता हुआ घोसला ,
एक चुसा हुआ आम
एक मधु विहीन छत्ता
फिर भी मुस्कान ओढ़े हुए ,
एक निरीह इंसान
दुल्हन का बाप
                   २
वर का पिता
गर्व की हवा से भरा गुब्बारा
रस्मो के नाम पर ,अधिकारिक रूप से,
 भीख मांगता हुआ ,दंभ का मारा
एक ऐसा प्राणी ,
जिसका पेट बहुत भर चुका है पर
फिर  भी कुछ और खाने को मिल जाए,
इसी जुगाड़ में तत्पर
सपनो में डूबा हुआ इंसान
मन में दादा बनने का लिए अरमान
                       ३
बेंड बाजे के साथ ,
मस्ती में नाचते हुए ,उन्मादी
व्यंजनों से भरी प्लेटों को ,
कचरे में फेंकते हुए बाराती
                      ४
दहेज़ के नाम  पर,
अपने बेटे का सौदा कर
अच्छी खासी लूट खसोट के बाद
खुश था  दूल्हे का बाप
लड़कीवालों ने अपने दामाद को ,
दहेज़ में दी है एक बड़ी कार
और बहू के नाम ,एक अच्छा फ्लेट दिया है ,
शायद वो अनजान थे कि उन्होंने ने,
इनके परिवार में,
विभाजन का बीज बो दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

सोमवार, 26 जनवरी 2015

ये औरतें कैसी होती है ?

          ये औरतें कैसी होती है ?

यूं तो सुबहो शाम ,
अपने पति से झगड़ती रहती है
पर पति कुछ दिनों भी ,
किसी काम से बाहर जाते है ,
तो उनके बिना ,
वो समय नहीं काट पाती ,बोअर होती है
ये औरतें कैसी होती है ?
सुबह पति से कहती है ,
घर में कपडे हो गए बहुत है
उन्हें रखने के लिए ,
एक नयी अलमारी की जरुरत है
और शाम को जब पार्टी में,
जाने को तैयार होने लगती है
तो क्या पहनू,मेरे पास तो कपडे ही नहीं है,
ये शिकायत करती है
सभी की ये आदत,एक जैसी होती है
ये औरतें भी कैसी होती है ?
यूं तो पतिजी की 'डाइबिटीज'पर
पूरा कंट्रोल दिखाती  है
पर जब गाजर का हलवा बनाती है ,
तो बड़े चम्मच से पति को चखाती है
मीठी मीठी बातों की चाशनी से ,
पति के दिल को भिगोती है
ये औरते कैसी होती है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यू टर्न

               यू टर्न

हुआ करता था कुछ ऐसा ,हमारी नींद का आलम,
      ख्वाब भी पास आने पर ,जरा सा हिचकिचाते थे
यूं ही बस बैठे बैठे ही ,झपकियाँ हमको आती थी,
       कभी हम आँख मलते थे,कभी गर्दन झुलाते थे
खराटोँ  की ही धुन से नींद का आगाज़ होता था,
      और अंजाम ये था ,पास वाला सो न पाता था,
पड़े रहते थे बेसुध ,नहीं कुछ भी होश रहता था ,
     हमें रावण का भैया ,कह के ,घरवाले बुलाते थे
लड़ी है आँख तुमसे जबसे है आँखे नहीं लगती ,
    मुई उल्फत ने जबसे दिल में आ के डेरा डाला है
तुम्हारी याद आती ,ख्वाब आते ,नींद ना आती ,
        हमारी आदतों ने इस तरह 'यू टर्न'   मारा  है  

घोटू

चाय पर चर्चा

                    चाय पर चर्चा

मोदी जी ने ओबामा जी को भारत बुलाया
आत्मीयता दिखा कर ,अपना दोस्त बनाया
देश के हित  में ,अमेरिका से कई करार किये
चाय पर चर्चा कर ,आपसी सम्बन्ध सुधार लिये
ये चाय पर चर्चा का मुद्दा तो,
 अब लोगों को नज़र आया है
पर मैंने तो इसी चाय की चर्चा के सहारे ,
हंसी खुशी से अब तक अपना  जीवन बिताया है
हम मिया बीबी ,सुबह की चाय पर ,
दिनभर क्या करना है,इसकी चर्चा करते है
और शाम की चाय की चर्चा में,
दिन भर क्या क्या किया,
एक दूसरे को बतलाया करते है
इस चाय की चुस्की के साथ हमें बहुत कुछ मिला है
हमें एक दूजे से ,न कोई शिकवा है ,न  ग़िला है
इसी सामंजस्य के कारण हमारी केमेस्ट्री ठीक है ,
और हम मिया बीबी में अच्छी पटती है
चैन से नींद आती है और रात मज़े से कटती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 24 जनवरी 2015

केजरीवाल-४ विपरीत परिस्तिथियाँ

    केजरीवाल-४
विपरीत परिस्तिथियाँ
           
अरविन्द  याने की कमल ,
दोनों समानार्थी ,
याने कि भाई,भाई
पर दिल्ली की राजनीति में,
दोनों की लड़ाई
सुबह सुबह ,
सूरज की किरणों के पड़ने से,
'अरविन्द'  खिलता है
पर प्रकृति  का यह नियम,
दिल्ली की राजनीतिमें ,
उल्टा ही  दिखता है
यहाँ पर ,दो किरणे ,
एक किरण वालिया और
एक किरण बेदी  ,
जब से मैदान में उतरी है ,
अरविंद थोड़ा घबराने लगा है
सर पर टोपी और गले में मफलर बाँध,
खुद को किरणों से बचाने लगा है
थोड़ा   कुम्हलाने लगा है
कमल जब तक कीचड़ में है ,
 झुग्गी झोंपड़ियों में है ,
अपनी सुन्दर छवि से ,
सबको लुभाता है
पर कमल ,लक्ष्मीजी का प्रिय है,
 उस पर लक्ष्मीजी  विराजती है,
और उनकी पूजा में,
उन पर चढ़ाया जाता है
लक्ष्मी और कमल का भी ,
ऐसा ही नाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 19 जनवरी 2015

