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गुरुवार, 8 मई 2014

चुनाव के बाद-ऐसा भी हो सकता है

चुनाव  के बाद-ऐसा भी हो सकता है

इस बार 'नमो' की आंधी ने, मौसम इस कदर बदल डाला
हो गयी जमानत कई जप्त ,कितनो ने बदल लिया  पाला
पड़ गए मुलायम और नरम,माया का हाथी गया बैठ
लालू की लालटेन का भी ,अब खत्म हो गया घासलेट
डिग्गीराजा ,फिर से दुल्हेराजा ,बनने में है  व्यस्त हुए
 छोटे मोटे दल,तोड़ फोड़ की राजनीती से पस्त  हुए
जयललिता भी लालायित थी ,पाने को कुर्सी दिल्ली की
जनता का मिला फैसला तो,अब चुप है भीगी बिल्ली सी
केजरीवाल है जरे जरे ,झाड़ू फिर गयी उम्मीदों पर
शेखी नितीश की इति हुई ,नम है ममता ,निज जिद्दों पर
चुप चुप बैठे है चिदंबरम ,बीजूजी,बिजना हिला रहे
और है पंवार ,पॉवर प्रेमी ,मोदी सुर में सुर मिला रहे
मनमोहनजी है मौन शांत ,क्या जरुरत है कुछ कहने की
पिछले दस सालों में आदत ,पड़  गयी उन्हें चुप रहने की
शहजादा ,ज्यादा ना बोले ,मेडमजी का दम निकल गया
है डरा वाडरा परिवार ,किस्मत का चक्कर बदल गया
सो नहीं सोनिया जी पाती,सिब्बल जी भी ,बलहीन  हुए
जबसे मोदी जी ,दिल्ली की ,कुर्सी पर है आसीन  हुए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रूप तुम्हारा

         रूप तुम्हारा

बड़ा  सुन्दर और सुहाना ,हसीं तेरा रूप है
गर्मियों की तू है बारिश,सर्दियों की धूप है
ठिठुरते मौसम में ,होठों से लगे तो ये लगे ,
चाय का है गर्म कप या टमाटर का सूप  है

घोटू

अंकल की पीड़ा

          अंकल की पीड़ा

कल तक हम नदिया जैसे थे,बहते कल कल
कलियों संग करते किलोल थे मस्त कलन्दर
कन्यायें   हमसे मिलने , रहती थी  बेकल
काल हुआ प्रतिकूल ,जवानी गयी ज़रा ढल
बहुत कलपता ,कुलबुल करता ,ह्रदय आजकल
कामनियां ,जब हमें बुलाती ,कह कर 'अंकल '

घोटू

भूगोल

संसद के गलियारों में एक चर्चा या अफवाह सुनने को मिली
एक वृद्ध राजनेता जो कि अपने से काफी काम उम्र की महिला
से विवाह कर रहे है ,जब पहली बार उससे मिले ,तो उस महिला ने
उन्हें 'अंकल'कह कर बुलाया था और इस पर उन्होंने जो उत्तर दिया था
उस से ही प्यार की शुरुवात हुई थी -  उंन्होने क्या कहा था ,वह निम्न
पंक्तियों में वर्णित है
'
'अब भी आवाज में मेरी ,बुलंदी  वो कि वो ही है ,
                     पुराना हो गया है पर,नहीं ये ढोल बदला है
वो ही फ़ुटबाल का मैदान है,वो ही खिलाड़ी है ,
                      नहीं तो ही 'बाल' बदली है ,और ना गोल बदला है
पुरानी चीज बनके 'एंटीक'हो जाती है मंहगी ,
                        हुआ  अनमोल हूँ मैं ,ना  ही मेरा मोल बदला है
मुझे कह कर के 'अंकल 'क्यों. कलेजे को जलाती हो,
                        मेरा इतिहास बदला है ,नही  भूगोल  बदला है

घोटू  

बुधवार, 7 मई 2014

गरमी और चुनाव

                    गरमी और चुनाव

पत्नी बोली ,गरम हो रहा है ये मौसम
चलो घूमने ,थोड़े दिन तक हिलस्टेशन
खर्चा पर जब ट्रेवल एजेंट ने बतलाया
सुन कर ऐ.सी. में भी हमें पसीना  आया
हमने पत्नी को समझाया ,सुनिए मेडम
गर्मी से चुनाव की गरम हुआ है मौसम
नेताओं ने रैली कर के ,भीड़ बुला के
आपस में गाली गलोच कर के चिल्ला के
एक दूसरे की पगड़ी को बहुत उछाला 
बहुत गरम है वातावरण ,बना ये डाला
इसीलिये तुम इस प्रचार को थमने तो दो
और नतीजा  ,इसका ज़रा निकलने तो दो
गरमी खा,गाली दे बजा रहे जो  डंडे
सब के सब ऐसे ही पड़  जाएंगे ठन्डे
ये ठन्डे  तो ठंडा हो जाएगा  मौसम 
हिलस्टेशन जा क्यों व्यर्थ करें खर्चा हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

डिग्गीराजा का बेंड बाजा

      डिग्गीराजा  का बेंड बाजा
                      १
प्रेमी पार्टी प्रवक्ता ,प्रिया टी वी एंकोर
करने में बकवास सब,दोनों ही सिरमौर
दोनों ही सिरमौर,मिले और प्यार हो गया
अमृत चखने  को बुड्ढा तैयार हो गया
डिग्गी राजा फिर से बन कर दूल्हे राजा
अब न डुगडुगी ,बल्कि बजाएं,बेंड और बाजा
                       २
मिलकर मेडम राय से ,किया किसी ने तर्क
तुम दोनों की  उमर  में ,तो है काफी फर्क
तो है काफी फर्क, अमृता  जी मुस्काई
बोली  जब  है प्यार ,उम्र ना पड़े दिखाई
अच्छी इनकम है,धन है,बुड्ढे में दम है
और मैं रानी कहलाउंगी ,ये क्या कम है
                       ३
डिग्गी दांत निपोर कर ,हुए प्रेम अनुरक्त
लिया किसी ने पूछ ये ,तुम राहुल के भक्त
तुम राहुल के भक्त ,कर रहे ब्याह दुबारा
और तुम्हारा 'बॉस' अभी तक बैठा  कंवारा
डिग्गी बोले,रहा इसलिये मैं शादी कर
धर्म भक्त का,करे बॉस को वो 'इंस्पायर'

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 6 मई 2014

दिग्गी राजा की राय

           दिग्गी राजा की राय

लोकसभा के टिकिट का  ,किया बहुत ही ट्राय
लेकिन हाईकमान ने ,सुनी न उनकी राय
सुनी न उनकी राय ,फेर में राजयसभा के
ऐसे  उलझे ,गिरे 'राय ',गोदी   में   जाके
तोड़ फोड़ की राजनीति से बाज न आये
तोडा उसका घर ,उसके संग नयन मिलाये
घोटू

कुछ क्षणिकाएँ....................... आज के राजनैतिक परिदृश्य पर


गुमनामी से बौराये
एक बूढ़े नेता ने किया 
विवाहित नवयौवना 
के हाथ से 
प्रेममय अमृतपान,
किया अपनी इस 
तथाकथित विजय का ऐलान
जनता और मीडिया, 
ने हाय तौबा मचाई 
समस्त विश्व में 
जमकर कु-ख्याति पाई
हुए अजर भी, और 
शायद अमर भी...

