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सोमवार, 19 जनवरी 2015

पिताजी

       पिताजी

पिताजी ,
सख्त थे ,दांतों  तरह,
जिनके अनुशासन में बंध ,
हम जिव्हा की तरह ,
बोलते,हँसते, गाते,मुस्कराते रहे
चहचहाते रहे
और टॉफियों की तरह जिंदगी का
स्वाद उठाते रहे
वो,लक्ष्मणरेखा की तरह ,
हमें अपनी हदें पार करने को रोकते थे,
बार बार टोकते थे
और कई बार हम,
 उनकी सख्ती को,कोसते थे
 पर कभी भी ,जब सख्त से सख्त दांतों में,
दर्द और पीड़ा होती है,
तो वह दर्द कितना असहनीय होता है,
ये वो ही महसूस कर पाता  है ,
जिसके दांतों में दर्द होता है
मुझे  ,उनके चेहरे पर ,
वही पीड़ा दिखी थी
जब शादी के बाद ,
मेरी बहन बिदा हुई थी,
या थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद,
मैं और मेरे बच्चे ,
वापस अपनी अपनी नौकरी पर लौटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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