उचटी नींद

        उचटी नींद

जब नींद कभी उड़  जाती है
तो कितनी ही भूली बिसरी ,यादें आकर जुड़ जाती है
फिरने लगते है एक एक कर, मन की माला के मनके
तो सबसे पहले याद हमें ,आने लगते दिन बचपन के
गोबर माटी से पुता हुआ ,वह घर छोटा सा, गाँव का
गर्मी की दोपहरी में भी वो सुख पीपल की छाँव का 
वह बैलगाड़ियों पर चलना,वो रामू तैली की घानी
मंदिर की कुइया पर जाकर ,वो हंडों  में भरना पानी
करना इन्तजार आरती का,लेने  प्रसाद की एक चिटकी
रौबीली डाट पिताजी की ,माताजी की मीठी झिड़की
वो गिल्ली ,डंडे ,वो लट्टू,वो कंचे ,वो पतंग बाज़ी
भागू हलवाई की दूकान  की गरम जलेबी वो ताज़ी
निश्चिन्त और उन्मुक्त सुहाना ,प्यारा  बचपन मस्ती का
बस पलक झपकते बीत गया,जब आया बोझ गृहस्थी का
रह गया उलझ कर यह जीवन,फिर दुनिया के जंजालों में
कुछ दफ्तर में ,कुछ बच्चों में,कुछ घरवाली,घरवालों में
कुछ नमक तैल के चक्कर में ,कुछ दुःख ,पीड़ा ,बिमारी में
प्रतिस्पर्धा आगे  बढ़ने की ,कुछ झंझट ,जिम्मेदारी मे
पग पग पर नित संघर्ष किया ,तब जाकर कुछ उत्कर्ष हुआ
मन चाही मिली सफलता तो ,इस  जीवन में कुछ हर्ष हुआ
सुख तो आया ,उपभोग मगर ,कर पाऊं ,नहीं रही क्षमता
हो गया बदन था जीर्ण क्षीर्ण ,कठिनाई से लड़ता लड़ता
कुछ घेर लिया बिमारी ने ,आ गया बुढ़ापा कुछ ऐसा
कुछ बेगानी संतान हुई ,जब सर पर चढ़ ,बोला पैसा
कुछ यादें शूलों सी चुभती ,तो कुछ यादें सहलाती है
जब नींद कभी उड़ जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

पिताजी

       पिताजी

पिताजी ,
सख्त थे ,दांतों  तरह,
जिनके अनुशासन में बंध ,
हम जिव्हा की तरह ,
बोलते,हँसते, गाते,मुस्कराते रहे
चहचहाते रहे
और टॉफियों की तरह जिंदगी का
स्वाद उठाते रहे
वो,लक्ष्मणरेखा की तरह ,
हमें अपनी हदें पार करने को रोकते थे,
बार बार टोकते थे
और कई बार हम,
 उनकी सख्ती को,कोसते थे
 पर कभी भी ,जब सख्त से सख्त दांतों में,
दर्द और पीड़ा होती है,
तो वह दर्द कितना असहनीय होता है,
ये वो ही महसूस कर पाता  है ,
जिसके दांतों में दर्द होता है
मुझे  ,उनके चेहरे पर ,
वही पीड़ा दिखी थी
जब शादी के बाद ,
मेरी बहन बिदा हुई थी,
या थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद,
मैं और मेरे बच्चे ,
वापस अपनी अपनी नौकरी पर लौटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ से

          माँ  से
माँ !
तुमने नौ महीने तक ,
अपने तन में मेरा भार ढोया
प्रसव पीड़ा सही और 
मुझे दुनिया में लाने के,
सपनो को संजोया
मुझे भूख लगी तो,
मुझे छाती से लिपटा  दूध पिलाया    
मैं रोया तो ,
मुझे गोदी में ले दुलराया 
मुझे सूखे में सुला कर ,
खुद  गीले बिस्तर पर सोई
दर्द मुझे हुआ ,
और तुम रोई
शीत  की सिहरती रात में,
तुमने बन कम्बल ,
मुझे सम्बल दिया
बरसात के मौसम में,
अपने आँचल का  साया दे,
मुझे भीगने नहीं दिया
गर्मी की दोपहरी में ,
अपने आँचल का पंखा डुलाती रही
अपनी  छत्रछाया में ,
हमेशा मुझे परेशानियों से बचाती रही
माँ,जिस ममता,वात्सल्य से ,
तुमने मुझे पाला है
तुम्हारा  वो प्यार अद्भुत और निराला है
मैं इतना लाड प्यार और कहाँ से पाउँगा ?
क्या मैं कभी इस ऋण को चुका पाउँगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दुबे जी

                   दुबे जी

एक दुबे वो होते है जो होते तो थे चौबे पर,
     छब्बे बनने के चक्कर में ,रहे सिर्फ दुबे बन के
और दूसरे दुबे वो जो 'डूबे'रहते मस्ती में ,
      इंग्लिश  उच्चारण का चक्कर ,डूबे है दुबे बनके
'दुइ'का मतलब हिन्दी में 'दो','बे' होता दो गुजराती में,
     दुइ से जब 'बे'मिल जाता,दो दूनी चार 'दुबे बन के ,
घर में पत्नी से रहें दबे ,दाबे मन की पीड़ाओं को,
       है दबी हंसीं पर हंसा रहे ,सबको  दबंग 'दुबे बन के

घोटू

बुधवार, 14 जनवरी 2015

वाइब्रंट गुजरात

                   वाइब्रंट गुजरात

छोड़ कर यू पी की मथुरा ,गये गुजरात जब कान्हा,
      वहां पर द्वारका के धीश बन कर हुए  आभूषित
गए घनश्याम  बालक छोड़  घर,गुजरात ,यूपी से ,
     बन गए स्वामिनारायण ,हो गए विश्व   में पूजित
बडी वाइब्रंट ,उपजाऊ ,धरा गुजरात की है ये ,
       यहाँ हर बीज होता पल्ल्वित ,धन धान्य देता है
वहीँ की तो उपज है ये ,हमारे नरेंदर मोदी ,
        आज जो देश ही ना विश्व के  गणमान्य  नेता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

केजरीवाल -३

 केजरीवाल -३

तुम्हारे कान पर मफलर ,तुम्हारे हाथ में झाड़ू,
समझ में ये नहीं आता ,तुम्हारी शक्सियत क्या है
आदमी ,आम है सो आम है ,क्यों लिख्खा टोपी पर ,
समझ में ये नहीं आता  ,तुम्हारी कैफ़ीयत क्या है
तुम अपने साथ फोटो खिचाने का लेते हो पैसा ,
पता इससे ही लग जाता ,तुम्हारी ये नियत क्या है
आप के साथ में हम बैठ कर के खा सके खाना,
आदमी आम हम इतने ,हमारी हैसियत क्या है 
चुना था हमने पिछली बार भी पर टिक न पाये तुम ,
चुने जाने की अबकी बार फिरसे जरूरत क्या है
न अन्ना के ही रह पाये, न हो पाये  हमारे तुम ,
बोलते कुछ हो करते कुछ तुम्हारी असलियत क्या है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै केजरीवाल आया हूँ-२

