एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 20 अप्रैल 2014

एडजस्ट हो जाते है

            एडजस्ट हो जाते है
 
 रेलवे स्टेशन पर,जब ट्रेन आती है
डब्बे में मुसाफिर की ,भीड़ घुस आती है
भीतर बैठे लोग ,'जगह  नहीं' चिल्लातें है
ट्रेन  जब चलती  है,सब  ऐडजस्ट हो जाते है
जोश भरा नया मुलाजिम ,जब नौकरी पाता है
बड़ी तेजी ,फुर्ती से ,काम सब  निपटाता  है
ऑफिस का ढर्रा जब ,समझ वो जाता है
अपने सहकर्मी संग ,एडजस्ट हो जाता है
छोड़ कर माँ बाप ,पिया घर जाती है
नए लोग ,सास ससुर ,थोड़ा घबराती है
प्यार और सपोर्ट जब,निज पति का पाती है
धीरे  धीरे  हर लड़की ,एडजस्ट हो  जाती  है
बड़े बड़े सिद्धांतवादी ,अफ़सरों के  घर पर
 पहुँचते है ब्रीफकेस ,नोटों से भर भर कर
मिठाई के डब्बे और गिफ्ट  रोज आते है
ईमानदार अफसर भी एडजस्ट हो जाते है
जवानी में खूब मौज ,मस्तियाँ मनाते है
उमर के साथ साथ ,ढीले पड़  जाते है
मन मसोस रह जाते ,कुछ ना कर पाते है
बुढ़ापे के साथ  सब ही,एडजस्ट  हो जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-