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शनिवार, 8 अगस्त 2020

मंहगा सोना

कमजोरी हर नारी मन की
यह चाहत स्वर्णाभूषण की
पहनो मुख पर आती रौनक
बढ़ती उसकी जा रही चमक
है भाव रोज ऊपर  चढ़ता
सोना कितना  मंहगा पड़ता

स्कूल के दिन है याद हमें
शैतानी वाला स्वाद हमें
कक्षा  में बोअर होते थे
पिछली  बेंचों पर सोते थे
पकडे ,मुर्गा बनना पड़ता
सोना कितना  मंहगा पड़ता

हम दफ्तर में थे थक जाते  
लोकल ट्रेनों से घर जाते
थक कर झपकी ले लेते हम
छूटा करता था स्टेशन
फिर लौट हमें आना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

निज देश प्रेम करने जागृत
एक सेमीनार था आयोजित
 मंच  पर बैठे थे मंत्री जी
लग गयी आँख ,आयी झपकी
पेपर में फोटू जब छपता
सोना कितना मंहगा पड़ता

कर बचत  गरीब कामवाली
ले आयी सोने की बाली  
पहनी जिस दिन था त्योंहार
ले गए छीन कर झपटमार
कट गए कान ,सिलना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

है चार माह भगवन सोते
शुभ कार्य नहीं कोई होते
मुहूरत अटका देता  रोडे
तड़फा करते ,प्रेमी जोड़े
जब इन्तजार करना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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