    मै  केजरीवाल आया हूँ-२

सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मैं ऊंचे बोल लाया हूँ
बजाने ढोल लाया  हूँ
चिपक कुर्सी पे बैठूंगा,
मैं  'फेविकोल 'लाया हूँ
पांच वर्षों तक सत्ता का ,
ले मन में ख्याल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मैं पानी सस्ता कर दूंगा
मैं  बिजली सस्ती करदूंगा
छीन ली झाड़ू मोदी में ,
साफ़ हर बस्ती कर दूंगा
मैं रिश्वतखोर लोगों की ,
खींचने खाल आया हूँ
मैं  केजरीवाल आया हूँ
मोदीजी कहते है ना,
 खाऊंगा,खाने नहीं दूंगा ,
मगर मैं खाऊंगा और,
 खाने के पैसे वसूलूंगा
बीस हज्जार की थाली ,
में रोटी ,दाल लाया हूँ
मैं  केजरीवाल आया हूँ
कमाई करने का अपना ,
तरीका होगा कुछ ऐसा 
मेरे संग फोटो का पैसा
मेरे संग खाने का पैसा
मैं बनिया हूँ,कैसे भी बस,
कमाने माल आया हूँ
मैं  केजरीवाल आया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 13 जनवरी 2015

Good Day.

Greetings to you and your family, before I proceed I am very sorry to encroach into your privacy in this manner; please accept my apology. I am Mr. Badaru Amor, chartered chief auditor with BANK OF AFRICA of Burkina Faso Ouagadougou West Africa. I got your contact address from your country through online directory. You're impressive and managerial records made me to solicit for your partnership in these regards.
 
I would like to know if this proposal will be worth while for your acceptance. I have a Foreign Customer, Manfred Hoffman from Germany who was an Investor here, in Crude Oil Merchant and Federal Government Contractor, here in Burkina Faso he was a victim of Concord Air Line, flight AF4590 crashed in killing 113 people on 13 July 2000 near Paris France leaving a closing balance of Fifteen Million Five Hundred Thousand Dollars ($15.5 Million Dollars) In one of his Private US dollar Account that was been managed by me as his Account Officer in Bank Of Africa Burkina Faso.
 
Base on my security report, these funds can be claimed without any hitches as no one is aware of the funds and it's closing balance except me and the customer who is (Now Deceased) therefore, I can present you as the Next of Kin and we will work out the modalities for the claiming of the fund in accordance with the law. If you are interested and really sure of your trustworthy, accountability and confidentiality on this transaction without any disappointment, please contact me through my email for further details.
 
I expect your reply letter towards this. Our sharing ratio will be 50% for me and 40% for you, while 10% will be for the necessary expenses that might occur along the line during the transaction.
I expect your reply
Sincerely
Mr. Badaru Amor.

Good Day.

Greetings to you and your family, before I proceed I am very sorry to encroach into your privacy in this manner; please accept my apology. I am Mr. Badaru Amor, chartered chief auditor with BANK OF AFRICA of Burkina Faso Ouagadougou West Africa. I got your contact address from your country through online directory. You're impressive and managerial records made me to solicit for your partnership in these regards.
 
I would like to know if this proposal will be worth while for your acceptance. I have a Foreign Customer, Manfred Hoffman from Germany who was an Investor here, in Crude Oil Merchant and Federal Government Contractor, here in Burkina Faso he was a victim of Concord Air Line, flight AF4590 crashed in killing 113 people on 13 July 2000 near Paris France leaving a closing balance of Fifteen Million Five Hundred Thousand Dollars ($15.5 Million Dollars) In one of his Private US dollar Account that was been managed by me as his Account Officer in Bank Of Africa Burkina Faso.
 
Base on my security report, these funds can be claimed without any hitches as no one is aware of the funds and it's closing balance except me and the customer who is (Now Deceased) therefore, I can present you as the Next of Kin and we will work out the modalities for the claiming of the fund in accordance with the law. If you are interested and really sure of your trustworthy, accountability and confidentiality on this transaction without any disappointment, please contact me through my email for further details.
 
I expect your reply letter towards this. Our sharing ratio will be 50% for me and 40% for you, while 10% will be for the necessary expenses that might occur along the line during the transaction.
I expect your reply
Sincerely
Mr. Badaru Amor.

सोमवार, 12 जनवरी 2015

उठो - खड़े होओ - आगे बढ़ो....

हां, बिलकुल सही है
चोट लग जाने के बाद
सोच समझकर चलना,
दूध से जल जाने के बाद
छाछ भी फूंक - फूंक कर पीना...
लेकिन वो रास्ता ही छोड़ देना
जहां लगी हो चोट?
पीना ही छोड़ देना
दूध ही नहीं छाछ भी?
फिर कैसे जियोगे भला
सबकुछ छोड़ कर जिन्दगी?
चोट लगनी है तो 
लग जायेगी कहीं भी - कैसे भी,
जलना है तो जल जाओगे
कहीं भी - कभी भी - कैसे भी,
चाहे जितने रहो सतर्क
चाहे जितने रहो चौकन्ने...
तो क्या बहुत ज्यादा सोचना
क्या बहुत ज्यादा विचारना
क्या बहुत ज्यादा पछताना
क्या बहुत ज्यादा दुखी होना
क्या बहुत ज्यादा उदास होना...
बड़े से बड़े हादसों के बावजूद
जिन्दगी की रफ्तार
हो सकता है कि थोड़ी धीमी हो जाये
जिन्दगी खुद थोड़ी लड़खड़ा जाये
पर रुकती कभी नहीं,
क्योंकि अगर रुक गई तो फिर
जिन्दगी जिन्दगी नहीं रहती...
इसलिये उठो - 
खड़े होओ - आगे बढ़ो
एक सुनहरा कल बेताब है
तमाम खुशियां - तमाम सुकून
तमाम जश्न और तमाम मुस्कुराहटें,
तुम्हारे लिये साथ लिये...

- विशाल चर्चित

रविवार, 11 जनवरी 2015

शादीशुदा जिंदगी

   शादीशुदा जिंदगी

 बड़ी तीखी कुरमुरी सी
 स्वाद से लेकिन भरी सी
जिंदगी शादीशुदा की,
है पकोड़ी चरपरी सी
मज़ा लेकर सभी खाते ,
भले खाके करते सी सी
सभी के मन को सुहाती,
चाट है ये चटपटी सी
जलेबी सी है रसीली ,
भले टेढ़ी ,अटपटी सी
पोल कितनी भी भले हो,
मगर बजती बांसुरी सी
मुंह  जलाती सभी मिर्चे ,
लाल,काली या हरी सी
लगी मुंह से नहीं छूटे ,
सर्दियों में मूंगफली सी
कैसी भी हो,प्यार करती ,
बीबियाँ, लगती  परी सी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 10 जनवरी 2015

किसी के सामने भी जो
        नहीं झुकता अकडता है
उसे अपने ही जूतों के
           सामने झुकना पडता है