-------------------------

एक 'आम आदमी'
'खास आदमी' की तरह 
झाड़ू से नाप रहा है दूरी
दिल्ली से वाराणसी की
देश मोह में या
सत्ता मोह में
ये तो पता नहीं, पर
गाली - थप्पड़ खाते हुए
और मुस्कुराते हुए...

-------------------------

देश की करोड़ों 
जनता का हाथ
रहा है करीब
सरसठ सालों से साथ,
अब इनका है हाथ 
जनता के साथ,
जनता के मेहनत से
कमाये लाखों करोड़
खा जाने के लिए
पचा जाने के लिये...

-------------------------

कह तो रहे हैं कि
लायेंगे राम राज्य,
और ये खिलायेंगे 
खुशियों के कमल, पर- 
चुनाव मे खर्च हुए
कई हजार करोड़,
वसूली के लिये कहीं 
ये भी न दें
जनता को निचोड़...

-------------------------

क्या हुआ जो हम हैं
एक क्षेत्रीय दल,
सरकार हो किसी की
अपना है समर्थन,
क्योंकि संसद में 
अपने भी हैं
पच्चीस-तीस जन,
हम लूटेंगे - खायेंगे
या सरकार गिरायेंगे,
देश हित में
देश प्रेम के साथ...

- विशाल चर्चित

रविवार, 4 मई 2014

बदलाव की हवा

           बदलाव  की हवा

दो जगह में अब भी कायम ,वो कि वो ही दूरियां,
                मील के पत्थर सभी अपनी जगह तैनात है
पहुँचने का ,मंजिलों तक,समय लेकिन  घट गया,
               इस तरह से बढ़ गया ,रफ़्तार का उन्माद है
एक ज़माना था कभी हम,धीमी धीमी चाल से,
              चलते थे,विश्राम करते ,बरगदों की छाँव में
उन दिनों पथ भी नहीं थे आज जैसे रेशमी,
            पथरीली सारी सड़क थी ,चुभते पत्थर पाँव में
कभी पथ पर आम मिलते,कभी जामुन ,करोंदे,
             कितना उनमे स्वाद मिलता  ,तोड़ कर खाते हुए
पहुँचने का मंजिलों तक, मज़ा ही कुछ और था,
              हौले हौले कटता रस्ता  ,हँसते और गाते हुए
अब तो बैठो गाड़ी में और फुर्र से मंजिल मिले ,
               आज कल के सफर में ,अब ना रही वो बात है
दो जगह में अब भी कायम,वो की वो ही दूरियां,
               मील के पत्थरसभी,अपनी जगह ,तैनात है                  
पाट चौड़ा और निर्मल नीर से पूरित नदी,
                मस्तियों से कलकलाती ,बहा करती थी कभी
उसका शोषण इस कदर से किया है इंसान ने,
                 एक गंदा नाला  बन कर ,रह गयी वो बस अभी 
लहलहाते वन कटे ,शीतल हवाएँ रुक गयी,
                 पंछियों का थमा कलरव ,वाहनो का शोर है
चंद गमलों में सिमट कर ,रह गयी है हरितिमा ,
                  उग रहे कांक्रीट के जंगल , यहाँ  सब ओर है
 जल प्रदूषित ,वायु प्रदूषित ,प्रदूषित इंसान भी ,
                 ,प्रगति पथ पर,इस कदर से ,बिगड़ते हालात है
दो जगह में अब भी कायम ,वो की वो ही दूरियां,
              मील के पत्थर सभी अपनी जगह तैनात है
आदमी ये सोचता है ,पा लिया मैंने बहुत ,
                  किन्तु खो क्या क्या दिया ,इसका नहीं अहसास है
इस तरह ,भौतिक हमारी ,हो गयी है ,जिंदगी ,
                   प्रकृति का  सौंदर्य निरखें,समय किसके पास है
प्रातः उगते सूर्य की वो लालिमा,सुन्दर छटा,
                     रात अम्बर में सितारों की सजावट,चांदनी,
देखने की ये नज़ारे ,नहीं  फुर्सत किसीको ,
                     इस  कदर से मशीनी  अब हो गया है आदमी
भाईचारे में दरारें  ,टूटने  रिश्ते लगे,
                       डालरों के मोल बिकती ,भावना दिन रात है
दो जगह में अब भी कायम,वो की वो ही दूरियां,
                    मील के पत्थर सभी ,अपनी जगह तैनात है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 1 मई 2014

हम भी तो है

        हम भी तो है

अगर बसाना है जो कोई निगाहों में ,
                              हम भी तो है
साथ चाहिए,यदि जीवन की राहों में,
                             हम भी तो है
अगर जगह खाली तुम्हारी चाहों में,
                            हम भी तो है
क्या रख्खा है,यूं ही ठंडी आहों में ,
                            हम भी तो है
तकिये को तुमक्यों भरती  हो बाहों में ,
                             हम भी तो है
पलक बिछा कर बैठे तेरी राहों में,
                             हम भी तो है
जो दर्दे दिल करती दूर ,दवाओं में ,
                             हम भी तो है
भरने रंगत ,मौसम और फिजाओं में ,
                             हम भी तो है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हाल-बुढ़ापे का

        हाल-बुढ़ापे का

याद  है  वो  जवानी  के  वक़्त  थे
हम बड़े ही कड़क थे और सख्त थे
ताजगी थी  , भरा हममें  जोश था
बुलंदी पर थे , हमें कब  होश   था
रौब था और बड़ी तीखी धार थी
थी नहीं परवाह कुछ संसार की
जवां था तन,जेब में भी माल था
इस तरह से  बन्दा ये खुशहाल था
हुए बूढ़े अब हम ढीले पड़  गए
वृक्ष के सब पात पीले पड़  गए
ना रहा वो जोश ,ना सख्ती रही
अब तो केवल भजन और भक्ति रही
मारा  करते फाख्ता थे जब मियां   
गए वो दिन, बुढ़ापे  के  दरमियाँ
हो गया   ऐसा हमारा हाल  है
मन मचलता ,मगर तन कंगाल है

मदन मोहन बहती'घोटू'

