संक्रांति-मिलन पर्व
मैं तिल छोटा, मेरे दिल में , तैल है प्यार का लेकिन
डली गुड की हो तुम मीठी, हमारा मेल है मुमकिन
मिलें हम एक रस होकर,गज़क,तिलपपड़ी जाएँ बन
चिपक कर हर तरफ तुमसे ,रहूँ बन रेवड़ी हरदम
या दलहन सा दला जाकर ,कोई मैं दाल बन जाऊं
रूपसी चाँवलों सी तुम, तुम्हारा संग यदि पाऊं
मिलेंगे जब भी हम और तुम ,पकेगी खिचड़ी प्यारी
जले जब आग लोढ़ी की ,मिलन की होगी तैयारी
सूर्य जब उत्तरायण हो,मिलेगा प्यार का उत्तर
उड़ेंगे हम पतंगों से ,और चूम आएंगे अम्बर
मिलें तिलगुड या खिचड़ी से ,ह्रदय में शांति फिर होगी
मिलन का पर्व तब होगा,नयी संक्रांति फिर होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं तिल छोटा, मेरे दिल में , तैल है प्यार का लेकिन
डली गुड की हो तुम मीठी, हमारा मेल है मुमकिन
मिलें हम एक रस होकर,गज़क,तिलपपड़ी जाएँ बन
चिपक कर हर तरफ तुमसे ,रहूँ बन रेवड़ी हरदम
या दलहन सा दला जाकर ,कोई मैं दाल बन जाऊं
रूपसी चाँवलों सी तुम, तुम्हारा संग यदि पाऊं
मिलेंगे जब भी हम और तुम ,पकेगी खिचड़ी प्यारी
जले जब आग लोढ़ी की ,मिलन की होगी तैयारी
सूर्य जब उत्तरायण हो,मिलेगा प्यार का उत्तर
उड़ेंगे हम पतंगों से ,और चूम आएंगे अम्बर
मिलें तिलगुड या खिचड़ी से ,ह्रदय में शांति फिर होगी
मिलन का पर्व तब होगा,नयी संक्रांति फिर होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।