पडी कुछ इस तरह सर्दी
        बताये हाल हम कल का
रुइ से बादलों की रजाई मे
         सूर्य जा दुबका
हो गया सर्द था मौसम
           बढ गई इस कदर ठिठुरन
रजाई से न वो निकला
            रजाई से न निकले हम

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

ये उत्तर प्रदेश है

            ये उत्तर प्रदेश है

ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है
जन्मभूमि यह श्रीकृष्ण की ,यहीं पे जन्मे राम है
मथुरा ,वृन्दावन काशी है और अयोध्या धाम है
गंगा जमुना बहती रहती ,सरयू भी अविराम है
धर्म कर्म शिक्षा संस्कृती का ,यहीं हुआ उत्थान है
दिया बुद्ध ने ,सारनाथ मे,यहीं  ज्ञान  संदेश  है
   ये मेरा देशहै, उत्तर प्रदेश है
शस्यश्यामला है ये धरती ,सभी तरफ हरियाली है
है समृद्ध,  यहाँ के वासी, सुख,शांति, खुशहाली  है
खेत लहलहाते है फसलों से, फलों लदी हर डाली है
रहन सहन और खानपान में ,इसकी बात निराली है
प्रगति पथ पर बढ़ता जाता,बदल रहा परिवेश है
   ये मेरा देश है ,उत्तरप्रदेश  है
हस्तशिल्प उद्योग यहाँ पर ,गाँव गाँव में विकसित है
हर  बच्चा ,अब कंप्यूटर में ,शिक्षित और प्रशिक्षित है
सड़क ,रेल का जाल बिछा है ,वातावरण   सुरक्षित है
नए नए उद्योग यहाँ पर ,रोज हो रहे विकसित है
आमंत्रण, सरकार दे रही ,सुविधा कई  विशेष है
     ये मेरा देश है,उत्तर  प्रदेश है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

संक्रांति-मिलन पर्व

             संक्रांति-मिलन पर्व

मैं तिल छोटा, मेरे दिल में , तैल है प्यार का लेकिन
डली गुड की हो तुम मीठी, हमारा  मेल है मुमकिन
मिलें हम एक रस होकर,गज़क,तिलपपड़ी जाएँ बन
चिपक कर हर तरफ तुमसे ,रहूँ  बन रेवड़ी  हरदम
या दलहन सा दला जाकर ,कोई मैं  दाल बन जाऊं
रूपसी  चाँवलों  सी तुम, तुम्हारा संग  यदि  पाऊं
मिलेंगे जब भी हम और तुम ,पकेगी खिचड़ी प्यारी
जले जब आग लोढ़ी  की ,मिलन की होगी तैयारी
 सूर्य जब उत्तरायण हो,मिलेगा प्यार का उत्तर
उड़ेंगे हम पतंगों से  ,और चूम आएंगे अम्बर
मिलें तिलगुड या खिचड़ी से ,ह्रदय में शांति फिर होगी
 मिलन का पर्व तब होगा,नयी संक्रांति फिर होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

प्यार का अंदाज

          प्यार का अंदाज

हमारे प्यार करने पर ,गज़ब अंदाज है उनका,
       दिखाती तो झिझक है पर,मज़ा उनको भी आता है
कभी जब रूठ वो जाते,चाहते हम करें मिन्नत,
       वो मुस्काते है मन में जब,उन्हें जाया  मनाता  है
संवर कर और सज कर जब  ,पूछते,कैसे लगते है,
         समझते हम निमंत्रण है,रहा हमसे न जाता   है
उन्हें बाहों में भर कर के,हम उन्हें प्यार जब करते,
          खफा होते जब ,होठों से , लिपस्टिक  छूट जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुलहनामा -बुढ़ापे में

                   सुलहनामा -बुढ़ापे में

हमें मालूम है कि हम ,बड़े बदहाल,बेबस है,
 नहीं कुछ दम बचा हम में ,नहीं कुछ जोश बाकी है ,
मगर हमको मोहब्बत तो ,वही बेइन्तहां तुमसे ,
                     मिलन का ढूंढते रहते ,बहाना इस बुढ़ापे में    
बाँध कर पोटली में हम,है लाये प्यार के चांवल,
अगर दो मुट्ठी चख लोगे,इनायत होगी तुम्हारी,
बड़े अरमान लेकर के,तुम्हारे दर पे आया है ,
                      तुम्हारा चाहनेवाला ,सुदामा इस बुढ़ापे में
ज़माना आशिक़ी का वो ,है अब भी याद सब हमको,
तुम्हारे बिन नहीं हमको ,ज़रा भी चैन पड़ता था ,
तुम्हारे हम दीवाने थे,हमारी तुम दीवानी थी,
                  जवां इक बार हो फिर से ,वो अफ़साना बुढ़ापे में
भले हम हो गए बूढ़े,उमर  तुम्हारी क्या कम है ,
नहीं कुछ हमसे हो पाता ,नहीं कुछ कर सकोगी तुम ,
पकड़ कर हाथ ही दो पल,प्यार से साथ बैठेंगे ,
                   चलो करले ,मोहब्बत का ,सुलहनामा ,बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 5 जनवरी 2015

रेखा

                  रेखा
इधर उधर जो भटका करती ,रेखा वक्र हुआ करती है
परिधि में जो बंध  कर रहती ,रेखा चक्र हुआ करती है
कितने ही बिंदु मिलते है ,तब एक रेखा बन पाती है
अलग रूप में,अलग नाम से ,किन्तु पुकारी सब जाती है
 अ ,आ,इ ,ई ,ए ,बी ,सी ,डी ,सब अपनी अपनी रेखाएं 
रेखाएं आकार  अगर  लें ,हंसती, रोती   छवि  बनाये
संग रहती पर मर्यादित है,  रेल  पटरियों  सी  रेखाएं
भले कभी ना खुद मिल  पाती ,कितने बिछुड़ों को मिलवाए 
कितनी बड़ी कोई रेखा हो ,वो भी छोटी पड़  जाती है
उसके आगे ,उससे लम्बी ,जब रेखाएं  खिंच जाती है
मर्यादा की रेखाओं में , ही  रहना   शोभा  देता  है
लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन ,सीता हरण करा देता है
इन्सां के हाथों की रेखाओं में उसका भाग्य लिखा है
नारी मांग ,सिन्दूरी रेखा में उसका  सौभाग्य  लिखा है
चेहरे पर डर की रेखाएं ,तुमको जुर्म बता देती है
तन पर झुर्री की रेखाएं, बढ़ती उम्र   बता देती है
सबसे सीधी रेखा वाला ,रस्ता सबसे छोटा होता
सजा वक्र रेखाओं में जो ,नारी रूप अनोखा होता
जब  भी  पड़े गुलाबी डोरे  जैसी रेखाएं  आँखों  में
मादकमस्ती भाव मिलन का,तुमको नज़र आये आँखों में
कुछ रेखा 'भूमध्य 'और कुछ रेखा ' कर्क'  हुआ करती है
इधर उधर जो भटका करती ,रेखा  वक्र हुआ करती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  
 