मेरा नंबर कब आएगा

           मेरा नंबर कब आएगा

खुदा ने खुल्ले हाथों बख्शी तुझको हुस्न की दौलत ,
     बड़ा तक़दीर वाला ही, तुम्हारा  प्यार पायेगा
बड़ी लम्बी लगी लाइन तेरे आशिकों की है ,
      लगाए आस बैठा मै ,मेरा नंबर कब आएगा
घोटू

अफवाह

         अफवाह

गजब की खूबसूरत हो
समझदारी की मूरत हो
सुने हर बात और माने
पति को देवता   जाने
कभी भी जो खफा ना हो
कभी भी बेवफा ना हो
करे सब काम जो घर का
नहीं हो शौक ,जेवर  का
न हो फैशन की दीवानी
बने ना घर की महारानी
सास की बात माने जो
बनाये ना ,बहाने जो
जिसे 'ना'कहना ना आये
हमेशा खुश हो मुस्काये
काम करने की आदी हो
बड़ी  ही सीधीसादी  हो
मिले ऐसी अगर बीबी,तो सब वाह वाह कहते है
कहा घोटू ने मुस्का कर
दिवा ये स्वप्न है सुन्दर
भरे गुण इतने ,जिसमे सब
खुदा की फैक्टरी में अब
नहीं ये माल बनता है ,इसे अफवाह  कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दिल के अरमां ,आंसूओ में खो गये

  दिल के अरमां ,आंसूओ में खो  गये
                       १ 
शाम को सजती,संवरती मै रही,
                      आओगे तुम,प्यार निज दरशाओगे
बाँध लोगे बांहों  में अपनी मुझे ,
                       या कि मेरी बांहों  में बंध  जाओगे
आये थके हारे तुम ,खाया पिया ,
                         टी वी देखा  और झटपट  सो गये
क्या बताएं ,रात फिर कैसे कटी ,
                           दिल के अरमां ,आंसूओं में खो गये 
                            २
मुश्किलों से पार्टी का पा टिकिट ,
                       उतरे हम चुनाव के मैदान में
गाँव गाँव ,हर गली ,सबसे मिले ,
                   पूरी ताकत झोंकी अपनी जान  में
पानी सा पैसा बहाया ,सोच ये,
                       कमा लेंगे ,एम पी. जो हो गये
नतीजा  आया ,जमानत जप्त थी,
                       दिल के अरमां , आंसूओं में खो  गये 
                         ३
हुई शादी,प्यारी सी बीबी मिली,
                       धीरे धीरे ,बेटे भी दो हो गये
बुढ़ापे का सहारा ये बनेगें ,
                      लगा कर ये आस हम खुश हो गये
पढ़े,लिख्खे,नौकरी अच्छी  मिली ,
                      हुई शादी,अलग हमसे हो गये
बुढ़ापे में हम अकेले रह गये,
                  दिल के अरमां , आंसूओं में खो  गये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मई से मई तक

    मई  से मई तक

मई में,
एक सुरमई आँखों वाली से ,
सुर मिले
उसकी प्रेममयी बातों ने,
प्रेम का मय पान कराया
फिर आनंदमयी जिंदगी के सपने देखे
परिणाम में परिणय हुआ
और अगली मई तक,
वो प्रेममयी ,आनंदमयी ,सुरमई आँखों वाली ,
ममतामयी बन गयी

घोटू

लेनिन की जीवनी का मुड़ा हुआ पन्ना














इस कोलाहल के बीच
कुछ लोग जयकारा नहीं लगा रहे हैं
टोपी भी नहीं पहनते हैं
न लाठी, न तलवार, न त्रिशूल, न टीका
कुछ पूछो तो मुस्कुरा देते हैं बस

क्या वे सच में तृप्त लोग हैं
क्या ये उनकी आतंरिक शांति है
या ऐसे लोगों का मौन
ज्वालामुखी विस्फोट से ठीक पहले
पर्वत की चोटी पर पसरे सन्नाटे जैसा है

अपने अन्दर खौलता हुआ लावा भरकर
ये लोग चुपचाप जोत रहे हैं
आज की बेनूरी शाम 
और क्रांति के भोर के बीच की बंजर ज़मीन
जहां उनके पसीने की एक-एक बूंद
मिट्टी में दबकर अंकुरित हो रही है

ये लोग उस मुड़े हुए पन्ने से आगे
पढ़ रहे हैं लेनिन की जीवनी
जिसे फाँसी के तख्ते तक जाने से ठीक पहले
भगत सिंह अपने सेल में छोड़ गए थे 

ये लोग सोवियत संघ की कब्र पर उपजी
हरी विषाक्त घास खाने वालों में नहीं हैं

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सुशील कुमार
दिल्ली, 24 अप्रैल 2014

प्रिय पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर

    मेरी प्रिय पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर
               शुभकामनाओं सहित

सड़सठ की हो गयी ,मगर अब भी मतवाली
वही  कशिश  है,वही  अदायें ,सत्रह  वाली
पांच दशक के बाद अभी भी उतनी  दिलकश
पास तुम्हारे आने को मन करता  बरबस 
वही ठुमकती  चाल ,निगाहें वो ही कातिल
मधुर मधुर  मुस्कान ,मोह  लेती मेरा दिल
तिरछी नज़रों वाला वो अंदाज ,वही है
वो ही साँसों की सरगम है ,साज वही है
 तो क्या हुआ ,बढ़ गया कंचन है जो तन पर 
तो क्या हुआ चढ़ गया चश्मा,अगर नयन पर
वो ही सुन्दर तन है,वैसी ही सुषमा है
और प्यार में ,अब भी वैसी ही ऊष्मा है
वही महकता बदन लिये खुशबू चन्दन की
वो ही प्यारी छटा और आभा यौवन की
अब भी तुम में वही चाशनी ,मीठी  रस की
बहुत बधाई तुमको अपने जनम दिवस की
सदा रहे मुख पर छाई  ,मुस्कान निराली
वही कशिश है ,वही अदायें , सत्रह  वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर

    मेरी प्रिय

               शुभकामनाओं सहित

सड़सठ की हो गयी ,मगर अब भी मतवाली
वही  कशिश  है,वही  अदायें ,सत्रह  वाली
पांच दशक के बाद अभी भी उतनी  दिलकश
पास तुम्हारे आने को मन करता  बरबस 
वही ठुमकती  चाल ,निगाहें वो ही कातिल
मधुर मधुर  मुस्कान ,मोह  लेती मेरा दिल
तिरछी नज़रों वाला वो अंदाज ,वही है
वो ही साँसों की सरगम है ,साज वही है
 तो क्या हुआ ,बढ़ गया कंचन है जो तन पर 
तो क्या हुआ चढ़ गया चश्मा,अगर नयन पर
वो ही सुन्दर तन है,वैसी ही सुषमा है
और प्यार में ,अब भी वैसी ही ऊष्मा है
वही महकता बदन लिये खुशबू चन्दन की
वो ही प्यारी छटा और आभा यौवन की
अब भी तुम में वही चाशनी ,मीठी  रस की
बहुत बधाई तुमको अपने जनम दिवस की
सदा रहे मुख पर छाई  ,मुस्कान निराली
वही कशिश है ,वही अदायें , सत्रह  वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

