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बुधवार, 12 अगस्त 2020

खुल कर बोलो

जो भी बोलो ,खुल कर बोलो ,लेकिन तुम सोच समझ बोलो
अपने मन की गांठे खोलो  ,पर पोल किसी की मत खोलो
क्योंकि कुछ बाते दबी हुई ,चिंगारी दबी राख जैसी
जब खुलती ,आग लपट बन कर ,कर देती ऐसी की तैसी
तुम जब भी अपना मुख खोलो ,तो बस इतना सा ख्याल रखो
सच कड़वा होता ,चुभता है ,अपनी  जुबान संभाल रखो
सबके जीवन में भला बुरा ,कितना संचित ही होता है
हो खुली किताब तरह जीवन ,ऐसा किंचित ही होता है
मुंहफट,खुल, कहनेवालों के,होते कम दोस्त शत्रु ज्यादा
क्या कहना ,क्या ना कहना है ,रखनी पड़ती है मर्यादा
मन का खुल्लापन अच्छा है ,यदि सोच समझ कर बात कही
शालीन हमारी संस्कृति है ,तन का खुल्लापन  ठीक नहीं
जब खुली हवा में हम सासें लेते है ,बहुत सुहाता है
खुल्ला नीला सा आसमान ,सबके ही मन को भाता है
तुम अगर किसी से प्रेम करो ,मत रखो दबा ,कहदो खुल कर
शरमा शरमी में कई बार ,हाथों से बाज़ी ,जाय फिसल
मन में मत घुटो ,साफ़ कह दो ,इससे मन होता है हलका
मन में जब ना रहता गुबार ,छलहीन प्रेम करता छलका
जी खोल  प्रशंसा करो खूब ,हर सुन्दर चेहरे वाले की
होती   अक्सर तारीफ बहुत , तारीफें करने  वाले की  
खुल कर पत्नी से प्यार करो ,पर रहे ध्यान में एक बात
इतनी आजादी मत  देना ,कि करे खर्च वह खुले हाथ
खुलना है अच्छी बात मगर ,ज्यादा खुलना बेशरमी है
खुल्ले हाथों कर दान पुण्य ,हम तर जाते बेतरणी  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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