सब्र की शिद्दत

                    सब्र की शिद्दत

हमें है याद बचपन में ,बड़े बेसब्रे होते थे,
                   नहीं जिद पूरी होती तो,बड़े बेचैन हो जाते
जवानी में भी बेसब्री ,हमारी कुछ नहीं कम थी,
                  बिना उनसे मिले पल भर ,अकेले थे न रह पाते
सब्र का इस बुढ़ापे में ,हमारे अब ये आलम है,
                  प्रतीक्षा भोर से करते ,रात तब ख्वाब है आते
नमूना सब्र करने का ,न होगा इससे कुछ बेहतर ,
                  नशा जो परसों करना है ,आज अंगूर हम खाते

घोटू     

शनिवार, 3 जनवरी 2015

हमें बस केक खानी है

        हमें बस केक खानी है

हमारी अपने बचपन से  ,यही आदत पुरानी है
बहाना कुछ भी लेकर के ,हमें खुशियां मनानी है
है सर्दी जो अगर ज्यादा ,गरम हलवा हमें भाता ,
अगर बारिश जो हो जाए,पकोड़ी हमको खानी है
कहीं म्यूजिक अगर बजता ,थिरकने पैर लगते है,
जनम दिन हो किसी का भी ,हमें बस केक खानी है 
निकलती जब भी बारातें ,बेंड की धुन पर हम नाचे,
हम अब्दुल्ला दीवाने है  ,भले शादी बेगानी  है 
कभी गम को गलत करने ,ख़ुशी का या जशन करने ,
बहाना कुछ भी लेकर के ,दारु, पीनी पिलानी  है
ख़ुशी हो चाहे,चाहे गम, रहे हँसते हमेशा हम ,
जिंदगी चार दिन की है ,खुशी  से ही बितानी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
        पुरानी  इमारत
न टूटे  जोड़  ईंटों  के, नहीं  उखड़ा  पलस्तर है
दरो दीवार इस घर की ,अभी तक सब सलामत है
नहीं  वीरानगी  इसमें ,बसावट  तेरी यादों की ,
लखोरी ईंटों  वाली ये ,बड़ी पुख्ता  इमारत है
पुरानी प्यार की बातें , खुशबूयें वो  जवानी की,
यहाँ पर हर तरफ बिखरी मोहब्बत ही मोहब्बत है
नज़ारे  कितने ही रंगीनियों के , इनने  देखे  है ,
छुपा कर राज़ सब रखना ,दीवारों की ये आदत है
भले दिखती पुरानी है ,चमक आ जाएगी इनमे ,
 ज़रा सा रंग  रोगन बस ,कराने की जरुरत  है
न तो ये खंडहर होगी ,न ही स्मारक बनेगी ये,
बनेगी 'हेरिटेज होटल',पुरानी शान शौकत है
हो गए हम भी है बूढ़े ,पुरानी इस इमारत से ,
साथ यादों के जी लेंगे ,हमें फुरसत ही फुरसत है
नहीं दो रूम वाले फ्लेट की इस संस्कृति में हम,
कभी हो पाएंगे फिट ,हमें तो बंगले की  आदत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

पैसा और पानी

           पैसा और पानी

                                              
नहीं हाथ में बिलकुल टिकता,निकल उँगलियों से बहता है
                                             पैसा पानी  सा रहता है
पानी तब ही टिक पाता है,रखो बर्फ सा इसे जमा कर
पैसा भी तब ही टिकता है,रखो बैंक में   इसे जमा कर
ज्यादा गर्मी पाकर पानी  ,बनता वाष्प और उड़ जाता
लोगों की जब जेब  गरम  हो, पैसा खूब  उड़ाया जाता
पानी जब बनता समुद्र  है ,तो खारापन   आ जाता है
अक्सर ,ज्यादा पैसे वालों में  घमंड सा छा जाता है
पानी सींच एक दाने को ,कई गुना कर ,फसल उगाता
लगता जब पैसा धंधे में ,तो वह दिन दिन बढ़ता जाता 
जैसा पात्र ,उसी के माफिक, पानी अपना रूप बदलता
रूप बदल जाता लोगों  का ,जब उनका सिक्का है चलता
पानी जब बन बहे पसीना ,मेहनत  कर पैसा  आता है
पैसे वालों के चेहरे पर ,अक्सर पानी  आ  जाता है 
 जैसे  जल होता है जीवन,पैसा भी होता है जीवन
 पानी कलकल कर बहता  है ,तो पैसा चलता है खनखन
 पैसा लक्ष्मी सा चंचल है  ,पानी भी चंचल  बहता है
                                         पैसा  पानी सा रहता  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

मैं हूँ पानी

              मैं हूँ पानी

मैं औरों की प्यास बुझाता ,पर मन में तृष्णा अनजानी
                                                        मैं  हूँ  पानी
मधुर मिलन की आस संजोये , मैं कल कल कर ,बहता जाता
पर्वत , जंगल और चट्टानों से ,टकरा   निज    राह      बनाता
तेज प्रवाह ,कभी मंथर गति ,कभी सहम   कर धीरे  धीरे
कभी बाढ़ बन  उमड़ा  करता ,कभी बंधा मर्यादा   तीरे
कभी कूप में रहता सिमटा ,लहराता बन कभी सरोवर
मुझमे खारापन आ जाता ,जब बन जाता ,बड़ा समंदर
उड़ता बादल के पंखों पर,आस संजोये ,मधुर मिलन की
और फिर बरस बरस जाता हूँ,रिमझिम बूंदों में सावन की
तुम जब मिलती ,बाँह  पसारे ,मेरा मन प्रमुदित हो जाता
तुम शीतल प्रतिक्रिया देती,तो मैं बर्फ  बना जम जाता
कभी बहुत ऊष्मा तुम्हारी ,मुझे उड़ाती ,वाष्प बना कर
और विरह पीड़ा तड़फ़ाती ,अश्रुजल सा ,मुझे बहा कर
मैं तुम्हारा पागल प्रेमी ,या फिर प्यार भरी   नादानी
                                                     मैं  हूँ  पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी की दोपहरी