चोली -दामन

           चोली -दामन

 बच्चों को बतलाई ,पुरानी पीढ़ी की बात
पति और पत्नी जब ले लेते थे फेरे सात
उनमे होजाता था ,चोली और दामन का साथ
नयी  पीढ़ी की कन्या को,समझ न आयी ये बात
बोली कि चोली के साथ,टॉप हो स्लीवलेस
मॉडर्न फेशन की ,बन जाती सुन्दर ड्रेस
चोली के रिश्ते की ,बात तो समझते है हम
पर ये तो बतलाओ,क्या होता है दामन ?

घोटू  

झुकना सीखो

            झुकना सीखो

जब फल लगते है तो डाल झुका करती है
कुवे में जा,झुकी  बाल्टी,जल   भरती   है
बिखरे हुए धरा पर हीरे ,माणिक ,नाना
पाना है तो झुक कर पड़ता उन्हें उठाना 
झुको,बड़ों के चरण छुओ ,परशाद मिलेगा
सच्चे दिल से तुमको  आशीर्वाद   मिलेगा
मुस्लिम जाते मस्जिद,हिन्दू जाते मंदिर
ईश वंदना हरदम की जाती है झुक कर
जब सिग्नल झुकता है,रेल तभी चलती है
झुक कर करो सलाम,बात तब ही बनती है
हरदम रहते तने,बात   करने  ना  रुकते 
वोट मांगने ,अच्छे अच्छे ,नेता    झुकते
तूफानों में,जो तरु झुकते,रहते  कायम
रहते तने,जड़ों से  उखड़ा करते  हरदम 
अगर झुक गयी नज़र,प्यार में  उनकी 'हाँ'है
बिना झुके क्या कभी किसी से प्यार हुआ है
झुकने झुकने में भी पर  होता है  अंतर
झुके सेंध में, घुसे चोर तब घर के अंदर
चीता जब झुकता है,तेज वार है  करता 
जितनी झुके कमान ,तीर तेजी से चलता
चलते है झुक, जब हो जाती अधिक उमर है
झुक कर पढ़ते,जब होती कमजोर नज़र है
 इसीलिये आवश्यक है ये बात  जानना
झुकने वाले की मंशा,  हालात  जानना
अम्बर झुकता दूर क्षितिज में,धरा मिलन को
झुकना सदा सफलता देता है जीवन को

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

बढ़ते विकल्प.....भ्रमित जीवन...!!!


बढ़ते विकल्प
    सबकुछ की लालसा
           और भ्रमित जीवन...
                विषयों की भीड़
                       प्रसाद सी शिक्षा
                            ढेर सारा अपूर्ण ज्ञान...
उत्सवों की भरमार
    बढती चमक दमक
          घटता आनंद...
                 व्यंजनों की कतारें
                       खाया बहुत कुछ
                              फिर भी असंतुष्टि...
सैकड़ों चैनल
    दिन-रात कार्यक्रम
          पर मनोरंजन शून्य...
                 रिश्ते ही रिश्ते
                      बढ़ती औपचारिकता
                             और घटता अपनापन...
अनगिनत नियम कानून
    बढ़ते दाँव - पेच
          और बढ़ता भ्रष्टाचार...
                फलती-फूलती बौद्धिकता
                      सूखते-सिकुड़ते हृदय
                              और दूभर होती श्वास...
अनेकों सूचना माध्यम
     सुगम होती पहुँच
            फिर भी घटता संपर्क...
                   फैलती तकनीक
                         बढ़्ती सुविधायें
                               घटती सुख-शान्ति...
हजारों से जुड़ाव
     सैकड़ों से बातचीत
           फिर भी अकेले हम...

                    - विशाल चर्चित

अंधा प्यार

                   अंधा प्यार

हम इस घर की दरोदीवार से  ,इतना है वाकिफ ,
                            हमें मालूम है खूंटी कहाँ है और कहाँ आला
सिर्फ अंदाज से ही काम अपना ,लेते सब निपटा,
                              हमें क्या फर्क पड़ता ,अँधेरा है या कि उजियारा

घोटू

हादसा

        हादसा 

वो पस्त थी,बोझिल सी थी पलकें,थकी हुई,
                      उनसे मिलन के वास्ते था बेकरार मै
वाद उन्होंने ये किया ,थोड़ा सा मै सो लू,
                      पूरी करूंगी आपकी हसरत हज़ार मैं
वो प्रेम से सोती  रही खर्राटे मारती
                     वादा वो निभाएंगी ,इसी एतबार में
करवट बदल बदल के किया इन्तजार था,
                       ऐसे भी हादसे है हुआ करते प्यार मे

घोटू            

खून

        खून

माँ बाप ,बेटी बेटे जिनसे रिश्ता खून का,
                       उन सबके लिए होता दिल में हमको प्यार है
बढ़ता दबाब खून का ,बीमारियां होती,
                        ज्यादा मिठास खून में भी ,नागवार  है
जब जाने जिगर ,दिलरुबा ,आती करीब है ,
                        तो आने लगता खून में ,अक्सर उबाल है
दुश्मन भी आता सामने तो खून उबलता ,
                        खून के इंसान की ,फितरत कमाल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 27 अप्रैल 2014

सुख-साली का

            सुख-साली का

शादी तो सबकी होती है,सबको मिलती घरवाली है
पर वो खुश किस्मत होते, जिनको मिलती छोटी साली है
है लाड़ लड़ाती सासूजी,और साली सेवा करती है
सीधी  ना टेढ़ी मेढ़ी पर  ,साली रस भरी इमरती है
यदि पत्नी दूध उबलता है, साली ,लस्सी,ठंडाई है
सालीजी चाट चटपटी है ,यदि बीबी मस्त मिठाई है
पत्नी यदि हलवे सी ढीली,साली कुरमुरी पकोड़ी है
बीबी ताँगे  में जुती  हुई,तो साली अल्हड घोड़ी  है
पत्नी दीपक दीवाली का ,साली फुलझड़ी ,पटाखा है
चंचल,चुलबुली चपल,सुन्दर हंस दिल पर डाले डाका है
बीबी हो जाती गोल बदन,साली गुलबदन ,नवेली है
बीबी तो बस दिनचर्या  है ,साली नूतन  अठखेली है
पहले 'जी'कहती ,और फिर 'जा',फिर शरमा कर'जी' कहती है
 अंदाज निराला होता  है ,जब वो 'जीजाजी ' कहती है
उससे मिल कर हर जीजा की,तबियत फूलों सी खिलती है
बीबी है घर का माल मगर,साली बोनस में मिलती है
 ये लोग कहा करते  ,साली ,होती आधी घरवाली है
तो  मेरी दो घरवाली है, एक बीबी है,दो साली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

