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रविवार, 2 अगस्त 2020

शिकवा शिकायत पत्नी से

एक
मैं सहमा सहमा ,डरा डरा ,जब धीमे स्वर में बात करूं ,
तुम झल्ला कर के कहती हो ,ऊंचे क्या बोल नहीं सकते
यदि मैं ऊंचे स्वर में बोलूं ,ये भी न सुहाता है तुमको ,
कहती हो क्या मैं बहरी हूँ , इतना चिल्ला कर जो बकते
मैं चुप रह कुछ भी ना बोलूं ,ये भी तुमको मंजूर नहीं ,
कहती गुमसुम क्यों बैठे हो,तुम मुझको रहे 'अवोइड 'कर
क्या करूं समझ जब ना आता ,रहता दुविधा, शंशोपज में ,
तो मैं तुम्हारी बातों का ,उत्तर देता बस मुस्कराकर

दो
मैं जब भी कोई बात करूं ,सीधे से नहीं मानती तुम ,
कोई 'इफ 'का या फिर 'बट 'का ,तुम लगा अड़ंगा देती हो
मेरा कोई भी हो सुझाव ,तुम मान जाओ ,ना है स्वभाव ,
मेरे हर निर्णय का विरोध ,कर मुझसे पंगा लेती हो      
छोटी  छोटी  सी बातों पर ,होने लगता है चीर हरण ,
और युद्ध महाभारत जैसा ,छिड़ जाता ,व्यंग बाण चलते
बस कुछ ही मौके आते है ,जब मैं प्रस्ताव कोई रखता ,
तुम नज़रें झुका मान जाती , लेकिन वो भी ना ना करते  

घोटू

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