किसी के सामने भी जो
नहीं झुकता अकडता है
उसे अपने ही जूतों के
सामने झुकना पडता है
अस्तित्त्व और हम
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अस्तित्त्व और हम जब सौंप दिया है स्वयं को अस्तित्त्व के हाथों में तब भय
कैसा ?जब चल पड़े हैं कदम उस पथ परउस तक जाता है जो तो संशय कैसा ?जब बो दिया
है बीज ...
6 घंटे पहले
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