नरेंदर मोदी जैसा हो

            नरेंदर मोदी जैसा हो

न आगे कोई ना पीछे,   न बेटी है न बेटा है
और करने देश की सेवा ,कमर कस के जो  बैठा है
लगे भारत का हर एक शख्स ही परिवार अपना है
बने सोने की चिड़िया देश फिर,जिसका ये सपना है
तरक्की भाईचारा हो,अमन हर  ओर  हो जाए
हमारा देश फिर से विश्व में सिरमौर हो जाए
विपुल भण्डार हो धन का,भरे भण्डार में अन्न हो
कमी ना बिजली ,पानी की,सभी उपलब्ध साधन हो
उगे फसलें हो खुशहाली ,बरसता खूब पैसा  हो
जो नेता  कर ये दिखलाये,नरेंदर मोदी जैसा हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जो मोदी बात तुझमे है

         जो मोदी बात तुझमे है

देश उत्थान को लेकर ,भरे है सपने आँखों में,
                              वतन के वास्ते कुछ करने के,जज्बात तुझमे है
ये हिन्दू और मुस्लिम सिख्ख ,सब भारत के वासी है,
                                कि  कौमी एकता  के सुलझे ,ख़्यालात  तुझमे है
भीड़ लाखों की जुट जाती ,है तेरी बात सुनने को,
                                  है जादुई करिश्मा कोई करामात    तुझमे है
गजब का जोश,जज्बा है,सधी और सीधी बातें है,
                                  नज़र औरों में ना आती ,जो मोदी बात तुझमे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

क्या ये सब ही राजनीति है?

क्या ये सब ही राजनीति  है?

इक दूजे पर फेंके  कीचड़
टांग खींचते ,आपस में लड़
ढूंढ ढूंढ कर पोल खोलते
उल्टा सीधा ,सभी बोलते
शब्दों का यूं ग़दर मचा है
नहीं कोई शालीन बचा है
             यहाँ सभ्यता हुई  इति  है
            क्या ये सब ही राजनीति है? 
ये कर देंगे,वो  देंगे कर
जनता को आश्वासन देकर
वादा किया हमेशा झूंठा 
सत्ता पाई,जी भर लूटा
जनता का धन लूट लूट के
अब बनते है धुले दूध के
         जनसेवा की यही रीति है ?
          क्या ये सब ही राजनीति है?
सत्ता लोलुपता में पागल
मचा रखा है ऐसा दंगल
तोड़फोड़ के सब हथकंडे
पड़े विरोधी जिससे ठन्डे
साम दाम अपनाने वाले
बस सत्ता का सपना पाले
             क्या जनता की यही नियति है ?
              क्या ये सब ही राजनीति  है?
इतने सब के उड़े होश है
इक दूजे को रहे कोस है
सत्ता छीने न ,यही सोच कर
उत्तर आये गाली गलोच पर
दंद फंद  के सभी काम कर
वोट मांगते ,धरम नाम पर
            जब मतलब है,तभी प्रीति है
             क्या ये सब ही राजनीति  है ?
पर अब जनता जाग गयी है
परिवर्तन की आग नयी है
झेला बहुत,न अब झेलेंगे
इनके हाथों   ना   खेलेंगे
भला बुरा सब परखेंगे हम
वोट उसी को तब देंगे हम
           जो जनता का सही हिती है
            तब ही सच्ची  राजनीति है
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

हाथापाई

            हाथापाई
पहलवान दंगल में ,और बच्चे स्कूल में ,
                        आपस मे  करते ही रहते  हाथापाई
सत्तारूढ़ सांसद और विपक्षी दल की ,
                          संसद में चलती ही रहती  हाथापाई
करें  प्रदर्शनकारी,जब भी कहीं प्रदर्शन,
                           उनमे और पुलिस में होती  हाथापाई 
और चुनाव में नेता ,अलग अलग मंचों से ,
                             करते  ही  दिखते ,शब्दों  की  हाथापाई
अगर किसी के संग ,सड़क पर जो हो  झगड़ा ,
                             तो हम उसको भी तो,कहते  हाथापाई
चारपाई पर पति पत्नी का प्रेम का प्रदर्शन,
                              एक तरह वो भी  ,होती  हाथापाई
अलग अलग लोगों संग ,अलग अलग जगहों पर,
                             वो ही क्रिया ,जब जाया करती  दोहराई 
क्रिया वो ही ,प्यार कहीं पर मानी जाती,
                               और कहीं पर खेल,,कहीं पर वही लड़ाई
घोटू

कुछ ऐसे कर

                कुछ ऐसे कर

'घोटू'तुझको कुछ करना है तो तू कर ,पर कुछ ऐसे कर
तेरा भी बन जाए काम सब ,और किसी को नहीं हो खबर
वरना उडी उडी सी रंगत ,सर के गेसू ,बिखर बिखर कर
बतला देंगे सब  दुनिया को,तूने क्या क्या किया रात भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 20 अप्रैल 2014

एडजस्ट हो जाते है

            एडजस्ट हो जाते है
 
 रेलवे स्टेशन पर,जब ट्रेन आती है
डब्बे में मुसाफिर की ,भीड़ घुस आती है
भीतर बैठे लोग ,'जगह  नहीं' चिल्लातें है
ट्रेन  जब चलती  है,सब  ऐडजस्ट हो जाते है
जोश भरा नया मुलाजिम ,जब नौकरी पाता है
बड़ी तेजी ,फुर्ती से ,काम सब  निपटाता  है
ऑफिस का ढर्रा जब ,समझ वो जाता है
अपने सहकर्मी संग ,एडजस्ट हो जाता है
छोड़ कर माँ बाप ,पिया घर जाती है
नए लोग ,सास ससुर ,थोड़ा घबराती है
प्यार और सपोर्ट जब,निज पति का पाती है
धीरे  धीरे  हर लड़की ,एडजस्ट हो  जाती  है
बड़े बड़े सिद्धांतवादी ,अफ़सरों के  घर पर
 पहुँचते है ब्रीफकेस ,नोटों से भर भर कर
मिठाई के डब्बे और गिफ्ट  रोज आते है
ईमानदार अफसर भी एडजस्ट हो जाते है
जवानी में खूब मौज ,मस्तियाँ मनाते है
उमर के साथ साथ ,ढीले पड़  जाते है
मन मसोस रह जाते ,कुछ ना कर पाते है
बुढ़ापे के साथ  सब ही,एडजस्ट  हो जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जैसा ढर्रा है चलने दो