              सर्दी की दोपहरी

बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
          आओ चल कर  छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें  हम
और मूँज की खटिया पर हम,बिछा पुरानी  सतरंजी ,
               बैठें पाँव पसार प्रेम से ,छील मूंगफली  खाएं हम
लगा मसाला मूली खायें कुछ  अमरुद  इलाहाबादी ,
          थोड़ी गज़क रेवड़ी खालें ,कुछ प्यारी पट्टी तिल की
 बहुत दिनों के बाद खुले मे ,तन्हाई में बैठेंगे ,
आज न शिकवे और शिकायत ,बात सिर्फ होगी दिल की
बड़ा सर्द मौसम है मेरे तन पर बहुत खराश बड़ी ,
           ज़रा पीठ पर मेरे मालिश करना,तैल लगा देना
बदले में मैं ,मटर तुम्हारे ,सब छिलवा दूंगा लेकिन,
   गरम चाय के साथ पकोड़े ,मुझको गरम खिला देना
बहुत खुशनुमा है ये मौसम ,खुशियां आज बरसने दो ,
         मधुर रूप की धूप तुम्हारी में खुशियां सरसाएँ हम
बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
       आओ चल कर छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू '  

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: नारी का सशक्तीकरण

रंग-ए-जिंदगानी: नारी का सशक्तीकरण: सुप्रीम कोर्ट ने शरई अदालतों की वैधता को भले ही नक़ार दिया हो,लेकिन एक दौर में इन अदालतों के फैसले पूरे देश में माने जाते थे।नाफ़रमानी ...

बीबी का मोटापा

         बीबी का मोटापा 
                     १
पत्नीजी पर ज़रा भी ,अगर मांस चढ़ जाय
तो पतिजी जब तब उसे,मोटी  कहे,चिढ़ाय
मोटी कहे चिढ़ाय ,दोष पत्नी का क्या है
शादी के ही बाद इस तरह बदन भरा है
बदन छरहरा था ,फूला पति के घर आकर
मोटा पति ने किया ,प्यार का डोज़ पिलाकर
                       २
पतिजी से पत्नी कहे ,दिखला थोड़ा क्रोध
खुद को भी देखो पिया,निकल आयी है तोंद
निकल आयी है तोंद ,हो रहे तुम भी भारी
थोड़ी सी मेहनत से  फूले  सांस तुम्हारी
'घोटू'बदन सासजी का भी क्या कुछ कम है
अपनी माँ को मोटा बोलो ,यदि जो दम है

घोटू 

मै केजरीवाल आया हूँ

      मै  केजरीवाल आया हूँ

सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
नहीं धरने पे बैठूंगा,
छोड़ हड़ताल  आया हूँ
आदमी आम जो हूँ ,
आप का मैं चाहनेवाला ,
विदेशों में ,डिनर करवा,
बहुत सा माल लाया हूँ 
ढके ना कान मफलर से ,
सभी की अब सुनूंगा मैं ,
बताने आंकड़ों का ढेर सा,
मैं  जाल लाया हूँ
पड गयी थी 'जरी'काली,
जब एसिड टेस्ट से गुजरी ,
मगर अबके ,खरे सोने का ,
असली माल लाया हूँ
पिटारे में मेरे अबके ,
है वादे भी,इरादे भी,
पुराना राग ना अब मैं ,
सुरीली ताल लाया हूँ
समय के साथ मैंने भी ,
बदल डाला है अपने को,
विरोधी कहते मैं करने ,
यहाँ बवाल आया  हूँ
सुनाने हाल आया हूँ
मैं  केजरीवाल  आया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब तलक सांस रहती है

              जब तलक सांस रहती है

नहीं जिसको जो मिल पाता ,उसी की आस रहती है
ध्यान उस पर नहीं जाता ,जो हरदम पास रहती है
खेलना होता है  जब, फेंटे  जाते  ताश  के  पत्ते ,
वार्ना बस बंद डब्बे में, सिसकती  ताश रहती है
छोड़ कर घर का खाना ,होटलों में जो भटकते है ,
न जाने किस मसाले की, उन्हें तलाश   रहती है
छिपी घूंघट में जो रहती ,न उस पर ध्यान देतें है ,
ध्यान बस खींचती है वो,जो बन बिंदास रहती है
छुपा कर  रेत  में मुंह  सोचते,कोई न देखेगा ,
सुना है ये शुतुरमुर्गों की आदत ख़ास रहती है
जरूरी ये नहीं की हमेशा ,हर अश्क़ खारा हो,
खुशीके आंसूओं में भी,अजब मिठास रहती है
परेशां बेबसी में भी,लोग घुट घुट के जीते है,
फिरेंगे दिन हमारे भी ,ये मन में आस रहती है
ये काया पांच तत्वों की ,उन्ही में लीन  हो जाती,
आदमी ज़िंदा तब तक है ,जब तलक सांस रहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

औरतें नाज़ुक बड़ी है

                  औरतें नाज़ुक बड़ी है

 उँगलियों के इशारों से, अगर जाय हो सब कुछ,
             व्यर्थ में ही करें मेंहनत ,भला किसको ,क्या पडी है
भृकुटी ऊंची और नीची ,काम सब देती करा है,
             वरना घर भर को हिलाती,लगा आंसू की  झड़ी  है
जो हमेशा दुम हिलाये,भोंकना जिसको न आये,
            इस तरह का पति पाकर ,हौंसले से ये बढ़ी   है
पकाती इसलिए खाना,स्वाद लगता है सुहाना,
          पति पकाता,स्वाद में कुछ,आ ही जाती गड़बड़ी है 
भले ही गलती कहो तुम ,या कि इसको प्यार कह दो,
          चढ़ाया सर पर है हमने ,इसलिए ये सर चढ़ी है
अदाओं से लुभाती है ,प्यार करके पटाती है,
          खुद न झुकती ,झुकाती है,औरतें नाज़ुक बड़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मै शून्य हूँ

             मै शून्य हूँ

भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न अांकों ,
            करूँ दस गुणित मै ,तुम्हे ,संग तुम्हारे
चलोगे अगर साथ में हाथ लेकर ,
            बदल जाएंगे  जिंदगी के  नज़ारे
 घटाओगे मुझको या मुझ संग जुड़ोगे
            न तो तुम घटोगे ,नहीं तुम बढ़ोगे
मेरे संग गुणा का गुनाह तुम न करना ,
           नहीं तो कहीं के भी तुम ना रहोगे
चलो साथ मेरे ,मेरे हमसफ़र बन  ,
            बढ़ो आगे कंधे से कंधा  मिला कर,
बढ़ें दस गुने होंसले तब हमारे
            हम दुनिया को पूरी ,रखेंगे हिला कर
मुझे प्यार दे दो,ये उपहार दे दो ,
            नहीं बीच में कोई आये हमारे
भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न समझो ,
          करू दस गुणित मै ,तुम्हे,संग तुम्हारे
रहो आगे तुम, मैं रहूँ पीछे पीछे ,
          अणु से अनुगामिनी तुम बना दो
बंधे सूत्र से इस तरह से रहे हम,
          तुम चाँद ,मैं चांदनी तुम बनादो
हमेशा ही ऊंचे रहो दंड से तुम,
         उडू एक कोने में,बन मैं पताका
समझ करके मुझको,चन्दन का टीका ,
         मस्तक पर अपने ,लगालो,जरासा
इतराऊँगी मैं जो संग पाउंगी मैं ,
         मेरा मान भी होगा संग संग तुम्हारे
भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न आंको ,
          करूं दस गुणित मैं ,तुम्हे,संग तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

