पडी कुछ इस तरह सर्दी
बताये हाल हम कल का
रुइ से बादलों की रजाई मे
सूर्य जा दुबका
हो गया सर्द था मौसम
बढ गई इस कदर ठिठुरन
रजाई से न वो निकला
रजाई से न निकले हम
अस्तित्त्व और हम
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अस्तित्त्व और हम जब सौंप दिया है स्वयं को अस्तित्त्व के हाथों में तब भय
कैसा ?जब चल पड़े हैं कदम उस पथ परउस तक जाता है जो तो संशय कैसा ?जब बो दिया
है बीज ...
6 घंटे पहले
सुन्दर प्रस्तुति
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