              जैसा ढर्रा है चलने दो

तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा  ढर्रा है चलने दो

सबकी अपनी अपनी आदत,अपने ढंग से जीते जीवन
लाख करो कोशिश आप पर,मुश्किल होता है परिवर्तन
कोई कितना ही समझाए,उनको मैनर्स और   सलीके
पडी हुई जो आदत होती ,छूटा करती है मुश्किल से
चावल,दाल और सब सब्जी,मिला और अचार डाल कर
बना बना लड्डू हाथों से ,जो खाया करते खुश होकर
उन्हें कहो ,चम्मच से खालो,तो वो स्वाद नहीं पायेंगे
मुश्किल से आधा ही खाना खा कर, भूखे  रह  जायेंगें
जो जैसे खुश होकर खाता  ,वैसे ही भोजन करने दो
तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा ढर्रा है चलने दो 
कोई उसको क्या समझाए ,जो कुछ समझ नहीं पाता है
परिवर्तन करने वाला ही खुद परिवर्तित हो जाता है
'ओबामा 'लालू यादव को ,इंग्लिश नहीं सिखा पायेगा
कुछ दिन साथ रहेगा उनके ,भोजपुरी में बतियायेगा
कोशिश कितनी भी करलो तुम,लेकिन व्यर्थ सभी जाती है
टेढ़ी पूंछ मगर कुत्ते की  ,कभी न सीधी  हो पाती है
हर साहब ,बाबू,चपरासी,सभी महकमो मे सरकारी
भ्रस्टाचार लिप्त रहते  है  ,ऊपर  इनकम  है प्यारी
अपना काम अगर करवाना ,तो उनकी मुट्ठी भरने दो
तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा  ढर्रा है चलने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऐसा भी होता है

           ऐसा भी होता है
                   १
करी रक्षा हमारे देश की सरहद की जीवन   भर,
बुढ़ापे में उस सैनिक का ,बिगड़ यूं हाल है जाता
भूख लगती,रसोई से ,दो बिस्किट भी उठा लेता ,
तो अपनी बहू  चोर तक भी ,है उसको कहा जाता
                         २
आता है जब बच्चा पति पत्नी जीवन में
व्यस्त बहुत हो जाते है लालन पालन में
और जाती इस कदर ,बदल उनकी दिनचर्या
जिससे बच्चा आया ,भूल वो जाते किर्या

घोटू
  
        

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

मूर्तियां


               मूर्तियां

नरम मिट्टी,सही पानी और सही चिकनाई हो,
                    उँगलियों की कुशलता से,मिट्टी बनती मूर्तियां
सही हो साँचा अगर और गरम धातु पिघलती,
                     साँचे के ही मुताबिक़ है,सदा ढलती    मूर्तियां  
सही हो चट्टान,हाथों में हुनर ,छैनी सही,
                     हथोड़े की मार से भी   है उकरती  ,  मूर्तियां
अगर दिल में महोब्बत है और मिलन में ऊष्मा
                     प्यार के सच्चे मिलन  से ,है जन्मती ,मूर्तियां

घोटू         ,
                                 
               ,

बुढापा -खटारा कार


     बुढापा -खटारा कार

इस तरह है जिंदगी ,अपनी खटारा हो गयी ,
                             कार भी है पुरानी और बैटरी में नहीं दम
पूरी बॉडी खड़खड़ाती ,चलती जब स्पीड से,
                              थोड़ी भी चढ़ती चढ़ाई,होता है इंजिन गरम
गीयर ढीले,घिसा इंजिन ,स्टीयरिंग भी लूज है,
                               ट्यूब  पंक्चर से भरी  है,घिस गए टायर  सभी
जब तलक है चल रही ,चलती रहे ,किसको पता ,
                             किस जगह ,किस मोड़ पर,रुक जाए ये गाडी कभी

घोटू

पर्यटन और मोक्ष

          पर्यटन और मोक्ष

होता जोश जवानी का जब ,
                     रहते व्यस्त कमाइ  मे हम
जब थोड़ी फुर्सत मिलती है,
                    तब बूढ़ा होने लगता  तन
मन करता है,दुनिया देखें,
                    बाहर जाएँ,मन बहलायें
लेकिन साथ नहीं  देता तन  ,
                     बढ़ती  जाती  है पीडायें  
कभी दर्द घुटनों में होता ,
                      कभी सांस फूला करती है
कुछ दिन घर से दूर रहो तो,
                      हो जाती हालत  पतली है
पर मन कहता ,ईश्वर ने जो,
                      यह विशाल संसार रचा है
कई अजूबे,कई करिश्मे ,   
                    अभी देखना  बहुत बचा है
जब ऊपर जाएंगे ,ईश्वर,
                     देखेगा ,कर्मो का लेखा
पूछेगा मेरी दुनिया में,
                     बतला ,तूने क्या क्या देखा
देखी  क्या मेरी रचनाएं,
                      झरने,नदियां,पहाड़ ,समंदर
यदि हम ना में उत्तर देंगें ,
                      वापस भेजेगा धरती  पर
यदि हम बोले ,भगवन हमने ,
                        देखी  तेरी सारी  कृतियाँ
कलाकार तू  अद्वितीय है,
                         कितनी सुन्दर ,तेरी दुनिया
हो प्रसन्न वह निज अनुपम कृती ,
                         स्वर्ग दिखाने को भेजेगा 
 मोक्ष मिलेगी,पुनर्जन्म के,
                         चक्कर से पीछा छूटेगा                   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

घर की याद

         घर  की याद

जब काफी दिन एक जगह पर ,
                      रह कर मन है उचटा करता
परिवर्तन या कहो पर्यटन ,
                      करने को मन भटका करता
रोज रोज की दिनचर्या से,
                        थोड़े  दिन की छुट्टी लेकर
ख़ुशी ख़ुशी और बड़े चाव से ,
                         कहीं घूमने जाते  बाहर
पहले तो दो तीन दिवस तक,
                          अच्छा लगता है परिवर्तन
नयी जगह और नए लोग सब ,
                           नयी सभ्यता ,भाषा नूतन
कमरा  नया ,नित नया बिस्तर ,
                          नया नया नित खान पान है
रोज घूमना ,चलना फिरना,
                          चढ़ जाती तन पर थकान है
दिन भर  ये देखो ,वो देखो,
                           बड़ी दूरियां ,चलना दिन भर
कहीं खंडहर,कहीं महल है ,
                            झरने कहीं,कहीं पर सागर
मन प्रसन्न पर तन थक जाता ,
                            सैर करो जब दुनिया भर की
अच्छा तो लगता है लेकिन, 
                             याद  सताने लगती घर की
और ऊबने लगता मन है ,
                             रोज रोज होटल मे खाते
याद हमें आने लगते है ,
                            घरकी रोटी ,दाल ,परांठे
परिवर्तन अच्छा होता पर ,
                            जिस जीवन के हम है आदी
हमें वही अच्छा लगता है ,
                            और घर की है याद सताती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