नए वर्ष का धन्यवादज्ञापन

         नए वर्ष का धन्यवादज्ञापन

पिछले बारह महीने मेरे ,कुछ इसी तरह से गुजर गए
कुछ नए दोस्त का साथ मिला,कुछ मीत पुराने बिछड़ गए
सुख दुःख आते जाते रहते ,मैं क्या बिसरूं ,क्या करू याद 
जिन जिनका भी सहयोग मिला ,सबको देता हूँ धन्यवाद
है धन्यवाद उनको जिनने ,जी भर कर मुझको दिया प्यार
मैं  आभारी  उनका  भी हूँ, पहनाये  जिनने  पुष्पहार
है धन्यवाद उस पत्थर का ,जिसकी ठोकर खा, मै संभला
पथ किया प्रदर्शन ,जीने की,सिखलाई  जिसने मुझे कला 
उन निंदक का भी धन्यवाद ,गलती मेरी बतलाते है
है धन्यवाद के पात्र ,प्रशंसक ,जो उत्साह बढ़ाते  है
अपनी सहचरी संगिनी का ,मैं सच्चे मन से आभारी
जिसने पग पग पर साथ दिया ,खुशियाँ बरसाई है सारी
जो देती आशीर्वाद सदा , मेरा उस माँ को धन्यवाद
मेरे जीवन में जो कुछ है ,ये माता का ही  है प्रसाद
सबके सहयोग ,शुभेच्छा से ,अच्छा बीता जो बरस गया
है यही अपेक्षा ,मिले प्यार,और अच्छा बीते बरस नया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

काल के कपाल पर भी लिख चुके हैं नाम आप....











काल के कपाल पर भी
लिख चुके हैं नाम आप,
इतिहास नहीं भूलेगा
कर चुके वो काम आप...
सत्ता में आते ही
विश्व को बता दिया था,
भारत महाशक्ति है इक
सबको ये जता दिया था...
आपने नकेल दी थी
पाक की भी नाक में,
लार जो टपका रहा था
कारगिल की ताक में...
परमाणु विस्फोट किया तो
अमरीका बौखला गया था,
उसका भी खूफिया तंत्र
इसमें गच्चा खा गया था...
ललकारा बड़े देशों से
लगाओ प्रतिबंध लगाओ,
कहा जीत पक्की है
देशवासियों जरूरत घटाओ...
विदेश हो - विपक्ष हो
आपके आगे नतमस्तक थे,
गजब का आत्मविश्वास था
सत्ता में आप जबतक थे...
मोदी जी का स्वागत है कि
एक बड़ा अच्छा काम किया,
सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न'
आज आपके नाम किया...
हम भी अपनी शुभकामनायें
आज आपके नाम करते हैं,
और आपको तथा आपकी सभी
उपलब्धियों को सलाम करते हैं...
ईश्वर सुख - शांति से भरा
आपको स्वस्थ  सुदीर्घ जीवन दे,
और हर्षोल्लास मनाने के सदा
ऐसे  ही नये - नये क्षण दे...

जन्मदिवस मंगलमय हो !!!

- विशाल चर्चित

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

सर्दी

             सर्दी
क्या बताऊँ आपको इस बार सर्दी यूं पडी
याद में उनकी हमारे लगी आंसूं की  झड़ी
ना तो हमने पोंछे आंसूं,गीला ना दामन किया ,
मारे सर्दी अश्क जम कर ,बने मोती की लड़ी

घोटू

बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

        बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

मेरे मन में चाह हमेशा दिखूं जवां मै
और जवानी ढूँढा करता ,यहाँ वहां  मै
कभी केश करता काले ,खिजाब लगाके
शक्तिवर्धिनी कभी दवा की गोली  खा के
कभी फेशियल करवाता सलून में जाकर
नए नए फैशन से खुद को रखूँ सजा कर
और कभी परफ्यूम लगाता हूँ मै  मादक
करता हूँ जवान दिखने की कोशिश भरसक
जिम जाता हूँ ,फेट हटाने ,रहने को फिट
जिससे मेरी तरफ लड़कियां हो आकर्षित
पर किस्मत की बेरहमी करती है बेकल
जब कन्याएं,महिलायें कहती है 'अंकल'
लाख छिपाओ,उम्र न छिपती ,तथ्य यही है
मै बूढा हो गया ,शाश्वत सत्य  यही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये बीबियाँ

                ये बीबियाँ

पति भले ही स्वयं को है सांड के जैसा समझता ,
      पत्नी आगे गऊ जैसी ,आती उसमे सादगी  है
 पति को किस तरह से वो डांट कर के  रखा करती ,
      आइये तुमको बताते ,उसकी थोड़ी  बानगी है
पायलट की पत्नी अपने पति से ये बोलती है,
       देखो ज्यादा मत उड़ो तुम,जमीं तुमको दिखा दूंगी
और पत्नी 'डेंटिस्ट' की ,कहती पति से चुप रहो तुम,
             वर्ना जितने दांत तुम्हारे,सभी मै हिला   दूंगी 
प्रोफ़ेसर की प्रिया अपने पति को यह पढ़ाती है,
            उमर  भर ना भूल पाओगे ,सबक वो सिखाउंगी
और बीबी एक्टर की ,रोब पति पर डालती है ,
            भूलोगे नाटक सभी जब एक्टिंग मै  दिखाउंगी
सी ए की पत्नी पति से कहती है कि माय डीयर,
           मेरे ही हिसाब से ,रहना तुम्हे है जिंदगी  भर  
वरना तुम्हारा सभी हिसाब ऐसा बिगाड़ूगीं ,
           कि सभी 'बेलेंस शीटें 'तुम्हारी हो जाए गड़बड़
पत्नी ने इंजीनियर की ,समझाया अपने पति को,
          टकराना मुझसे नहीं तुम,पेंच ढीले सब करूंगी
'इंटेरियर डिजाइनर 'की प्रियतमा  उससे ये बोली
         मुझसे जो पंगा लिया ,एक्सटीरियर बिगाड़ दूंगी
नृत्य निर्देशक कुशल है  हुआ करती हर एक बीबी,
         जो पति को उँगलियों के इशारों पर है  नचाती 
उड़ा करते है हवा में ,घर के बाहर जो पतिगण ,
         घर में अच्छे अच्छे पति की,भी हवा है खिसक जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
           

