कल आया पर अकल न आयी
बेटा जवान था
पर बाप परेशान था
वो बड़ा हो गया था
अपने पैरों खड़ा हो गया था
मगर उसका बचपना न गया
आवारगी और छिछोरापना न गया
तब ही किसी ने दी सलाह
करवादो इसका विवाह
जब सर पर पड़ेगी जिम्मेदारी
गुम हो जायेगी हेकड़ी सारी
गृहस्थी का बोझ सर पर चढ़ जाएगा
वो नून और तैल के चक्कर पड़ जाएगा
दिन भर काम करने को मजबूर हो जाएगा
उसका छिछोरापन दूर हो जाएगा
आज नहीं तो कल
उसे आ जायेगी अकल
बाप ने शादी करवा दी
एक अच्छी बहू ला दी
शुरू में लगा बेटा है सुधर गया
पर अचानक उस पर नेतागिरी का भूत चढ़ गया
बाप घबरा गया
क्योंकि दूना होकर के था आगया
वही छिछोरापन और बचकाना व्यवहार
पर हालत और भी बिगड़ गयी थी अबकी बार
क्योंकि अब वो गालियां भी बकने लगा था
और रहा नहीं किसी का सगा था
उसका व्यवहार सबसे बदलने लगा
वो अपनों को ही छलने लगा
वो होने लगता बद से बदतर
बाप ने पीट लिया अपना सर
दुःख से उसकी आँखे डबडबाई
बोला कल आगया पर बेटे को अकल न आयी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।