                       
    

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

शंका और समाधान

          शंका और समाधान

कई  बार  मैं  पूछा  करता  हूँ  अपने से
क्यों ये खुशियों के दिन लगते है सपने से
और क्यों लम्बी होती है ये  दुःख की रातें
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हँसते गाते ?
कैसा है ये प्रकृति ने   संसार  बनाया
कहीं बनाये सागर,कहीं पहाड़ बनाया
और कहीं पर मरुस्थल, बस रेत  रेत  है
हरियाली है ,कहीं लहलहा रहे खेत  है
कहीं झर रहे झरने,गहरी खाई कहीं पर
कल कल करती  नदिया है लहराई कहीं पर
प्रभु क्यों ना ये पूरी धरा सपाट  बनाते ?
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हँसते गाते
 ऐसा क्यों है,कभी खुशी है और कभी गम
बार बार क्यों बदला करते है ये मौसम
कहीं शीत है,   बरफ बरसती ,गिरते ओले
और कहीं पर ,गरम धूप है,लू के शोले
अलग अलग जगहों पर अलग अलग ऋतुएं है
कोई नहीं समझ पाता  ,होता क्यू ये  है
कहीं बसन्ती मौसम और कहीं बरसातें
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हंसते गाते
 फिर मेरे मन ने समझाया,क्यों रोता है
सुख भी तब ही सुख लगता,जब दुःख होता है
सूरज तपता ,तब ही शीतल लगे चांदनी
उंच नीच के कारण ही सुन्दर है अवनी 
प्रभु की अनुपम कृति जिसे हम कहते नारी
कैसी लगती ,यदि सपाट जो होती  सारी
बिन नमकीन, सिर्फ मीठा क्या हम खा पाते ?
सुख दुःख से ही कटे जिंदगी ,हंसते गाते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है

         मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है

इस तरह बदली है मेरी जिंदगी ,
                मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है
रोज है होली,दिवाली,दशहरा ,
                हर एक दिन ही ,अब मेरा त्योंहार है
सभी मौसम अब बसन्ती हो गए,
                 बहारें ही बहारें हर  ओर है
कूकती है कोकिला हर डाल पर,
                पंछियों का,मधुर कलरव ,शोर है
हो गया हर दिन मेरा रंगीन है,
                हो गयी मदभरी ,अब हर रात है
शाम हर एक,सुरमई है सुहानी ,
                 और सुनहरी हो गयी हर प्रातः  है
चांदनी बिखरी हुई है हर तरफ,
                  हुआ इतना सुहाना संसार है
इस तरह बदली है मेरी जिंदगी ,
                   मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है
कभी चंचल नदी सा कलकल करूं ,
                   कभी रिमझिम बरसता, बरसात सा
कभी झरने की तरह झरझर झरूँ ,
                     कभी सागर  सा उछालें   मारता
महकता हूँ हर तरफ मैं पुष्प सा ,
                      तितलियाँ है,कर रहे गुंजन भ्रमर
पाँव टिकते नहीं मेरे ज़मीं पर,
                      ऐसा लगता  उड़ रहा हूँ ,लगा, पर
समझ ना आता मुझे  है क्या हुआ ,
                      इस तरह बदला मेरा व्यवहार है
इस तरह बदली है मेरी जिंदगी ,
                    मिला मुझको ,जबसे तेरा प्यार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'        

मोदी आया-मुसीबत लाया

           मोदी आया-मुसीबत लाया

जनता को बरगलाया ,कर मीठी मीठी बातें
सपने उन्हें दिखाए, कर लम्बे  चौड़े  वादे
जाती है बहल झट से ,जनता है बड़ी भोली
अब तक बहुत खिलाई ,हमने है मीठी गोली
मौसेरे भाई  हम सब,चांदी  भी कट रही थी
और लूट सारी अपनी ,आपस में बंट रही थी
पर जग गयी है जनता,मौसम बदल गया है
आया  है जबसे मोदी ,सब कुछ बिगड़ गया है
नेता थे दादा ,नाना,पुश्तैनी हम  है नेता
अब नेता बन रहा है,ये चाय का विक्रेता
हालत हमारी इसने,आकर के कर दी ऐसी
होने लगी है देखो,हम सब की ऐसी तैसी
ऊपर से धूमकेतु, अरविन्द  आगया  है
हाथों में लेके झाड़ू, सबकी  बजा गया है
अस्तित्व पे है खतरा ,खतरे में विरासत है
मुश्किल में सब फंसे है,हर ओर मुसीबत है
कुत्ता नया गली में ,आता तो चौंकते है
कुत्ते सभी गली के,मिल कर के भोंकते है
कुत्तों से कम से कम हम,इतना सबक तो ले लें
बाहर के दुश्मनों को ,मिल कर के सब खदेड़े
इसलिए आओ,मिल कर ,हम सब उसे दें गाली
कर देगा खड़ी खटिया ,कुर्सी जो उसने पा ली
हम साथ रहें मिल कर ,उससे नहीं डरें हम
वो जो भी बोलता है, आलोचना करें हम
इज्जत जो हमें अपनी ,थोड़ी भी है बचानी
पड़ जाए उसके पीछे ,लेकर के दाना  पानी
अस्तित्व बचाने की,हम सबको अब पडी है
हो जाएँ एक हम सब, संकट  की ये घड़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

इलेक्शन का नतीजा

           इलेक्शन का नतीजा

नतीजो ने इलेक्शन के ,दिया कर पस्त है सबको,
               जिसे देखो बदलने को ,वो दल तैयार बैठा  है
बड़ा शक था ये लोगों को ,ऊँट किस करवट बैठेगा ,
               चाहते सब थे ,उसी करवट ,ऊँट इस बार बैठा है
मुलायम सिंह की भैसों ने ,किया कम  दूध अब देना,
                और माया का हाथी भी,किये हड़ताल बैठा है
हाथ पर हाथ रख कर बैठे है ,अब मम्मीजी और बेटे जी,
                 आप भी झाड़ू फिरवा कर ,बुरा कर हाल बैठा है   
ये जनता का करिश्मा है कि चाय बेचने वाला ,
               जाके दिल्ली की कुर्सी पे,लगा दरबार बैठा है
अबकी बार सिंहासन ,सम्भाला है नरेंदर ने,
               गिरि का शेर बब्बर ,दिल्ली में इस बार बैठा है
    
