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सोमवार, 24 अगस्त 2020

उनयासीवें जन्मदिवस पर

स्वाद वही ताजे वाला है ,भले हो गया हूँ मैं बासी
अब भी वही जोश कायम है भले हुआ  मैं उनयासी

बचपन से दोस्त ,गए कुछ छोड़ और कुछ रंग बदले
दांत संग कुछ छोड़ गए है , काले  केश ,हुए उजले
परिवार के सब बच्ची  बच्चों , का  निज  परिवार बना  
कभी दूर का ,कभी पास का ,एक अजब व्यवहार बना
रोज भुलाता ,बीती बातें ,सारी, जो चुभ चुभ  जाती
पर दाढ़ी के बालों जैसी ,रोज सुबह फिर उग आती
मन तो उतना रसिक ना रहा ,जिव्हा पर रस की लोभी
लालायित रहती खाने को ,मीठा ,चाट ,मिले जो भी
अब ना तेजी रही चाल में ,ना ही तेजी बोली में
पड़ने फीके लगे रंग सब ,जीवन की रंगोली  में
वानप्रस्थ की उमर बिता दी ,और बना ना सन्यासी
अब भी वही जोश है कायम ,भले हुआ मैं उनयासी
 
वो ही दीवारें ,वो ही छत है ,और वैसा ही आंगन है
चहल पहल वाले घर में अब ,व्याप्त हुआ सूनापन है  
नज़रें वही ,नज़रिया लेकिन धीरे धीरे बदल  रहा
ऐसा लगता है कि जैसे ,समय हाथ से फिसल रहा
घर में हम दो ही प्राणी है ,बूढ़े ,तन से थके थके
मैं हूँ और मेरी पत्नी हम ,एक दूजे का ख्याल रखें
मन है सुदृढ़ ,भले ही तन में ,बाकी नहीं सुगढ़ता है
फिर भी ताकत है लड़ने की ,बिमारी से लड़ता है
साथ उमर के सबको ही ,करना पड़ता समझौता है
तन तो बूढा हो जाता है ,मन कब बूढ़ा होता है
भरा हुआ जीने का जज्बा  ,और उमंग अच्छी खासी
अब भी वही जोश कायम है ,भले हुआ मैं उनयासी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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