ना इधर के रहे ना उधर के रहे

       ना इधर के रहे ना उधर के रहे

उनने डाली नहीं ,घास हमको ज़रा ,
         चाह में जिनकी आहें हम भरते रहे
चाहते थे क़ि कैसे भी पट जाए वो,
          लाख कोशिश पटाने की करते रहे
उम्र यूं ही कटी ,वो मगर ना पटी ,
          घर की बीबी को 'निगलेक्ट 'करते रहे
ना घर के रहे हम,नहीं घाट  के ,
          ना इधर के रहे ,ना उधर के   रहे

घोटू  

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

सितम-सर्दियों का

           सितम-सर्दियों का
                पांच चित्र
                       १
हो गए हालात है कुछ इस तरह के धूप के ,
कभी दिखलाती है चेहरा ,कभी दिखलाती नहीं
बहाना ले सरदी का ज्यों  ,कामवाली  बाइयां ,
या तो आती देर से है या कि फिर आती नहीं
                            २
मुंह छिपाते फिर रहे हैं,आजकल सूरज मियां ,
सर्दियों  में देख लो, वो भी बेकाबू  हो  गए
आते भी है देर से और जाते है जल्दी चले ,
लगता है सरकारी दफ्तर के वो बाबू  हो गए
                      ३
एक तरफ आशिक़ है बिस्तर ,नहीं हमको छोड़ता ,
एक तरफ माशूक़ रजाई ,हम पर है छाई  हुई
आपको हम क्या बताएं आप खुद ही समझ लो ,
इस तरह शामत हमारी ,सरदी  में आयी हुई
                            ४
होता था दीदार जी भर ,जिस्म का जिनके सदा,
तरसते है देखने को भी हम सूरत आपकी
ढक  लिया है इस तरह से ,तुमने अपने आपको,
नज़र आती सिर्फ आँखे, नोक केवल नाक की
                           ५
तेल ,घी जमने लगे है ,दही पर जमता नहीं ,
मारे ठिठुरन,हाथ पाँव जम के ठन्डे पड़ गए
पीते पीते चाय का प्याला बरफ  सा हो गया ,
सर्दियों के सितम देखो ,किस कदर है बढ़ गए   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

सर्दी -मौसम खानपान का

   सर्दी -मौसम खानपान का

हम सर्दी का मज़ा उठायें ,मौसम बड़ा सुहाना
बैठ धूप में अच्छा लगता,हमें मूंगफली खाना
गरम चाय की चुस्की लेना ,सबके मन को भाता
अगर साथ हो  गरम पकोड़े ,मज़ा चौगुना  आता
 कभी कभी मक्का की रोटी ,और सरसों का साग
तिल की पट्टी ,गज़क रेवड़ी ,इनका नहीं जबाब
गरम गरम रस भरी जलेबी और गुलाबजामुन
देख टपकती लार और मन होता अफ़लातून
खानपान का मौसम होता है मौसम सर्दी का
सोहन या बादाम का हलवा ,खाओ देशी घी का
कितना भी गरिष्ठ हो खाना ,सर्दी में सब पचता
आलू टिक्की की खुशबू से कोई नहीं बच सकता 
गरम पराठे मेथी के या मूली या कि मटर के
सर्दी में ही मिल पातें है ,क्यों न खाएं जी भर के
जिन्हे  फ़िकर अपने फ़ीगर की खाया करे सलाद
हम तो खाए गोंद  के लड्डू ,ले ले कर के स्वाद
प्रचुर विटामिन 'डी 'पाओगे और  निखरेगा  रूप    
मैं खाऊ गाजर का हलवा और तुम खाओ धूप

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त काटना -बुढ़ापे में

    वक़्त काटना -बुढ़ापे में

किसी ने हमसे पूछा ऐसे
घोटूजी,आप भी तो अब हो गए हो,रिटायर  जैसे
अपना समय काटते  हो कैसे ?
हमने कहा,हम सुबह जल्दी उठ जाते है
घूमने जाते है
कुछ व्यायाम करते है और अपनी जर्जर होती हुई ,
शरीर की इमारत को, जल्दी टूटने से बचाते है
लौट कर फिर घर आना
बीबीजी के लिए चाय बनाना
फिर उन्हें उठाना ,
रोज यही दिनचर्या  चलती है
चाय हम इसलिए बनाते है क्योंकि,
हमारे हाथ की बनाई हुई चाय ,
हमारी बीबीजी को बहुत अच्छी लगती है
और सुबह सुबह ,इस प्यार भरे अंदाज से ,
होती है दिन की शुरुवात
जब चाय की चुस्कियां ,हम लेते है साथ साथ
फिर थोड़ा अखबार खंगालते है
रोज रोज चीर होती हुई मर्यादाओं का 
पतनशील होते हुए नेताओं का
धर्म के नाम पर लुटती हुई आस्थाओं का
भ्रष्ट आचरण करते हुए महात्माओं का
कच्चा चिट्ठा बांचते है
कभी दोपहरी में धूप में बैठ कर ,
पत्नी को मटर छिलाते रहते है
और बीच बीच में जब मटर के छोटे  छोटे ,
मीठे मीठे दाने निकलते है ,
खुद भी खाते है,उन्हें भी खिलाते रहते  है
कभी पास के ठेले पर जा गोलगप्पे खाते है
कभी फोन करके पीज़ा मंगाते है
बीच बीच में 'फेसबुक 'या 'व्हाट्सऐप'पर
कोई अच्छा जोक आता है तो पत्नी को सुनाते है
आपस में खुशियां बांटते है,
हँसते हँसाते है
कभी वो हमारे चेहरे की बढ़ती झुर्रियों को देख कर,
होती है परेशान
कभी हम ढूंढते है ,उसकी जादू भरी आँखों का,
खोया हुआ तिलिस्म और पुरानी शान
ये सच है आजकल हममे नहीं रही वो पुरानी कशिश
फिर भी बासी रोटियों पर,
कभी प्यार का अचार लगा कर
कभी दुलार का मुरब्बा फैला कर
नया स्वाद लाने की करते है कोशिश
न ऊधो का लेना है,न माधो का देना है
और भगवान की दया से पास में ,
काफी चना चबेना है
हम उसका और वो हमारा रखती है ख्याल
और भूल जाते है  जिंदगी के सब  बवाल
और जैसे जैसे उमर बढ़ रही है
चूँ चररमरर,चूँ चररमरर ,करती हुई ,
जिंदगी की भैंसागाड़ी ,मजे से चल रही है

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
   

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