आओ ,यादें ओढ़े
आयी शीत ऋतु जीवन की ,यूं ना बदन सिकोड़े
जीवन में ले आये ऊष्मता ,आओ यादें ओढ़ें
पहली पहली बारिश में फिर उछल कूद कर भीगे ,
बहती नाली में कागज की किश्ती, फिर से छोड़े
यह जीवन का अंकगणित है लंगड़ी भिन्न सरीखा ,
अबतक जो भी घटा,भाग दे ,.कई गुना कर जोड़े
जाने क्या क्या सपने देखे ,थे हमने जीवन में ,
पूर्ण हुए कुछ ,किन्तु अधूरे है अब तक भी थोड़े
अपनी मन मरजी करते है ,नहीं हमारी सुनते ,
बड़े हो गए बच्चे ,कैसे उनके कान मरोड़े
जबसे पंख निकल आये है ,उड़ना सीख गए है ,
सबने अपने नीड़ बसाये ,तनहा हमको छोड़े
नहीं किसी से ,कभी कोई भी रखें अपेक्षा मन में ,
हमें पता है पूर्ण न होगी ,क्यों अपना दिल तोड़े
जीवन की आपाधापी में रहे हमेशा उलझे ,
बहुत अभी तक सबके खातिर ,इतने भागे दौड़े
भुगत गयी सब जिम्मेदारी ,अब ही समय मिला है,
आओ खुद के खातिर जी लें ,दिन जीवन के थोड़े
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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