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चुनाव और नतीजे

         चुनाव और नतीजे

इस तरह मात दी मोदी ने है सबको इलेक्शन में ,
हरा कर सबको काबिज हो गया ,सत्ता में भारत की
विरोधी लाख चिल्लाये ,मगर कुछ कर नहीं पाये ,
बिचारे शहजादे की ,बड़ी ही उसने  दुर्गत की
नतीजा कुछ भी निकले ,बात पर ये माननी होगी ,
कि अबके से इलेक्शन में ,बहुत उसने है मेहनत की
डूबती नाव जब देखी ,लोग सब छोड़ कर भागे,
रहा फिर भी डटा मैदान में ,उसने ये हिम्मत की
घोटू 

शहजादा

       शहजादा

सफेदी आ गयी  बालों में ,मगर कहता युवा  खुद को ,
उमर तो है ससुर बनने की ,पर अब तक कंवारा  है
निकलता शब्द जो मुंह से ,वही क़ानून  बन जाता ,
उसे कुछ बेशरम चमचों ने ,सच  इतना बिगाड़ा  है
कोई कहता है शहजादा ,कोई कहता है बच्चा है,
है मम्मी की मगर आशा ,और बहना का दुलारा है
देश की राजनीति में ,अड़ाता टांग है अपनी ,
ये धंधा पुश्तेनी इस बिन ,नहीं चलता   गुजारा है

घोटू 

श्वान और इंसान

         श्वान और इंसान

आदमी में और कुत्ते में फर्क क्या दोस्तों ,
           सोचता हूँ आज ये सबको बताना  चाहिए
हमको जब भी आता प्रेशर ,जाते हम टॉयलेट में,
             फिक्स है वो जगह हमको ,जहां जाना चाहिए
मगर कुत्ता सूंघ कर ,तय करता है अपनी जगह,
                 है जरूरी इसलिए ,उसको  घुमाना  चाहिए
आदमी को प्यार करने को तो बीबी 'फिक्स'है ,
                 कुत्ते को हर बार पर नूतन  जनाना  चाहिए

घोटू 

युवराज का परफॉर्मन्स

         युवराज का परफॉर्मन्स

बाल इक्कीस ,और रन ग्यारह ,ट्वेंटी ट्वेंटी फ़ाइनल,
                      हरा डाला देश को ,क्या खेल था युवराज का
हरएक ओवर में है मोदी ,फास्ट बॉलिंग कर रहे ,
                        इलेक्शन में भी न ऐसा ,हश्र  हो युवराज का

घोटू

विरह गीत

         विरह गीत

बीत गए कितने दिन
रीत गए कितने दिन
विरहा की अग्नी में,
तड़फे जब तेरे बिन

निंदिया ने उचट उचट
आंसू ने टपक टपक
सपनो ने भटक भटक
इस करवट,उस करवट
तुम्हारी यादों में,
मीत ,गए कितने दिन
बीत गए कितने दिन
इस दिल ने धड़क धड़क
भावों ने भड़क भड़क
यादों ने उमड़ उमड़
तड़फाया ,तड़फ तड़फ,
कैसे हम जी पाये,
बिना प्रीत,इतने दिन
बीत गए कितने दिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 6 अप्रैल 2014

अच्छा कल बात करना

   अच्छा कल बात करना

मेरी माँ और मेरी मासी
एक की उम्र बानवे,एक कि अठ्ठासी
दोनों अलग अलग अकेली
एक दुसरे को फोन करती है डेली
उनकी बातचीत कुछ होती है ऐसी
और तुम हो कैसी और मैं हूँ कैसी
तबियत ठीक है ना,कैसे है हालचाल
बहू बेटे ,रखते है ना ख्याल
सबकी चिंताएं मन में बसी हुई है
मोह माया के जाल में फंसी हुई है
और इधर उधर की बातें करने के बाद
रोज होता है उनका संवाद
क्या करें बहन ,मन नहीं लगता है
बड़ी ही मुश्किल से वक़्त कटता है
दिन भर क्या करें,बैठे  ठाले
इतनी उम्र हो गयी,अब तो राम उठाले
क्या करें ,मौत ही नहीं आती  ,एक दिन है मरना
पल भर का भरोसा नहीं पर कहती है,
अच्छा कल बात करना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गिरी का बब्बर शेर दहाड़ेगा दिल्ली दरबार में

        गिरी का बब्बर शेर दहाड़ेगा दिल्ली दरबार में

दीवारों  के साथ लिखा है दिल पर अबकी बार में
गिरी का बब्बर शेर दहाड़ेगा ,दिल्ली दरबार में
 
 बहुत खा लिया धोखा हमने ,और नहीं अब खायेंगे
जिनने बहुत कमीशन खाया ,अब वो मुंह की खायेंगे
अक्षम ,बेईमान लोग अब ,वोट न हमसे पाएंगे
बहुत चपत खा चुके हाथ से ,अबके कमल खिलाएंगे
 बार बार लकड़ी की हांडी ,ना  चढ़ती  अंगार  में
गिरी का बब्बर शेर दहाड़ेगा दिल्ली दरबार   में
 
बहुत बरस हमको भरमाया,मीठी मीठी बातों से
क्या क्या सपने दिखलाये थे,लम्बे लम्बे वादों से
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,दुखी आम इंसान हुआ  ,
भला देश का नहीं हुआ कुछ ,सत्ता के शहजादों से
वरना देश हमारा होता,नंबर वन ,संसार में
गिरी का बब्बर शेर दहाड़ेगा दिल्ली दरबार में

लेकिन वक़्त आगया है अब ,गिन गिन हम बदला लेंगे
कितनी ताक़त है वोटों में ,सबको हम जतला देंगे
गुंडे,बेईमान न कोई ,सत्ता पर काबिज होंगे ,
हम सुराज का सपना अपना, सच करके दिखला देंगे
 कोई भ्रष्ट ,नहीं आ  पायेगा ,अबकी  सरकार में
गिरी का बब्बर दहाडेगा ,दिल्ली दरबार में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

हमारी बदकिस्मती

          हमारी बदकिस्मती

बताएं क्या हमारी  दास्ताँ है बड़ी दर्दीली ,
                       हमें बेदर्द किस्मत ने ,बहुत ज्यादा सताया है
चाँद  पाने की हसरत में ,बहुत तड़फे जवानी में,
                         बुढ़ापा आया तब जाकर , चाँद चंगुल में आया है
एक तो इस कदर से देर करदी ,तोड़ दिल डाला ,
                           जिसे बाहों में  आना  था ,  हमारे सर  पे छाया है
न जाने क्या क्या देखे थे,सपन लेकर जिसे हमने  ,
                              फेर कर   हाथ ही बस,मन हमारा बहल पाया है

घोटू    
 

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