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सोमवार, 5 जनवरी 2015

सब्र की शिद्दत

                    सब्र की शिद्दत

हमें है याद बचपन में ,बड़े बेसब्रे होते थे,
                   नहीं जिद पूरी होती तो,बड़े बेचैन हो जाते
जवानी में भी बेसब्री ,हमारी कुछ नहीं कम थी,
                  बिना उनसे मिले पल भर ,अकेले थे न रह पाते
सब्र का इस बुढ़ापे में ,हमारे अब ये आलम है,
                  प्रतीक्षा भोर से करते ,रात तब ख्वाब है आते
नमूना सब्र करने का ,न होगा इससे कुछ बेहतर ,
                  नशा जो परसों करना है ,आज अंगूर हम खाते

घोटू     

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