कमियां
कोरोना के डर के मारे
फुर्सत में रहते हम सारे
बोअर हो गए बैठे ठाले
आओ सबकी कमी निकालें
वो ऐसा है ,वो है वैसा
उसके पास बहुत है पैसा
रहता है कंजूसों जैसा
चिकचिक करता रहे हमेशा
एक वो टकला बड़ा बोर है
झूंठा है और चुगलखोर है
बेईमान खुद ,बड़ा चोर है
मगर मचाता बहुत शोर है
वो बूढा है सबसे हटके
पेर कब्र में जिसके लटके
चाहे प्राण गले में अटके
लेकिन नयना अब भी भटके
वो छोटू ,दिखता है मुन्ना
लेकिन वो है काफी घुन्ना
फैल रहा है दिन दिन दूना
लगा दिया कितनो को चूना
वो लम्बू है बड़ा निराला
चालू चीज बड़ा है साला
लाइन सब पर करता मारा
पर अब तक बैठा है कंवारा
वो लड़का दिखता सीधा है
बातचीत में संजीदा है
हुआ पड़ोसन पर फ़िदा है
करता सबको शर्मिन्दा है
वो है घर का करता धरता
मेहनत कर दिन रात विचरता
पर अपनी पत्नी से डरता
उसको मख्खन मारा करता
उस प्रोढ़ा सी पंजाबन के
नखरे बड़े निराले मन के
रहती है कितनी बनठन के
अब भी तार हिलाती मन के
उस बुढ़िया की देखो सूरत
अब भी मनमोहिनी मूरत
लगता देख आज की हालत
होगी कभी बुलन्द इमारत
हम बोले क्यों होते बेकल
फुरसत में हो इतने पागल
कमी ढूंढना बहुत है सरल
झांको कभी हृदय के अंदर
पाओगे तुम बहुत गड़बड़ी
अंदर कमियां भरी है पड़ी
वो सुधरे तो किस्मत सुधरी
फिर से बात बनेगी ,बिगड़ी
मत ढूंढो औरों की बुराई
खुद की कमियां देखो भाई
उन्हें सुधारो तब ही बढ़ाई
देखो लोगों की अच्छाई
कोई कितना बने सिकंदर
कमिया होती सबके अंदर
बड़ा ,किन्तु खारा है समन्दर
शुद्ध रखो निज मन का मंदिर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के डर के मारे
फुर्सत में रहते हम सारे
बोअर हो गए बैठे ठाले
आओ सबकी कमी निकालें
वो ऐसा है ,वो है वैसा
उसके पास बहुत है पैसा
रहता है कंजूसों जैसा
चिकचिक करता रहे हमेशा
एक वो टकला बड़ा बोर है
झूंठा है और चुगलखोर है
बेईमान खुद ,बड़ा चोर है
मगर मचाता बहुत शोर है
वो बूढा है सबसे हटके
पेर कब्र में जिसके लटके
चाहे प्राण गले में अटके
लेकिन नयना अब भी भटके
वो छोटू ,दिखता है मुन्ना
लेकिन वो है काफी घुन्ना
फैल रहा है दिन दिन दूना
लगा दिया कितनो को चूना
वो लम्बू है बड़ा निराला
चालू चीज बड़ा है साला
लाइन सब पर करता मारा
पर अब तक बैठा है कंवारा
वो लड़का दिखता सीधा है
बातचीत में संजीदा है
हुआ पड़ोसन पर फ़िदा है
करता सबको शर्मिन्दा है
वो है घर का करता धरता
मेहनत कर दिन रात विचरता
पर अपनी पत्नी से डरता
उसको मख्खन मारा करता
उस प्रोढ़ा सी पंजाबन के
नखरे बड़े निराले मन के
रहती है कितनी बनठन के
अब भी तार हिलाती मन के
उस बुढ़िया की देखो सूरत
अब भी मनमोहिनी मूरत
लगता देख आज की हालत
होगी कभी बुलन्द इमारत
हम बोले क्यों होते बेकल
फुरसत में हो इतने पागल
कमी ढूंढना बहुत है सरल
झांको कभी हृदय के अंदर
पाओगे तुम बहुत गड़बड़ी
अंदर कमियां भरी है पड़ी
वो सुधरे तो किस्मत सुधरी
फिर से बात बनेगी ,बिगड़ी
मत ढूंढो औरों की बुराई
खुद की कमियां देखो भाई
उन्हें सुधारो तब ही बढ़ाई
देखो लोगों की अच्छाई
कोई कितना बने सिकंदर
कमिया होती सबके अंदर
बड़ा ,किन्तु खारा है समन्दर
शुद्ध रखो निज मन का मंदिर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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